ट्रेंड मूवमेंट क्या है

कश्मीर मूवमेंट का इस्लामीकरण
कश्मीर के अलगाववादियों के अल कायदा से जुड़ने की खबर है. तो क्या कश्मीर मुद्दे को इस्लामिक चरमपंथियों से हाइजैक कर लिया है. दक्षिण एशिया विशेषज्ञ अग्नियेश्का कुशेवस्का इसके लिए भारत की नीतियों को भी जिम्मेदार ठहराती हैं.
डीडब्ल्यू: हाल ही में एक प्रभावशाली कश्मीरी नेता जाकिर मूसा ने अलगाववादी मूवमेंट से दूरी बना ली और अल कायदा में शामिल हो गया. कुछ विशेषज्ञों को लगता ट्रेंड मूवमेंट क्या है है कि दशकों पुराना भारत विरोधी अभियान तेजी से इस्लामीकरण की तरफ बढ़ रहा है. क्या आप इस समीक्षा से सहमत हैं?
अग्नियेस्का कुसजेवस्का: जाकिर मूसा अब हिज्बुल मुजाहिद्दीन अलगाववादी गुट से नहीं जुड़ा है. संगठन ने माना है कि "हुर्रियत के नेताओं का सर कलम करने" वाला मूसा का बयान अस्वीकार्य है और यह उसकी निजी राय है.
मूसा ने कहा कि वह "कश्मीर में शरिया" लागू करना चाहता है और यह ताकत के जरिये होना चाहिए न कि जनमत के जरिये. चरमपंथ के विस्तार और तथाकथित "कश्मीरी तालिबान" के उदय की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता है. हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी की कश्मीर के प्रति कड़ी नीति हालात को भड़का रही है. अगर भारत ने घाटी में कड़ी नीति जारी रखी तो कश्मीरी मूवमेंट के कुछ धड़े ज्यादा कट्टर हो सकते हैं.
विशेषज्ञ कहते हैं कि कश्मीर के विवाद में पाकिस्तान 1980 के दशक के आखिर में सीधे शामिल हुआ, इसके बाद ही कश्मीर का नरमपंथी आंदोलन ज्यादा धार्मिक रंग लेने लगा. क्या आपको लगता है कि यह और ज्यादा कट्टर होता जा रहा है, शायद वैश्विक आतंकी संगठनों के संभावित तालमेल के चलते?
इलाके में इस्लामी चरमपंथ का उभार 1980 के दशक में अफगान युद्ध के दौरान आया. इसका सीधा असर कश्मीर विवाद पर भी पड़ा. 1990 में पाकिस्तान में ट्रेनिंग लेने वाले उग्रवादियों की घुसपैठ से भारत विरोधी आंदोलन ज्यादा इस्लामिक हो गया. मौजूद डाटा और तथ्यों की समीक्षा के आधार पर मुझे लगता है कि कश्मीर के लोग इस्लाम का विस्तारवाद नहीं चाहते, वे चरमपंथी संगठनों को भी पंसद नहीं करते और ज्यादातर शरिया लागू करने के भी खिलाफ हैं. कई देशों में फैले आंतकी गुटों के पास कश्मीर में बड़ा समर्थन नहीं है.
श्रीनगर में जब मैं "वेलकम तालिबान" की ग्रैफिटी देखती हूं तो मेरे दिमाग में दो बातें आती हैं. पहली, कुछ युवा कश्मीरी और उग्रवादी संगठन इन संगठनों के प्रति अपना हल्का सा समर्थन जताते हैं क्योंकि वे घाटी में मानवाधिकारों के हालात के खिलाफ विरोध करना चाहते हैं. दूसरी बात है, यह सुरक्षा तंत्र द्वारा भी किया जा सकता है, वे इनकाउंटरों और मानवाधिकार के हनन के अन्य मामलों के लिए बदनाम हैं.
