क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है?

चुनावी बॉन्ड कालेधन और राजनीतिक भ्रष्टाचार का बड़ा स्रोत - जवाब में मोदी सरकार के वकील ने कोर्ट से कहा मुमकिन नहीं
Electoral Bond : सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में चुनावी बॉन्ड ( Electoral Bond ) योजना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शुक्रवार यानि 14 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान केंद्र ने अपना पक्ष रखा। केंद्र सरकार ( Modi government ) का दावा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक फंडिंग ( Political funding ) का एक पारदर्शी तरीका है। इससे ब्लैक मनी ( Black money ) मिलना संभव नहीं है। यह कहना कि यह लोकतंत्र को प्रभावित करता है, सही नहीं है। केंद्र का पक्ष जानने के बाद शीर्ष अदालत ने इस मामले की विस्तार से सुनवाई के लिए 6 दिसंबर की तारीख मुकर्रर की है। उस दिन कोर्ट यह परीक्षण करेगी कि क्या मामले को बड़ी पीठ को सौंपा जाना चाहिए?
केंद्र सरकार ने क्या कहा
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि यह अहम मामला है। उन्होंने एटॉर्नी जनरल और सॉलिसीटर जनरल से सुनवाई में मदद मांगी। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ के समक्ष कहा कि चुनावी बॉन्ड ( Electoral Bond ) के जरिए चंदा प्राप्त करने का तरीका पूरी तरह पारदर्शी है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था राजनीतिक दलों को नकद चंदा देने के विकल्प के तौर पर लाई गई है। इसका मकसद राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है।
पीठ को अपने सवालों को मिला ये जवाब
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने जब पूछा कि क्या सिस्टम इस बात का जवाब देता है कि पैसा कहां से आ रहा है, इस पर केंद्र के पक्षकार तुषार मेहता ने जवाब दिया कि बिल्कुल, यह जानकारी देता है।
बॉन्ड पर तत्काल लगे रोक : एडीआर
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स ( ADR ) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दायर किया। यह मामला बहुत ही गंभीर है। इलेक्टोरल बॉन्ड ( Electoral Bond ) पर तत्काल प्रभाव से रोक की मांग की थी। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग ( Election commission ) और रिजर्व बैंक ( RBI ) की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
सियासी दलों को रिश्वत देने का तरीका : प्रशांत भूषण
सुनवाई कि दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि यह बॉन्ड का गलत उपयोग है। इसका उपयोग शेल कंपनियां कालेधन को सफेद बनाने में कर रही हैं। बॉन्ड कौन खरीद रहा है, इसकी जानकारी सिर्फ सरकार को होती है। चुनाव आयोग तक इससे जुड़ी कोई जानकारी नहीं ले सकता है। ये राजनीतिक दल को रिश्वत देने का एक तरीका है।
बड़ी पीठ करे इसकी सुनवाई : कपिल सिब्बल
सपा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि चूंकि यह गंभीर मसला है, इसलिए इस मसले को एक बड़ी पीठ को विचार करने के लिए सौंपा जाना चाहिए।
चुनावी तो नहीं पर अहम मसला है
एक अन्य याचिकाकर्ता ने कहा कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होना है, इसलिए इस पर फैसला जल्द होना चाहिए। इस पर मेहता ने कहा कि यह मसला चुनावी नहीं है। इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि यह चूंकि हर राज्य के चुनाव से पहले बॉन्ड जारी किए जाते हैं, इसलिए यह अहम मसला है।
इलेक्टोरल बॉन्ड : किसने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) : इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कालेधन को कानूनी किया जा सकता है। विदेशी कंपनियां सरकार और राजनीति को धन के जरिए प्रभावित कर सकती हैं।
चुनाव आयोग ( Election Commission ) : चंदा देने क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? वालों को नाम गुप्त रखने से यह पता नहीं चल पाएगा कि रजानीतिक दलों ने धारा 29 बी उल्लंघन कर चंदा लिया है या नहीं। विदेशी चंदा लेने वाला कानून भी बेकार हो जाएगा।
आरबीआई ( RBi ) : इलेक्टोरल बॉन्ड मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा देगा। इसके जरिए ब्लैक मनी को व्हाइट करना संभव होगा।
क्या है पूरा मामला
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को पहली बार 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दे।
इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?
