परिचय और नियम व्यापार

व्यावसायिक सन्नियम (Business Law ) क्या होता है।व्यवसायिक सन्नियम का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definitions of Business Law)
व्यावसायिक सन्नियम (Business Law ) को जानने के लिए यह आवश्यक है कि हम व्यवसाय अंग्रेजी भाषा के Business (बिज्-निस) का हिदी समानार्थी शब्द है। इसको जाने। अंग्रेजी में इसका आशय है। ‘किसी कार्य में व्यस्त रहना। इस प्रकार व्यवसाय का शाब्दिक अर्थ हैं- किसी न किसी आर्थिक क्रिया में व्यस्त रहना।
उदाहरण के लिए टाटा ग्रुप वे नमक से लेकर ट्रक एवं बसों तक बहुत सी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। और उन्हें हम और आप जैसे लोगों को बेचते हैं। इस प्रक्रिया में वे लाभ कमाते हैं । जिसको व्यवसाय कहा जाता है। हम दुकान वाले को देखे तो वह बड़ी मात्रा में माल खरीदता है उन्हें छोटी-छोटी मात्रा में बेचता है। वह इस प्रक्रिया में लाभ कमाता है। व्यवसाय में लगे हुए ये सभी व्यक्ति व्यवसायी कहलाते हैं।
वही हम कानून (law ) को देखे तो विलियम एनसन ने कानून के उद्देश्य एवं परिणामों को बताते हुए कहा है कि- “कानून का उद्देश्य आदेश देना है। और इसके परिणाम से मनुष्य भविष्य के लिए सुरक्षा का अनुभव करेगा। यद्यपि मानव के कार्य प्रकृति की एकरूपता से नहीं मिलाये जा सकते फिर भी मनुष्य ने कानून के द्वारा इस एकरूपता के पास आने का प्रयत्न किया है।”
व्यापारिक या व्यावसायिक शब्द के अन्तर्गत प्रत्येक प्रकार के लेन-देन, क्रय-विक्रय, यातायात, बैंकिंग, बीमा, संचार, संदेशवहन के साधन तथा उद्योग आदि सभी क्रियाएं शामिल की जाती हैं। सन्नियम से आशय यहा उन नियमों, उपनियमों और अधिनियमों से है। जो राज्य द्वारा समय-समय पर बनाए व लागू किए जाते हैं ।
और जिनका उपयोग राज्य सत्ता के द्वारा समाज में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखने हेतु मानवीय व्यवहारों को व्यवस्थित एवं नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार व्यापारिक सन्नियम का आशय उन सभी संवैधानिक नियमों (कानूनों) से है । जो वाणिज्य एवं व्यापार के संचालन में प्रत्यक्ष रूप से लागू होते है।
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इसकी परिभाषा इस प्रकार है।
सेन एवं मित्रा के अनुसार-
” कानून का वह भाग है। जो व्यवसायिक वर्ग के बीच होने वाले व्यवहारों को संचालित करता है। तथा वह व्यावसायिक अथवा व्यावसायिक सन्नियम कहलाता परिचय और नियम व्यापार है।”
ए० के० बनर्जी के अनुसार-
“व्यापारिक अथवा वाणिज्यिक सन्नियम से आशय राजनियम के उस भाग से है । जिसके अंतर्गत व्यापार या वाणिज्य में संलग्न व्यक्तियों के मध्य हुए व्यवहारों से उत्पन्न कर्तव्यों एवं दायित्वों का वर्णन करता है।”
एम. सी. शुक्ल के अनुसार –
” व्यावसायिक सन्नियम को राजनियम की उस शाखा के रूप में परिभाषित किया जाता है। जिसमे व्यावसायिक सम्पति के संबंध में व्यावसायिक व्यवहारों से उत्पन्न हुए व्यापारियों के अधिकारों एवं दायित्वों से संबंध रखती है।”
प्रो० ए० के० सेन के अनुसार-
“व्यापारिक सन्नियम के अन्तर्गत वह सन्नियम आता है। जो व्यापारियों, बैंकर्स तथा व्यवसायियों के सामान्य व्यवहारों से सम्बन्धित हैं और जो सम्पत्ति के अधिकारों एवं वाणिज्य में संलग्न कम्पनियों के सम्बन्धों से सम्बन्ध रखते हैं।”
