रुझान प्रकार

कपास बुवाई में आई तेजी – देश में 222 लाख हे. में हुई बोनी
कृषि मंत्रालय के मुताबिक 38.93 लाख हेक्टेयर में धान, 18.80 लाख हेक्टेयर में दाल, 38.12 लाख हेक्टेयर में मोटा अनाज, 47.52 लाख हेक्टेयर में गन्ना और 46.10 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई की गई है। जबकि गत वर्ष अब तक धान 39.08, दलहन 13.04, मोटे अनाज 35.41, गन्ना 44.82 एवं कपास की बोनी 19.07 लाख हेक्टेयर में हुई थी। इसी प्रकार तिलहनी फसलों की बोनी 25.90 लाख हेक्टेयर एवं जूट व मेस्ता की बोनी 6.93 लाख हेक्टेयर में की गई है।
Kisan News: इस बार प्याज को संभाल कर रखे किसान, क्षैत्रफल घट गया और देखें पूरी रिपोर्ट
Kisan News: प्याज की खेती कम होने से उचित भाव नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा, भंडारण के दौरान पर्यावरण के कारण खराब होने की दर अधिक होती है। इसके अलावा हर साल बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से प्याज को नुकसान होता है, इसलिए इस साल किसानों का प्याज की खेती के प्रति रुझान कम है। किसानों ने कहा कि बीजों की मांग कम होने से कीमत 500 रुपये और कुछ दिनों के बाद 200 रुपये से 300 रुपये तक आने की संभावना है। खली भाऊ चेंज इस साल प्याज का रकबा घट रहा है और इससे प्याज के बीच की मांग भी घट गई है। पिछले साल जहां प्याज के बीज की कीमत 2000 रुपए प्रति किलो थी वही अब वह घटकर ₹500 किलो रह गई है।
Kisan News: इस साल अब प्याज को संभाल कर रखने का समय आ गया है। इस साल प्याज की बुवाई सिर्फ 500 हेक्टेयर में होने की संभावना है। जाहिर है इस साल बीजों की मांग में कमी आई है। इससे निर्माताओं को भारी नुकसान होने रुझान प्रकार की आशंका है। खेती कम होने से प्याज का अपेक्षित भाव नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा, भंडारण के दौरान पर्यावरण के कारण खराब होने की दर अधिक होती है। इसके अलावा हर साल बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसान इस साल प्याज की बुआई कम कर रहे हैं।
Kisan News: पिछले साल प्याज उत्पादकों और उपभोक्ताओं को भी प्याज की अपेक्षित कीमत नहीं मिली थी. भंडारण में प्याज के खराब होने की दर अधिक होने से किसानों को भारी नुकसान हुआ है।हालांकि देखा जा रहा है कि रुझान प्रकार शुरुआती दौर में व्यापारियों को जमीन के भाव पर प्याज खरीदकर दाम बढ़ने पर बेचने से व्यापारियों को काफी मुनाफा हो रहा है। उसकी तुलना में निर्माताओं को झटका लगा रुझान प्रकार है।
Kisan News: क्या मिलेगा मुआवजा खराब मौसम और बारिश से प्याज के पौधे को काफी नुकसान हुआ है। दाम गिरने से किसानों के पास बीज पड़े हैं। इस प्रकार प्याज उत्पादकों को भारी नुकसान होने के कारण सरकार मुआवजे की मांग कर रही है। जिले में प्याज की खेती का रकबा भी कम हुआ है, आमतौर पर हर साल डेढ़ से दो हजार हेक्टेयर में प्याज की खेती होती है। इसकी तुलना में इस साल 500 से 800 हेक्टेयर में इसकी बुवाई होने की संभावना है। प्याज का अपेक्षित मूल्य नहीं मिलने समेत अन्य कारणों से रकबा घट रहा है। किसानों को भी बाजार पर ध्यान देना चाहिए।
राजस्थान में देशी पर्यटकों की संख्या इस साल 90.4 प्रतिशत बढ़ी
पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने यह जानकारी दी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में बृहस्पतिवार को आयोजित पर्यटन विभाग की समीक्षा बैठक में बताया गया कि वर्ष 2022 में राजस्थान में पर्यटकों के आगमन में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है। राज्य में देशी पर्यटकों की संख्या में इस वर्ष 90.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके अलावा इस वर्ष सितम्बर तक 1.64 लाख विदेशी सैलानी राजस्थान घूमने आए हैं।
अधिकारियों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा पर्यटन के क्षेत्र में लिए जा रहे विभिन्न निर्णयों से राज्य देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना है।
एक सरकारी प्रवक्ता के अनुसार बैठक में मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि पर्यटन क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। इससे बड़े स्तर पर रोजगार सृजित होता है, वहीं इससे प्राप्त होने वाली आय से राज्य के विकास को गति मिलती है। उन्होंने कहा कि राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों की विशिष्ट लोक कलाओं और संस्कृति के संरक्षण तथा उत्थान के लिए राज्य सरकार जल्द ही राजस्थान लोक कला उत्सव का आयोजन करने जा रही है।