2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है जिसे बैंक नोट भी कह सकते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है। अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए।
इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता है। खरीदने वाला जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट करना चाहता है, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिला होना चाहिए। डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर इसे उस पार्टी को चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है। बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलता है। ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं।
Electoral Bond : विवाद क्यों
दरअसल, 2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं। कुछ लोगों का आरोप है कि इस स्कीम को बड़े कॉरपोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लाया गया है। इससे ये घराने बिना पहचान उजागर हुए जितना मर्जी उतना चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकते हैं।
बॉन्ड से 4 साल में मिले 9,207 करोड़
जनवरी 2022 के शुरुआती 10 दिनों में ही राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए SBI से करीब 1,213 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड बिके हैं। इस तरह 2018 से अब तक 4 साल में इलेक्टोरल बॉन्ड से पॉलिटिकल पार्टियों को 9,207 करोड़ रुपए चंदा मिला है। ये पैसा कहां से आया और किसने दिया, इसका कोई अता-पता नहीं है।
SGB: धनतेरस और दिवाली पर सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में मिल रही है छूट, जानिए कम कीमत में कैसे खरीदें सोना
सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम के लिए ऑनलाइन आवेदन करने और भुगतान करने वालों को प्रति ग्राम खरीद पर छूट देने का फैसला किया है।
- सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड 2020-21 की आठवीं किश्त जारी कर दी गई है
- इश्यू कीमत 5,177 रुपए प्रति ग्राम तय की गई है
- ऑनलाइन आवेदन करने वालों के लिए छूट दी गई है
सरकार की ओर से रिजर्व बैंक इंडिया (RBI) ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड 2020-21 की आठवीं किश्त जारी कर दी है। केंद्रीय बैंक ने कहा है कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम 2020-21-सीरीज VIII के लिए इश्यू कीमत 5,177 रुपए प्रति ग्राम तय की गई है। वर्ष की शुरुआत के बाद से सोने की कीमतों में वर्ष 2020 में तेजी देखी गई है। करीब 33% बढ़ी है, तो, धनतेरस और दिवाली से पहले, आप यहां जान सकते हैं कि आप सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम 2020-21 के जरिये से तुलनात्मक रूप से सस्ती कीमत पर सोना कैसे खरीद सकते हैं। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इस स्कीम के लिए ऑनलाइन आवेदन करने और भुगतान करने वालों को 50 रुपए प्रति ग्राम की छूट देने का फैसला किया है। स्कीम की इश्यू प्राइस 5,177 रुपए प्रति ग्राम और ऑनलाइन आवेदन करने वालों के लिए 5,127 रुपए प्रति ग्राम तय किया गया है।
वित्त मंत्री ने कहा था कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम 2020-21-सीरीज VIII को 9-13 नवंबर के लिए सब्सक्रिप्शन के लिए खोला जाएगा। साधारण औसत समापन मूल्य के आधार पर बांड का नाममात्र मूल्य [इंडिया बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन लिमिटेड (IBJA)] द्वारा प्रकाशित सप्ताह के आखिरी तीन व्यावसायिक दिनों की 999 शुद्धता के सोने के लिए जारी किया गया था। भारत सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक के परामर्श से ऑनलाइन आवेदन करने वाले निवेशकों क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? को 50 रुपए प्रति ग्राम की छूट देने का फैसला किया है और आवेदन के लिए भुगतान डिजिटल मोड में करना होगा। ऐसे निवेशकों के लिए, गोल्ड बॉन्ड का इश्यू प्राइस 5,127 रुपए प्रति ग्राम होगा।
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) स्कीम क्यों निवेश करना चाहिए?