नये कश्मीरी आंदोलन को ज्यादातर नाराज युवा चला रहे हैं, वे भारत और पाकिस्तान दोनों के खिलाफ नजर आते हैं. लेकिन यह 1990 से पहले के उस आंदोलन से कैसे अलग है, जब पाकिस्तान से उम्मीदें नहीं थीं?
यह अलग है क्योंकि बीते तीन दशकों में भूरणनैतिक आयाम बदल चुके हैं. यह इसलिए भी अलग है कि युवा पीढ़ी कई साल की हिंसा देख चुकी है और उनकी स्मृतियां और सदमे पुरानी पीढ़ी के मुकाबले अलग हैं. कश्मीर के युवा थके हैं, गुस्से में है और समाधान की सख्त जरूरत महसूस कर रहे हैं. सुरक्षा बलों के दुर्व्यवहार की वजह से प्रतिरोध ज्यादा लोगों को आकर्षित कर रहा है. युवा अपनी जान दांव पर लगाने को तैयार हो रहे हैं. प्रदर्शनकारी अब खुद को छुपा नहीं रहे हैं. वे सारे दुर्व्यवहार को रिकॉर्ड कर रहे हैं और फिर सोशल मीडिया के जरिये दुनिया से साझा ट्रेंड मूवमेंट क्या है कर रहे हैं. बीते साल जुलाई में सुरक्षा बलों के हाथों मरने वाला बुहरान वानी इस नए ट्रेंड में काफी कुशल था.
इंटरव्यू: शामिल शम्स
अग्निएश्का कुशेव्स्का वारसा यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल साइसेंस में प्रोफेसर हैं और थिंक टैंक पोलैंड एशिया रिसर्च सेंटर से जुड़ी हैं.
इन शेयरों में जबर्दस्त उछाल, क्या आपको करना चाहिए निवेश?
फाइनेंशियल सर्विसेज, कैपिटल गुड्स, कंस्ट्रक्शन, मेटल जैसे सेक्टरों और कुछ कंज्यूमर डिस्क्रीशनरी कंपनियों के शेयर हाई बीटा कैटेगरी के हैं.
जिस शेयर में मार्केट के मुकाबले कम मूवमेंट होता है, उसका बीटा एक से कम होता है. आमतौर पर हाई बीटा शेयर साइक्लिकल नेचर वाली कंपनियों के होते हैं. इनका संबंध बदलते इकनॉमिक, मैक्रो, सरकारी रेगुलेशंस या राजनीतिक संरक्षण से होता है.
फाइनेंशियल सर्विसेज, कैपिटल गुड्स, कंस्ट्रक्शन, मेटल जैसे सेक्टरों और कुछ कंज्यूमर डिस्क्रीशनरी कंपनियों के शेयर हाई बीटा कैटेगरी के हैं. इनमें से कुछ कंपनियां बैलेंसशीट पर भारी भरकम कर्ज वाली एसेट हैवी बिजनेस हैं.
क्वालिटी शेयर क्या होते हैं?
जहां तक क्वालिटी शेयरों की बात है तो पिछले कुछ वर्षों में व्यापक आर्थिक सुस्ती और कॉरपारेट प्रॉफिट ग्रोथ के बीच निवेशकों ने इनमें खूब दिलचस्पी ली है. आमतौर पर ऐसी कंपनियों की अर्निंग विजिबिलिटी हाई होती है. प्रॉफिटेबिलिटी बढ़ रही होती है. रिटर्न ऑन कैपिटल इम्प्लॉयड ज्यादा होता है. कैश फ्लो मजबूत होता है. कर्ज का स्तर कम होता है. ऐसे ज्यादातर शेयर लो बीटा यानी कम वोलेटिलिटी वाले होते हैं.
दिलचस्प यह है कि निफ्टी 50 में शामिल हाई बीटा शेयर सितंबर 2019 से कम बीटा वाले शेयरों को आउटपरफॉर्म कर रहे हैं. इसका खुलासा आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की रिपोर्ट में हुआ है.