बैठक में बताया गया कि राजस्थान में लगभग 22 प्रकार के लोक उत्सव आयोजित किए जा रहे हैं। इन उत्सवों के माध्यम से सैलानी स्थानीय संस्कृति एवं लोक कलाओं का आनंद उठा रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जयपुर के टाउन हॉल को एक म्यूजियम के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार ने 96 करोड़ रूपए का बजट आवंटित किया है। यहां राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों का इतिहास पर्यटकों को दिखाया जाएगा।
इसमें यह भी बताया गया कि जैसलमेर में ढोला-मारू टुरिज्म कॉम्पलेक्स के निर्माण हेतु रिपोर्ट तैयार कर 865 एकड़ भूमि आवंटित कर दी गई है। जल्द ही टुरिज्म कॉम्पलेक्स का निर्माण पूरा किया जाएगा, जिसमें राजस्थान की लोक कला के प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन की व्यवस्था के साथ-साथ पर्यटकों के रूकने का उत्कृष्ट प्रबंध होगा। यहां रुझान प्रकार राजस्थान के हस्तनिर्मित उत्पादों के अलावा राजस्थान के परम्परागत व्यंजनों का स्वाद सैलानी ले सकेंगे।
भाषा पृथ्वी मनीषा रमण
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
कुछ राष्ट्र विदेश नीति के तहत, तो कुछ आतंकियों पर कार्रवाई बाधित कर आतंकवाद का समर्थन करते हैं: मोदी
नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को पाकिस्तान और चीन को परोक्ष रूप से निशाने पर लेते हुए कहा कि कुछ देश अपनी विदेश नीति के तहत आतंकवाद का समर्थन करते हैं जबकि कुछ अन्य देश आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई को अवरुद्ध करके अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा करते हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से राजधानी स्थित होटल ताज पैलेस में आतंकवाद-रोधी वित्तपोषण पर ‘आतंक के लिए कोई धन नहीं’ (नो मनी फॉर टेरर) विषय पर आयोजित तीसरे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में 70 से अधिक देशों और अतंरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में मोदी ने यह बात कही।
सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में उन्होंने आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति पैदा करने की कोशिश करने वाले संगठनों और व्यक्तियों को भी अलग-थलग किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘यह सर्वविदित है कि आतंकवादी संगठनों को कई स्रोतों से पैसा मिलता है। एक स्रोत किसी देश से मिलने वाली मदद है। कुछ देश अपनी विदेश नीति के तहत आतंकवाद का समर्थन करते हैं। वे उन्हें राजनीतिक, वैचारिक और वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय संगठनों को रुझान प्रकार यह नहीं सोचना चाहिए कि युद्ध नहीं हो रहा है तो इसका मतलब शांति है। छद्म युद्ध भी खतरनाक और हिंसक होते हैं।’’
किसी देश का नाम लिए बगैर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों को इसकी कीमत चुकाने के लिए मजबूर किया जाना जरूरी है।
ज्ञात हो कि भारत लंबे समय से कहता आ रहा है कि पाकिस्तान भारत में, खासकर जम्मू एवं कश्मीर में आतंकी हमले के लिए आतंकवादी संगठनों को हर प्रकार से मदद पहुंचाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में कोई अगर-मगर हस्तक्षेप नहीं कर सकता। आतंकवाद के हर तरह के प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन के खिलाफ दुनिया को एकजुट होने की जरूरत है।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्तमान समय में आदर्श रूप से किसी को भी दुनिया को आतंकवाद के खतरों की याद दिलाने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हालांकि कुछ हलकों में आतंकवाद के बारे में अभी भी कुछ गलत धारणाएं हैं।
मोदी ने कहा कि अलग-अलग हमलों को लेकर प्रतिक्रिया की गंभीरता इस आधार पर अलग-अलग नहीं हो सकती कि यह किस जगह हुआ है। उन्होंने कहा कि सभी आतंकवादी हमलों का एक समान विरोध होना चाहिए और कार्रवाई भी एक जैसी होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘इसके बावजूद कभी-कभी, आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई को अवरुद्ध करने के लिए आतंकवाद के समर्थन में अप्रत्यक्ष तर्क दिए जाते हैं।’’
मालूम हो कि चीन ने कई मौकों पर आतंकवादियों, विशेषकर भारत में आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों व संगठनों रुझान प्रकार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र द्वारा कार्रवाई करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को विफल किया है।
आतंकवाद को मानवता, स्वतंत्रता और सभ्यता पर हमला करार देते हुए मोदी ने कहा, ‘‘ इसकी कोई सीमा नहीं होती है। हमें आतंकियों के पीछे लगे रहना चाहिए, उनके सहयोगी नेटवर्क को तोड़ना और वित्त स्रोतों पर हमला करना चाहिए। केवल एक समान, एकीकृत, शून्य सहिष्णुता दृष्टिकोण ही आतंकवाद को हरा सकता है।’’