सोने के मौजूदा मूल्य पर नियमित अंतराल पर सरकार द्वारा एसजीबी जारी किए जाते हैं। इसका आठ साल का निश्चित कार्यकाल है, लेकिन पांच साल के लॉक-इन के बाद बेचा जा सकता है। अगर आप मैच्योरिटी तक एसजीबी रखते हैं, तो निवेश पर कोई पूंजीगत लाभ टैक्स नहीं होगा। आपको सालाना 2.5% का ब्याज मिलेगा, जिसका भुगतान अर्ध-वार्षिक किया जाएगा। सोने की वह मात्रा जिसके लिए निवेशक भुगतान करता है संरक्षित है क्योंकि वे रिडेप्शन/ प्रीमैच्योर रिडेप्शन पर बाजार मूल्य प्राप्त करते हैं। एसजीबी भौतिक रूप में सोना रखने का एक बेहतर विकल्प प्रदान करता है। साथ ही, इन बांडों के मामले में भंडारण के जोखिम और लागत को समाप्त कर दिया जाता है। निवेशकों को मैच्योरिटी और आवधिक ब्याज के समय सोने के बाजार मूल्य का आश्वासन दिया जाता है। इसके अतिरिक्त, एसजीबी गहनों के रूप में सोने के मामले में शुद्धता और चार्ज जैसे मामलों से भी मुक्त है। बॉन्ड आरबीआई की पुस्तकों में या डीमैट रूप में, स्क्रिप जैसे नुकसान के जोखिम को भी दूर करते हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, एसजीबी लॉन्ग टर्म के लिए सोने में भाग लेने के लिए सबसे अच्छा वाहन बने रहते हैं यदि इरादा मैच्योरिटी तक बॉन्ड रखना है। कोई भी सेकेंडरी मार्केट में एसजीपी भी बेच सकता है।
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) में कौन निवेश कर सकता है?
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत कोई भी निवासी सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश कर सकता है। कोई व्यक्ति, एचयूएफ, ट्रस्ट सरकारी या प्राइवेट और विश्वविद्यालय एसजीबी में निवेश कर सकते हैं। यहां तक कि कोई नाबालिग की ओर से निवेश उसके गार्जियन द्वारा किया जा सकता है। कोई एनआरआई इन बॉन्ड में निवेश नहीं कर सकता है, लेकिन इन बांडों को किसी निवासी निवेशक के नामित के रूप में रखने की अनुमति है। एसजीबी खरीदने के लिए KYC दस्तावेज जैसे वोटर आईडी, आधार कार्ड/पैन या TAN/पासपोर्ट की जरुरत होती है।
एसजीबी के लिए आवेदन न्यूनतम एक ग्राम में और एक ग्राम के गुणक में अधिकतम जायज सीमा तक किया जा सकता है। कोई व्यक्ति और कोई एचयूएफ प्रत्येक वित्तीय वर्ष में एसजीबी में चार किलो तक का निवेश कर सकते हैं। अन्य पात्र संस्थाएं एक वर्ष में 20 किलो तक निवेश कर सकती हैं। निवेशक किसी व्यक्ति के पक्ष में उसके द्वारा खरीदे गए या खरीदे गए बॉन्ड के संबंध में नामांकन कर सकते हैं। बॉन्ड बैंकों, स्टॉक होल्डिंग कॉर्पोरेशन, डाकघरों और मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों से खरीदे जा सकते हैं।
क्या गोल्ड बॉन्ड में निवेश करने का यह अच्छा समय है?
सोना एक सुरक्षित हेवन मेटल है। आर्थिक और राजनीतिक अनिश्चितता से सुरक्षा प्रदान करता है। इसलिए, निवेशकों के लिए पीली धातु में अपने पोर्टफोलियो का कम से कम 10% -15% बनाए रखना समझदारी है। सोने की वह मात्रा जिसके लिए निवेशक भुगतान करता है संरक्षित है। बाजार मूल्य पर लाभ प्राप्त होता। निवेशकों को मैच्योरिटी और आवधिक ब्याज के समय सोने के बाजार मूल्य का आश्वासन दिया जाता है।
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सोना सांस्कृतिक रूप से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जैसे भारत में शादियों या अन्य शुभ अवसर लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए किसी को अपने व्यक्तिगत होल्डिंग से सोना खरीदना चाहिए। यह योजना सात साल की मैच्योरिटी अवधि प्रदान करती है और करों का भुगतान किए बिना मूल्य को लॉक करने का एक अच्छा तरीका प्रदान करती है। एसजीबी में, निवेशकों को अपने निवेश पर ब्याज भी मिलता है।
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MUTUAL FUND निवेशकों की बल्ले-बल्ले हो जाएगी | GOOD NEWS