हाई बीटा शेयरों में मजबूती जिंदल स्टील एंड पावर, टाटा स्टील और सेल की वजह से आई है. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज, इंडियाबुल्स हाउसिंग और एलआईसी हाउसिंग जैसे फाइनेंशियल सेक्टर के हाई बीटा शेयरों में भी तेजी का रुझान रहा है.
पिछले कुछ महीनों में तेजी से बढ़े हैं हाई बीटा स्टॉक
किन बातों से मिलता है बल?
विश्लेषकों का कहना है कि हाई बीटा शेयरों में तेजी को सरकारी उपायों से लगी उम्मीदों, ग्रोथ आउटलुक में सुधार और कम ब्याज दर से बढ़ावा मिलता है. आमतौर पर बाजार में नकदी के बढ़े स्तर से इनमें बनी तेजी को सपोर्ट मिलता है. मौजूदा तेजी को ग्लोबल लिक्विडिटी से ताकत मिल रही है.
ओम्नीसाइंस कैपिटल के सीईओ और चीफ इनवेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट विकास गुप्ता कहते हैं, ''ग्लोबल लेवल पर निवेशकों में रिस्क उठाने की क्षमता बढ़ी है. वे ज्यादा जोखिम वाले एसेटों पर दांव लगाने लगे हैं.''
इसकी बड़ी वजहों में दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों की तरफ से ब्याज दर में की गई कटौती, अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव में कमी और विकसित बाजारों में मंदी की घटती आशंका है.
घरेलू मोर्चे पर सरकार की तरफ से इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को दिए जा रहे मेगा सपोर्ट से हाई लोन ग्रोथ और प्राइवेट सेक्टर के कैपिटल एक्सपेंडिचर में इजाफे की उम्मीदें बढ़ी हैं. बजट में बड़े एलान होने की उम्मीदों ने भी हाई बीटा शेयरों में तेजी को हवा दी है.
बाजार के कुछ जानकारों को लगता है कि क्वालिटी शेयरों से हाई बीटा शेयरों में शिफ्ट हुई दिलचस्पी गहरी है. आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के मुताबिक, ''ट्रेंड में आया बदलाव इस बात का संकेत है कि निवेशकों में रिस्क से बचने का रुझान अब बदल रहा है. वे अब ज्यादा रिस्क उठाने को तैयार हैं.''
टाटा स्टील, जुबिलेंट फूडवर्क्स, टाटा मोटर्स, एसबीआई और अल्ट्राटेक इसके पसंदीदा शेयर हैं. इक्विरस सिक्योरिटीज के मुताबिक, वैसे तो कमोडिटी शेयर पहले ही काफी चढ़ चुके हैं. लेकिन, उनमें तेजी की गुंजाइश अब भी है.
एंजेल ब्रोकिंग में डीवीपी, इक्विटी स्ट्रैटेजिस्ट ज्योति रॉय कहती हैं कि इन हालात में बाजार में व्यापक तेजी का रुझान बनेगा क्योंकि वैल्यूएशन आकर्षक बना हुआ है. इसके उलट महंगे हो चुके क्वालिटी शेयरों ने बाजार को अंडरपरफॉर्म करना शुरू कर दिया है. यह खासतौर से उन शेयरों के साथ रहा है जो बाजार की उम्मीदों के मुताबिक बिजनेस ग्रोथ हासिल नहीं कर पा रही हैं. दिग्गज इंडेक्स शेयरों के साथ ऐसी ही स्थिति बनी है.
क्या आपको करना चाहिए निवेश?
विश्लेषक हाई बीटा शेयरों में तेजी पर दांव संभलकर लगाने की सलाह दे रहे हैं. इनमें तेजी आई तो है लेकिन घरेलू बाजार में अब भी ज्यादा रिस्क उठाने से परहेज हो रहा है. आउटपरफॉर्मेंस चुनिंदा बड़े हाई बीटा शेयरों ने दी है.