मोदी ने कहा कि आतंकवाद के वित्तपोषण का एक स्रोत संगठित अपराध है जिसे अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘गिरोहों के आतंकवादियों के साथ गहरे संबंध हैं। बंदूक, ड्रग्स और तस्करी से प्राप्त पैसे को आतंकवाद में लगाया जा रहा है… आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में संगठित अपराधों के खिलाफ कार्रवाई बेहद महत्वपूर्ण है। आतंकवाद को उखाड़ फेंके जाने तक देश चैन से नहीं बैठेगा।’’
उन्होंने कहा कि दशकों से विभिन्न नामों और रूपों में आतंकवाद ने भारत को चोट पहुंचाने की कोशिश की और इस वजह से देश ने हजारों कीमती जीवन खो दिए लेकिन इसके बावजूद देश ने आतंकवाद का बहादुरी से मुकाबला किया है।
उन्होंने कहा कि भारत तब तक चैन से नहीं बैठेगा, जब तक आतंकवाद को जड़ से उखाड़ कर फेंक नहीं दिया जाता।
प्रधानमंत्री ने कहा कि व्यापक रणनीति के बिना आतंकवाद के वित्त पोषण पर चोट करने का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता और इस दिशा में अभी तक जो रणनीतिक बढ़त मिली है, वह भी कहीं पीछे छूट जाएगी।
मोदी ने कहा कि संप्रभु देशों को अपनी प्रणालियों पर अधिकार है, लेकिन ‘‘हमें चरमपंथी तत्वों को प्रणालियों के बीच मतभेदों का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए’’।
उन्होंने कहा, ‘‘जो कोई भी कट्टरपंथ का समर्थन करता है, उसे किसी भी देश में समर्थन नहीं मिलना चाहिए।’’
सम्मेलन के भारत में आयोजन की अहमियत को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने बहुत पहले ही आतंकवाद की भयावहता को गंभीरता से लेने की पहल की थी।
मोदी ने कहा कि आतंकवाद का दीर्घकालिक स्वरूप विशेष रूप से गरीबों या स्थानीय अर्थव्यवस्था पर चोट करता है, चाहे वह पर्यटन हो या व्यापार।
उन्होंने कहा कि कोई भी उस क्षेत्र में जाना पसंद नहीं करता है जो खतरे में है और इसके कारण लोगों की रोजी-रोटी छिन जाती है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह अधिक महत्वपूर्ण है कि हम आतंकवाद के वित्तपोषण की जड़ पर प्रहार करें।’’
इस दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन आतंकवाद-रोधी वित्तपोषण पर मौजूदा अंतरराष्ट्रीय शासन की प्रभावशीलता के साथ-साथ उभरती चुनौतियों के समाधान के लिए आवश्यक कदमों पर विचार-विमर्श करने के लिए किया गया है ।
सम्मेलन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। इसमें दुनिया भर के लगभग 450 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। इनमें मंत्री, बहुपक्षीय संगठनों के प्रमुख और वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख शामिल हैं।
इस सम्मेलन में हालांकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रतिनिधि शामिल नहीं हुए हैं। चीन को इसमें आमंत्रित किया गया था लेकिन उसका भी कोई प्रतिनिधि इसमें शामिल नहीं हुआ।
सम्मेलन के दौरान, चार सत्रों में ‘आतंकवाद और आतंकवादी वित्तपोषण में वैश्विक रुझान’, ‘आतंकवाद के लिए धन के औपचारिक और अनौपचारिक चैनलों का उपयोग’, ‘उभरती प्रौद्योगिकियां और आतंकवादी वित्तपोषण’ और ‘आतंकवादी वित्तपोषण का मुकाबला करने में चुनौतियों के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग’ विषयों पर चर्चा की जानी है।
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नई शिक्षा नीति भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाली: प्रो. अकील अहमद
केंद्र सरकार नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई है जो देशभर की क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने वाली है। इसके जरिए छात्र-छात्राएं मातृ भाषाओं में प्राइमरी से लेकर उच्चतम स्तर तक तालीम हासिल कर सकेंगे। कोलकाता में आयोजित हुए तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव में विशेष अतिथि के तौर पर शामिल होने पहुंचे प्रो. अकील अहमद ने हिंदुस्थान समाचार को दिए एक साक्षात्कार में यह बातें कही हैं। वर्तमान में प्रो. अकील अहमद केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद के निदेशक हैं।
प्रो.अकील अहमद ने भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने और वैश्विक स्तर पर इसके शैक्षणिक महत्व को स्थापित करने के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बारे में विस्तार से बताया है। पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश…
प्रश्न : वैश्विक शिक्षा के मद्देनजर भारतीय भाषाओं में शिक्षा-दीक्षा कम होती जा रही है। इस पर क्या कहेंगे ?