यदि आपने म्यूचुअल फंड (MUTUAL FUND) में पैसा लगा रखा है तो यह आपके लिए GOOD NEWS है। आपको पहले से ज्यादा रिटर्न (RETURN) मिलने की संभावना है। संभव है आपका पैसा तेजी से बढ़े, यह तेजी कब तक रहेगी कहा नहीं जा सकता परंतु इसके कारण म्यूचुअल फंड निवेशकों (MUTUAL FUND INVESTORS) की बल्ले-बल्ले हो जाएगी, यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है। सीएनबीसी-आवाज़ द्वारा दी गई एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक सरकार इन इंस्ट्रूमेंट्स में FPI यानी फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट की सीमा बढ़ाने पर विचार कर रही है। ऐसा होने पर विदेशी निवेश के साथ-साथ करंट अकाउंट डेफिसिट क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? पर काबू पाने में भी मदद मिलेगी।
आईपीओ और एफपीओ में फिलहाल अधिकतम 50 फीसदी सब्सक्रिप्शन की सीमा है। कॉरपोरेट बॉन्ड में एफपीआई के निवेश की सीमा 20 फीसदी से बढ़ाई गई है। इस पर अगले हफ्ते वित्त मंत्रालय और सेबी के बीच बैठक हो सकती है। एफपीआई का मतलब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक होता है। अन्य किसी देश से भारत के शेयर बाजार और बॉन्ड बाजार में पैसा लगाने वालों को एफपीआई कहते है।
म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) कंपनियां निवेशकों से पैसे जुटाती हैं। इस पैसे को वे शेयरों में निवेश करती हैं। इसका मतलब साफ है कि अगर विदेशी निवेशक शेयर बाजार में पैसा लगाएंगे तो म्यूचुअल फंड स्कीम्स में पैसा लगाने वालों की एनएवी की कीमत बढ़ जाएगी। लिहाजा आपको ज्यादा पैसा बनाने का मौका मिलेगा।
एफपीआई यानी विदेशी निवेशकों ने मार्च महीने के पहले 15 दिन में घेरलू पूंजी बाजार में 20,400 करोड़ रुपए से अधिक निवेश किए हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रे़ड वॉर की चिंताएं कम होने और अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व के ब्याज दरें नहीं बढ़ाने से विदेशी निवेशकों का रुझान भारत की ओर बढ़ा है। ऐसे में रुपया मज़बूत हो गया है। लिहाजा भारतीय शेयर बाजारों में विदेशी निवेशक तेजी से खरीदारी कर रहे हैं।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) फरवरी महीने में भी शुद्ध खरीदार रहे। इस दौरान विदेशी निवेशकों ने भारतीय पूंजी बाजार (शेयर और बांड बाजार दोनों) में कुल 11,182 करोड़ रुपए का निवेश किया।
एफपीआई ने एक से 15 मार्च के दौरान शेयर बाजार में शुद्ध रूप से 17,919 करोड़ रुपए का निवेश किया, जबकि बॉन्ड मार्केट में शुद्ध रूप से 2,499 करोड़ रुपए का निवेश किया है। इस तरह से कुल 20,418 करोड़ रुपए का निवेश हुआ है।
क्यों हो रहा है चुनावी बॉन्ड को लेकर हंगामा, क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड
सदन के शीतकालीन सत्र के दौरान गुरुवार को कांग्रेस ने इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा उठाया। कॉन्ग्रेस ने इस मुद्दे को दोनों सदनों में उठाया। इसकी वजह से राज्यसभा की कार्रवाई एक घंटे के लिए स्थगित करनी पड़ी। लोकसभा में कांग्रेस की तरफ से मनीष तिवारी ने इस मुद्दे को उठाया और कहा कि ये बॉन्ड जारी करके सरकारी भ्रष्टाचार को स्वीकृति दे दी गई है। उन्होंने ये तक कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड सियासत में पूंजीपतियों का दखल हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इसका पलटवार करते हुए कहा है कि विपक्षी दल इसे बेवजह का मुद्दा बना रहे हैं।