हाई बीटा मिड और स्मॉलकैप शेयरों में तेजी जोर नहीं पकड़ पाई है. लेकिन, हाई बीटा ट्रेंड मूवमेंट क्या है शेयरों में तेजी का ट्रेंड बनने पर कमजोर क्वालिटी वाले शेयरों में भी उछाल आ सकती है. गुप्ता कहते हैं, ''हाई बीटा शेयरों पर दांव लगाते वक्त निवेशकों को यह जरूर देखना चाहिए कि कहीं उसके ऊपर कर्ज का बोझ ज्यादा तो नहीं है.''
हिंदी में पर्सनल फाइनेंस और शेयर बाजार के नियमित अपडेट्स के लिए लाइक करें हमारा फेसबुक पेज. इस पेज को लाइक करने के लिए यहां क्लिक करें.
इन शेयरों में जबर्दस्त उछाल, क्या आपको करना चाहिए निवेश?
फाइनेंशियल सर्विसेज, कैपिटल गुड्स, कंस्ट्रक्शन, मेटल जैसे सेक्टरों और कुछ कंज्यूमर डिस्क्रीशनरी कंपनियों के शेयर हाई बीटा कैटेगरी के हैं.
जिस शेयर में मार्केट के मुकाबले कम मूवमेंट होता है, उसका बीटा एक से कम होता है. आमतौर पर हाई बीटा शेयर साइक्लिकल नेचर वाली कंपनियों के होते हैं. इनका संबंध बदलते इकनॉमिक, मैक्रो, सरकारी रेगुलेशंस या राजनीतिक संरक्षण से होता है.
फाइनेंशियल सर्विसेज, कैपिटल गुड्स, कंस्ट्रक्शन, मेटल जैसे सेक्टरों और कुछ कंज्यूमर डिस्क्रीशनरी कंपनियों के शेयर हाई बीटा कैटेगरी के हैं. इनमें से कुछ कंपनियां बैलेंसशीट पर भारी भरकम कर्ज वाली एसेट हैवी बिजनेस हैं.
क्वालिटी शेयर क्या होते हैं?
जहां तक क्वालिटी शेयरों की बात है तो पिछले कुछ वर्षों में व्यापक आर्थिक सुस्ती और कॉरपारेट प्रॉफिट ग्रोथ के बीच निवेशकों ने इनमें खूब दिलचस्पी ली है. आमतौर पर ऐसी कंपनियों की अर्निंग विजिबिलिटी हाई होती है. प्रॉफिटेबिलिटी बढ़ रही होती है. रिटर्न ऑन कैपिटल इम्प्लॉयड ज्यादा होता है. कैश फ्लो मजबूत होता है. कर्ज का स्तर कम होता है. ऐसे ज्यादातर शेयर लो बीटा यानी कम वोलेटिलिटी वाले होते हैं.
दिलचस्प यह है कि निफ्टी 50 में शामिल हाई बीटा शेयर सितंबर 2019 से कम बीटा वाले शेयरों को आउटपरफॉर्म कर रहे हैं. इसका खुलासा आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की रिपोर्ट में हुआ है.
हाई बीटा शेयरों में मजबूती जिंदल स्टील एंड पावर, टाटा स्टील और सेल की वजह से आई है. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज, इंडियाबुल्स हाउसिंग और एलआईसी हाउसिंग जैसे फाइनेंशियल सेक्टर के हाई बीटा शेयरों में भी तेजी का रुझान रहा है.
पिछले कुछ महीनों में तेजी से बढ़े हैं हाई बीटा स्टॉक
किन बातों से मिलता है बल?
विश्लेषकों का कहना है कि हाई बीटा शेयरों में तेजी को सरकारी उपायों से लगी उम्मीदों, ग्रोथ आउटलुक में सुधार और कम ब्याज दर से बढ़ावा मिलता है. आमतौर पर बाजार में नकदी के बढ़े स्तर से इनमें बनी तेजी को सपोर्ट मिलता है. मौजूदा तेजी को ग्लोबल लिक्विडिटी से ताकत मिल रही है.