उत्तर : केंद्र सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने का प्रावधान हैं। हमारे यहां लोगों को यह लगने लगा है कि अगर हम वैश्विक स्तर पर कोई शिक्षा हासिल करना चाहते हैं तो बगैर अंग्रेजी के ऐसा नहीं कर सकते। जैसे विज्ञान है, तकनीक है, इंजीनियरिंग या डॉक्टरी की पढ़ाई है, उसके लिए अंग्रेजी जानना जरूरी माना जाता है। नौकरी के लिए भी अंग्रेजी की जरूरत है। इस तरह की एक सोच पूरे हिंदुस्तान के अंदर घर कर गई है, लेकिन जो नई शिक्षा नीति बनी है उसमें इस बात का ख्याल रखा गया है कि भारतीय भाषाओं को न केवल बढ़ावा दिया जाए बल्कि उन्हें बड़े पैमाने पर विकसित भी किया जाए। इसमें इस बात के प्रावधान हैं कि प्राइमरी से लेकर आठवीं तक बच्चे अपनी मातृभाषा में पढ़ाई कर सकते हैं। उसके बाद भी चाहे तो स्नातकोत्तर तक उसी भाषा में पठन-पाठन कर सकते हैं। कई राज्यों में इंजीनियरिंग और मेडिकल की किताबें भी हिंदी में प्रकाशित हो गई हैं। हाल ही में आपने मध्य प्रदेश में ऐसा देखा है। यह एक अच्छी पहल है। इससे वैश्विक स्तर पर भारतीय भाषाओं को एक पहचान मिलेगी।
प्रश्न : उर्दू आजादी से पहले इस देश की सर्व स्वीकार्य भाषा रही है। इस बारे में क्या कहेंगे?
उत्तर : मैं, उर्दू भाषा विकास परिषद का निर्देशक हूं इसलिए मैं यह कहना चाहता हूं कि उर्दू भाषा इंसान के तमाम भाषाओं में विशेष महत्व रखती है क्योंकि सिर्फ हिन्दुस्तान की ही नहीं बल्कि दुनिया में कई ऐसी भाषाएं हैं जिनमें उर्दू का प्रयोग होता है। हिन्दुस्तान में जितने भी धर्म हैं उन धर्मों का प्रचार-प्रसार शुरुआत में उर्दू भाषा के माध्यम से ही होता था। सिख धर्म, हिन्दू धर्म के कई ग्रंथावली उर्दू भाषा में मौजूद हैं। उर्दू के कवि चाहे वह गालीब हों या अन्य कोई उन सभी का नाम विश्वभर के कवियों में शुमार है। इनकी कविताओं को दुनियाभर की कई भाषाओं में ट्रांसलेट किया गया है। इसलिए उर्दू अब सिर्फ एक भारतीय भाषा ही नहीं है बल्कि विश्व स्तरीय भाषा के क्रम में खड़ी है। भारतवर्ष में कोई ऐसा राज्य या कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां उर्दू भाषा को पढ़ने और समझने वाले मौजूद न हों। भाषा कोई भी हो चाहे वह उर्दू हो हिन्दी हो या विश्व की कोई भी भाषा हो सभी को बढ़ावा देना चाहिए और इसके लिए साहित्य उत्सव जैसे कार्यक्रम बेहद खास होते हैं।
प्रश्न : तकनीक का हाथ पकड़कर तेजी से डिजिटल हो रही दुनिया में साहित्य उत्सव का आयोजन आज के दौर में कितना प्रासंगिक है?