इस मुद्दे को पूरा जानने से पहले ये जान लेते हैं कि आखिर क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड। दरअसल, किसी भी राजनीतिक दल को मिलने वाले चंदे को इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता है। वैसे तो ये एक तरह का नोट ही होता है, जो एक हजार, 10 हजार, 10 लाख और एक करोड़ तक का आता है। कोई भी भारतीय इसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से खरीद कर राजनीतिक पार्टी को चंदा दे सकता है। इन बॉन्ड्स को जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत वे राजनीतिक पार्टियां ही भुना सकती हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनाव या विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट हासिल किए हों। चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित बैंक खाते में ही इस धन को जमा किया जा सकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड 15 दिनों के लिए वैध रहते हैं केवल उस अवधि के दौरान ही अपनी पार्टी के अधिकृत बैंक खाते में ट्रांसफर किया जा सकता है। इसके बाद पार्टी उस बॉन्ड को कैश करा सकती है।
केंद्र सरकार ने देश के राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में इलेक्टोरल बॉन्ड शुरू करने का ऐलान किया था। चुनावी बॉन्ड का इस्तेमाल व्यक्तियों, संस्थाओं और भारतीय व विदेशी कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जाता है। नियम के मुताबिक, कोई भी पार्टी नकद चंदे के रूप में दो हजार से बड़ी रकम नहीं ले सकती है। बॉन्ड पर दानदाता का नाम नहीं होता है, और पार्टी को भी दानदाता का नाम नहीं पता होता है। सिर्फ बैंक जानता है कि किसने किसको यह चंदा दिया है। इस चंदे को पार्टी अपनी बैलेंसशीट में बिना दानदाता के नाम के जाहिर कर सकती है।
विपक्ष इन इलेक्टोरल बॉन्ड को भ्रष्टाचार का तरीका बता रही है। लोकसभा में गुरुवार को मनीष तिवारी ने कहा कि 2017 से पहले इस देश में एक मूलभूत ढांचा था। उसके तहत जो धनी लोग हैं उनका भारत के सियासत में जो पैसे का हस्तक्षेप था। उस पर नियंत्रण था। लेकिन 1 फरवरी 2017 को सरकार ने जब यह प्रावधान किया कि अज्ञात इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाएं जिसके न तो दानकर्ता का पता है और न जितना पैसा दिया गया उसकी जानकारी है और न ही उसकी जानकारी है जिसे दिया गया। उससे सरकारी भ्रष्टाचार पर अमलीजामा चढ़ाया गया है।
इस बारे में कई लोगों ने आरटीआई भी डाली है। एक आरटीआई के जवाब से पता चलता है कि भारतीय रिजर्व बैंक और चुनाव आयोग ने इस योजना पर आपत्तियां जताई थीं, लेकिन सरकार द्वारा इसे खारिज कर दिया गया था। आरबीआई ने 30 जनवरी, 2017 को लिखे एक पत्र में कहा था कि यह योजना पारदर्शी नहीं है और मनी लांड्रिंग बिल को कमजोर करती है और वैश्विक प्रथाओं के खिलाफ है। इससे केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा। चुनाव आयोग ने दानदाताओं के नामों को उजागर न करने और घाटे में चल रही कंपनियों को बॉन्ड खरीदने की अनुमति देने को लेकर चिंता जताई थी।
हाल ही में आई रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले एक साल में इलेक्टोरल बॉन्डस के जरिए सबसे ज्यादा चंदा बीजेपी को मिला है। एक आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार पार्टियों को मिले चंदे में 91% से भी ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड एक करोड़ रुपये के थे। इन बॉन्ड्स की क़ीमत 5,896 करोड़ रुपये थी। 1 मार्च 2018 से लेकर 24 जुलाई 2019 के बीच राजनीतिक पार्टियों को जो चंदा मिला उसमें, एक करोड़ और 10 लाख के इलेक्टोरल बॉन्ड्स का लगभग 99.7 हिस्सा था।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स में पारदर्शिता की कमी को लेकर चुनाव आयोग लगातार सवाल उठाता आया है। इस मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वो इस तरह की फंडिंग के खिलाफ नहीं लेकिन चंदा देने वाले शख्स की पहचान अज्ञात रहने के खिलाफ है। इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में चुनावर बॉन्ड्स पर तत्काल रोक लगाए बगैर सभी पार्टियों से अपने चुनावी फंड की पूरी जानकारी देने को कहा था।