ओम्नीसाइंस कैपिटल के सीईओ और चीफ इनवेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट विकास गुप्ता कहते हैं, ''ग्लोबल लेवल पर निवेशकों में रिस्क उठाने की क्षमता बढ़ी है. वे ज्यादा जोखिम वाले एसेटों पर दांव लगाने लगे हैं.''
इसकी बड़ी वजहों में दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों की तरफ से ब्याज दर में की गई कटौती, अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव में कमी और विकसित बाजारों में मंदी की घटती आशंका है.
घरेलू मोर्चे पर सरकार की तरफ से इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को दिए जा रहे मेगा सपोर्ट से हाई लोन ग्रोथ और प्राइवेट सेक्टर के कैपिटल एक्सपेंडिचर में इजाफे की उम्मीदें बढ़ी हैं. बजट में बड़े एलान होने की उम्मीदों ने भी हाई बीटा शेयरों में तेजी को हवा दी है.
बाजार के कुछ जानकारों को लगता है कि क्वालिटी शेयरों से हाई बीटा शेयरों में शिफ्ट हुई दिलचस्पी गहरी है. आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के मुताबिक, ''ट्रेंड में आया बदलाव इस बात का संकेत है कि निवेशकों में रिस्क से बचने का रुझान अब बदल रहा है. वे अब ज्यादा रिस्क उठाने को तैयार हैं.''
टाटा स्टील, जुबिलेंट फूडवर्क्स, टाटा मोटर्स, एसबीआई और अल्ट्राटेक इसके पसंदीदा शेयर हैं. इक्विरस सिक्योरिटीज के मुताबिक, वैसे तो कमोडिटी शेयर पहले ही काफी चढ़ चुके हैं. लेकिन, उनमें तेजी की गुंजाइश अब भी है.
एंजेल ब्रोकिंग में डीवीपी, इक्विटी स्ट्रैटेजिस्ट ज्योति रॉय कहती हैं कि इन हालात में बाजार में व्यापक तेजी का रुझान बनेगा क्योंकि वैल्यूएशन आकर्षक बना हुआ है. इसके उलट महंगे हो चुके क्वालिटी शेयरों ने बाजार को अंडरपरफॉर्म करना शुरू कर दिया ट्रेंड मूवमेंट क्या है है. यह खासतौर से उन शेयरों के साथ रहा है जो बाजार की उम्मीदों के मुताबिक बिजनेस ग्रोथ हासिल नहीं कर पा रही हैं. दिग्गज इंडेक्स शेयरों के साथ ऐसी ही स्थिति बनी है.
क्या आपको करना चाहिए निवेश?
विश्लेषक हाई बीटा शेयरों में तेजी पर दांव संभलकर लगाने की सलाह दे रहे हैं. इनमें तेजी आई तो है लेकिन घरेलू बाजार में अब भी ज्यादा रिस्क उठाने से परहेज हो रहा है. आउटपरफॉर्मेंस चुनिंदा बड़े हाई बीटा शेयरों ने दी है.
हाई बीटा मिड और स्मॉलकैप शेयरों में तेजी जोर नहीं पकड़ पाई है. लेकिन, हाई बीटा शेयरों में तेजी का ट्रेंड बनने पर कमजोर क्वालिटी वाले शेयरों में भी उछाल आ सकती है. गुप्ता कहते हैं, ''हाई बीटा शेयरों पर दांव लगाते वक्त निवेशकों को यह जरूर देखना चाहिए कि कहीं उसके ऊपर कर्ज का बोझ ज्यादा तो नहीं है.''
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What is Price Action Trading, और कैसे करे?