उत्तर : आज यहां वर्ल्ड लैंग्वेज सेलिब्रेशन किया जा रहा है। भारत में जितनी भी भाषाएं हैं उन तमाम भाषाओं के बारे में बातचीत होगी। इसके अलावा हिन्दुस्तान से बाहर जितनी भाषाएं हैं उन भाषाओं के बारे में भी बातचीत होगी। तीन दिवसीय इस कार्यक्रम का बहुत महत्व है। यह महत्व इसलिए है क्योंकि संवाद करने के लिए हमारे भारतीय दर्शन का यह मानना है कि भाषाएं कहीं की भी हों, वे पूजनीय होती हैं। क्योंकि इन्हें इंसानों ने नहीं बल्कि स्वयं भगवान ने बनाया है। हिन्दुस्तानी दर्शन का यह भी कहना है कि दुनिया के अंदर तीन चीजें ऐसी हैं जो कि पूजनीय हैं। उसमें मातृभाषा, मां और मातृभूमि है। सबसे पहले हम मातृभूमि को नमन करेंगे, फिर हम मां को और फिर मातृभाषा को। हमें इसके महत्व को समझना चाहिए। दूसरी बात यह कि दुनिया में जितनी भी फिलॉसफी या ज्ञान है उसे व्यक्त करने के लिए हमें किसी न किसी भाषा का सहारा लेना पड़ता है। जब तक हम भाषा का सहारा नहीं लेते तब तक हम अपनी बातों को दुनिया तक नहीं पहुंचा पाते हैं। हमारी रीति, हमारी संस्कृति, हमारा दर्शन हम भाषा के जरिए ही दुनिया तक पहुंचा सकते हैं। भाषाओं की बहुत ज्यादा अहमियत है। आज तकनीक के जमाने में भी साहित्य उत्सव के जरिए दुनियाभर के लोग एक जगह आते हैं और भाषाओं की विविधता के बीच वैश्विक एकरूपता को महसूस करते हैं। इसलिए साहित्य रुझान प्रकार उत्सव का आयोजन बेहद प्रासंगिक है।
प्रश्न: पश्चिम बंगाल में उर्दू की स्थिति कैसी है ?
उत्तर : पश्चिम बंगाल में उर्दू की स्थिति अच्छी है। उर्दू से संबंधित कोलकाता और आसनसोल में कई संस्थाएं हैं। यहां उर्दू माध्यम के कई स्कूल भी मौजूद हैं। बावजूद इसके उर्दू को जिस प्रकार से पश्चिम बंगाल में बढ़ावा मिलना चाहिए वैसा नहीं मिला है। यहां उर्दू को लेकर और अधिक काम करने की जरूरत है।
प्रश्न : क्षेत्रीय भाषाओं के स्कूल बंद हो रहे हैं जबकि अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है?
उत्तर : क्षेत्रीय भाषाओं के स्कूलों के बंद होने और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों को बढ़ावा मिलने का मुख्य कारण यह है कि हमारे यहां लोगों को ऐसा लगता है कि यदि उन्हें विश्व स्तर का ज्ञान हासिल करना है तो उसके लिए अंग्रेजी पढ़ना अनिवार्य है, लेकिन हमारी भारतीय भाषाएं दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं और इनमें हासिल हुई रुझान प्रकार शिक्षा वैश्विक स्तर पर खुद को स्थापित करने में मददगार बनेंगी। इसलिए सरकार क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए नई शिक्षा नीति पर जोर दे रही है।
प्रश्न : माता-पिता में अंग्रेजी को लेकर अधिक रुझान क्यों?
उत्तर : आम लोगों को भारतीय भाषाओं के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक एवं भाषा संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन कर हम लोगों में मातृभाषा के प्रति जागरूकता फैला सकते हैं। स्कूल के बच्चों और विशेषकर उनके माता-पिता को यह समझाने की आवश्यकता है कि उनकी जो मातृभाषा है वह अति पूजनीय है। उसका आदर करने की जरूरत है और महत्व समझने की जरूरत है। दूसरी भाषाओं की चमक-दमक से दूर होने की जरूरत है। अपनी मातृभाषा के अंदर भी छात्र बहुत कुछ कर सकते हैं। मुझे लगता है कि लोग अब धीरे-धीरे अपनी मातृभाषा के प्रति जागरूक हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि नई शिक्षा नीति को भविष्योन्मुखी होने के साथ-साथ आने वाली शिक्षा की चुनौतियों के अनुरूप है। नई शिक्षा नीति 21वीं सदी में भारत की मूल्य व्यवस्था और नागरिकों में विश्व कल्याण की भावना को भरने का उद्देश्य है।