शेयर बाजार में काम करने वालों के लिए किसी भी शेयर का भाव सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है आप लोगों ने शेयर बाजार में Price action का नाम बहुत तो बार सुना होगा। Price action के द्वारा हम बाजार का गतिविधि को जानने की कोशिश करते हैं बाजार किसी ना किसी ट्रेंड में चलता है। चाहे वह ट्रेंड अप ट्रेंड हो या फिर डाउनट्रेंड हो या मार्केट रेंज बाउंड हो सभी जगहों पर हमारा प्राइस एक्शन हमें ट्रेडिंग या इन्वेस्टमेंट में मदद करता है।
प्राइस का निर्भरता
जैसा कि हम लोग जानते हैं किसी भी कंपनी के शेयर का भाव उस कंपनी की दूरदर्शिता, गवर्नमेंट की पॉलिसी, अर्थव्यवस्था, न्यूज़, सेंटीमेंट, इत्यादि कई चीजों पर निर्भर करती हैं इन सभी कारणों से शेयर के भाव में उतार और चढ़ाव आते रहते हैं। अतः शेयर बाजार में काम करने वाले लोग एक बहुत ही अच्छी कहावत कहते हैं “भाव भगवान है”।
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प्राइस एक्शन क्या है?
प्राइस एक्शन में सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट मार्केट के ट्रेंड को समझना होता है मार्केट में 3 तरीके के ट्रेंड होते हैं अपट्रेंड डाउनट्रेंड और कंसोलिडेशन इन तीन ट्रेंडो को पता करने में सबसे सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जाता है Price action ट्रेडिंग का किया जाता है।
जब कभी भी मार्केट में प्राइस का मूव होता है तो प्राइस एक ही डायरेक्शन में नही चलता प्राइस कभी ऊपर तो कभी नीचे चलता है इसी तरह लगातार नीचे नही जाता है उस वक्त भी प्राइस ऊपर और फिर नीचे जाता है तो प्राइस का मूवमेंट कभी भी एक डायरेक्शन में नही होती है इसी क्रम में प्राइस के मूव को Price action कहते है।
सपोर्ट और रेजिस्टेंट क्या है इसे भी पढ़े
प्राइस एक्शन को कैसे समझे:
प्राइस एक्शन को समझने के लिए एक चित्र का सहारा ट्रेंड मूवमेंट क्या है लेते है जो नीचे है।
Fig.1
Price action को समझना बहुत ही आसान है अगर प्राइस एक हाई लगाने के बाद Low लगता है फिर एक हाई लगाता है जो पहले के हाई से कम होता है और फिर लो को नीचे ब्रेक करता है, और एक नया लो लगता है और पुनः एक हाई लगाता है जैसा कि हमने fig-1 में दिखाया गया है।
Top1 के बाद Bottom 1 फिर एक top 2 लगाता है और टॉप लगने के बाद प्राइस नीचे आ के एक नया bottom 2 लगाता है ये प्रक्रम आगे चलता है इस ही प्राइस एक्शन का जाता है।
प्राइस एक्शन पर ट्रेड कैसे करें?
Price action पर ट्रेड करने के लिए सबसे पहले प्राइस एक्शन को समझना बहुत जरूरी होता है एक बार अगर प्राइस एक्शन समझ आने लग जाए तो फिर इस पर ट्रेड करना भी आसान हो जाता है|
प्राइस एक्शन को समझने के लिए हमने ऊपर बात किया है कि आप इसे कैसे समझ सकते हो प्राइस एक्शन एक सबसे सिंपल तरीका है इसमें ना ही कोई इंडिकेटर का इस्तेमाल किया जाता है और ना ही किसी और दूसरे तरीके का केवल आप प्राइस के मूवमेंट को देखते हैं कि किस तरीके से प्राइस ऊपर या नीचे जा रहा है जिसके आधार पर अभी मार्केट का सपोर्ट रेजिस्टेंस क्या है यह सारे चीजों को समझते हुए देखते हुए अगर आप ट्रेड करते हैं तो आपका ट्रेडिंग स्टाइल प्राइस एक्शन का कहा जाएगा।
आइए अब प्राइस एक्शन पर ट्रेड कैसे करें इसको समझने के लिए एक चित्र का इस्तेमाल करते हैं जिसके बाद हम अच्छे से प्राइस एक्शन को समझते हुए काम कर सकते हैं।
Fig:- 2
चित्र दो में आप देख रहे हैं कि प्राइस टॉप वन से गिरता हुआ नीचे आता है बॉटम वन लगाता है फिर वहां से एक दूसरा टॉप 2 लगाता है जो पहले वाले टॉप से नीचे है अब हम बॉटम वन के पास एक लाइन बनाते हैं और अगर बॉटम वन का ब्रेक डाउन होता है या प्राइस उसके नीचे ट्रेड करना स्टार्ट करता है तो हम वहां पर सेलिंग का पोजीशन बनाते हैं और उसके ऊपर का स्टॉप लॉस रखते हैं जोकि चित्र में दिखाया गया है टारगेट के लिए नीचे का कोई सपोर्ट एरिया ढूंढते हैं जो हमारा टारगेट होता है।
इसी तरीके से अगर प्राइस एक्शन के द्वारा buying का पोजीशन बनाना है तो इसके उल्टा हम सबसे पहले Chart Pattern को देखने का प्रयास करते हैं जिसमें एक अच्छी खासी selling के बाद बॉटम लगता है फिर एक top लगता है और फिर से प्राइस नीचे के साइड आता है लेकिन अबकी बार अपने पहले वाले बॉटम को नही तोड़ पता और फिर टॉप के पास अगर आकर और ऊपर निकलता है तो buying का postion बनाते हैं। यहां स्टॉप लॉस के लिए बॉटम 2 का इस्तेमाल करते है और टारगेट के लिए नजदीक का कोई रेजिस्टेंस का चयन करते है
यह ट्रेडिंग का तरीका पूर्णत प्राइस के मूवमेंट पर आधारित होता है। ट्रेडर ट्रेडिंग लिए प्राइस को फॉलो करता है। Price action trading में कुछ ज्यादा अलग अलग चीजों को देखने की जरूरत नहीं होती है बस प्राइस का मूवमेंट क्या कई है कैसे काम कर रहा है इसको देख के ही ट्रेड कर लेते है। प्राइस एक्शन ट्रेडिंग में ट्रेंड भी अच्छे से समझ आ जाता है क्यू की ट्रेंड के आधार पर ही अपना पोजिशन बनाया जाता है।
Price action ट्रेडिंग में कैडल को भी ध्यान में रख कर अच्छे से टॉप बॉटम का ब्रेक आउट और ब्रेकडाउन को और अच्छे से समझ सकते है ताकि ट्रेडिंग एक्यूरेसी को और बढ़ाया जा सके जिससे लॉस कम से कम हो । कैंडल भी अलग अलग तरह के होते है जिससे अलग साइकोलॉजी पता चलता है की बायर और सेलर के बीच का सेंटीमेंट क्या है बाजार में बायर और सेलर क्या सोच रहे है इन सारे बातो का पता हमे अलग अलग कैंडल टाइप से पता लग जाता है ताकि हम अपने पोजिशन को और अच्छे तरीके से होल्ड कर सके और मार्केट से प्रॉफिट को बना सके।
अड्डामार्केट वेबसाइट पर प्रकाशित जानकारी विभिन्न प्रकार के तथ्य सभी विश्लेषण अनुमान बाजार अध्ययन या अन्य सामान्य मूल्यांकन या जानकारी प्रदान करता है कोई भी निवेश निर्णय लेने से पहले कृपया अपने सेबी रजिस्टर्ड एडवाइजर से सलाह मशवरा कर ले यहां पर प्रदान की गई जानकारी के आधार पर ट्रेड या इन्वेस्ट करने पर होने वाले प्रोफिट या लॉस का जिम्मेदार आप खुद होंगे अतः कोई भी ट्रेड पूरी तरह जिम्मेदारी से करें ताकि कम से कम लॉस हो।
जानें क्या है मल्टी डाइमेंशनल हेयर कलर ट्रेंड
जब आप अपने बालों को कलर करने के बारे में सोचती हैं, उस वक़्त आपके जेहन में कई सारी बातें आती हैं, कई सवाल भी आने लगते हैं कि आपको किस सलोन में जाना चाहिए, कौन सा कलर टेक्निक आपके लिए अच्छा होगा, कौन सा कलर आपके हेयर टेक्सचर को सूट करेगा? क्या एक सेशन से ही बालों का मेकओवर होना संभव है? तो ऐसे में अगर हम आपसे कहें कि हम आपको हेयर कलर ट्रेंड के बारे में बताएँगे, जो आपके बालों को अलग तरह से डाइमेंशन, मूवमेंट और डेप्थ देगा तो? जी हाँ, आज हम कुछ ऐसे ही कलर के बारे में बताने जा रहे हैं आपको।
मल्टी डाइमेंशनल हेयर कलर एक ऐसा ट्रेंडी फ्री हैण्ड टेक्निक है, जो सलोन स्टाइलिस्ट काफी समय से अपना रहे हैं, यह वर्जिन या बेसिक डाई किये हुए कलर पर कमाल तरीके से काम करता है। इस ट्रेंड की सबसे खास बात क्या है? अगर आप हमसे यह पूछेंगे तो हम आपसे कहेंगे कि आपके स्टाइलिस्ट को यह तय करना चाहिए कि आपके बालों के लिए उन्हें कौन सा कलर बेहतरीन लग रहा है, जो आपके फेस को भी सूट करे।
मल्टी डाइमेंशनल हेयर कलर कैसे दिखते हैं?
इसको एकदम सामान्य शब्दों में कहें तो मल्टी डाइमेंशनल हेयर कलर में एक ही कलर की फैमिली से लिए लाइट और डार्क शेड्स के साथ प्ले किया जाता है , जैसे कि मान लीजिये कि अगर आप अपने बालों में ब्राउन नेचुरल हेयर कलर चाहती हैं तो आपका स्टाइलिस्ट लाइट चेस्टनट ब्राउन या डीप कॉपर शेड्स को मोटी हाइलाइट्स या पतली स्लेंडर टीजी लाइट्स के फॉर्म में, मिक्स एंड मैच करेगा। अगर लाइटर शेड्स को आपके फेस के करीब रखा जाये तो यह आपके कॉम्प्लेक्शन को ब्राइटनिंग इफेक्ट देगा।
मल्टी डाइमेंशनल हेयर कलर के फायदे
मल्टी डाइमेंशनल हेयर कलर सर्विस में क्या होता है और इस हेयर कलर ट्रेंड के फायदे हैं, आइये उन पर नजर डालें।
1 . यह आपके बेस कलर को पूरी तरह से नहीं बदलता है, लेकिन अगर आप इसे डार्क और लाइट टोंस से लेयर करें तो, आप इसे उभार सकते हैं, इसलिए अगर आप चाहते हैं कि अपने बालों का नेचुरल टिंट को खोये बगैर आप हेयर कलर करें, तो यह सर्विस आपके लिए बेस्ट है।
2 . वेवी और कर्ली हेयर में 3 डी इफ़ेक्ट क्रिएट करने के लिए आप मल्टी डाइमेंशनल कलर का इस्तेमाल कर सकती हैं। अगर आप महंगे या एक्सपेंसिव दिखने वाले कलर करवाना चाहती हैं वो भी बगैर ज्यादा खर्च के, तो यह सर्विस आपके लिए एकदम परफेक्ट है।
3. मल्टी डाइमेंशनल हेयर कलरिंग को आप बालों के कंटूर के रूप में देखें। अगर आप अपने बालों के एंड्स में थोड़ा वॉल्यूम जोड़ना चाहती हैं तो आपके लिए यह टेक्निक बेस्ट हैं।