व्यापारिक सन्नियम का क्षेत्र या विषय–वस्तु(Scope or Subject-matter of Commercial Law)-
व्यापारिक सन्नियम का क्षेत्र बहुत बड़ा है। क्योंकि इसके अन्तर्गत जो अधिनियम आते हैं वह केवल व्यापारिक गतिविधियों से ही होता है। वर्ना समाज के प्रत्येक व्यक्ति से होता है। निम्नलिखित अधिनियमों को व्यापारिक सन्नियम के क्षेत्र में सम्मिलित किया जाता है।
1. अनुबन्ध अधिनियम (Contract Act)
2. वस्तु-विक्रय अधिनियम (The Sales of Goods Act)
3. साझेदारी अधिनियम (Partnership Act)
4. कम्पनी अधिनियम (Company Act)
5. बीमा सन्नियम (Law of Insurance)
6. पंच निर्णय अधिनियम (Arbitration Act)
7. बैंकिंग नियमन ( banking law )
8. पेटेंट ट्रेडमार्क एवं कॉपीराइट अधिनियम (Patent, Trademark and Copyright Act)
9. विनिमय साध्य विलेख अधिनियम (The Negotiable Instrument Act)
10. दिवाला अधिनियम (Insolvency Act)
11. सार्वजनिक वाहक तथा दुलाई और जहाजी भाड़ा सम्बन्धी अधिनियम (Law Relating to Common Carriers and Carriage and Shipping)
भारतीय व्यापारिक सन्नियम के स्रोत(Sources of Indian Commercial Law)-
परिनियम (Statutes)-
यह किसी भी देश की संसद अथवा विधान सभा द्वारा पारित किए गए अधिनियम परिनियम (Statute) होते है। भारतीय परिचय और नियम व्यापार व्यापारिक सन्नियम के निर्माण में भारतीय संसद एवं विधानसभाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। अनुबन्ध अधिनियम, वस्तु-विक्रय अधिनियम, साझेदारी अधिनियम और कम्पनी अधिनियम आदि सभी इसी प्रकार के अधिनियम हैं। इनमें से अधिकांश सर्वप्रथम इंग्लैंड की संसद में लागू हुए थे बाद मे भारतीय परिस्थितियों के अनुसार इनमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन करके यहाँ की संसद द्वारा उन्हें अधिनियम का रूप दिया गया है।
वास्तव में अधिनियम की आवश्यकता हमें उस समय महसूस होती है। जब संबंधित पक्षकारों के बीच किसी विषय को लेकर आपस में झगड़ा उत्पन्न हो जाता है। ऐसे दशा में झगड़े को निपटाने के लिए कुछ नियमों तथा परिनियमों का सहारा लेना जरूरी हो जाता है। जिसके द्वारा फैसले को दोनों पक्षकार स्वीकार करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । यदि किसी कारणवश अधिनियम न होता तो निश्चित रूप से इन कठिनाइयों का हल निकालना अति कठिन हो जाता । अत: अधिनियम की आवश्यकता प्रकट हुई और इसका विकास हुआ।
भारतीय रीति–रिवाज (Indian Customs and Usages)-
भारत मे रीति-रिवाजों का बड़ा महत्व होता है। कभी-कभी रीति-रिवाजों का महत्व परिनियमों से भी अधिक होता है। जैसा देखने को मिलता है कि भारतीय व्यापारिक सन्नियम रीति-रिवाजों को प्राय: सब स्थानों पर मान्यता देते हैं। हुंडी से सम्बन्धित अधिकतर नियम रीति-रिवाजों पर ही बने हैं।और इसका पालन होता है।
इंग्लिश कॉमन–लॉ (English Common Law)-
भारतीय व्यापारिक सन्नियम इंग्लैंड के न्यायाधीशों के निर्णयों पर आधारित होता हैं। यह इंग्लिश कॉमन लॉ इंग्लैंड का सबसे पुराना राज नियम माना जाता है।और बाद मे यह भारत मे भी माना जाना लगा। जहाँ किसी विषय के सम्बन्ध में कोई परिनियम नहीं है। अथवा जहाँ वह स्पष्ट एवं भ्रमात्मक है। वहाँ भारतीय न्यायालय इंग्लिश कॉमन लॉ का सहारा लेते हैं। इतना ही नहीं परिनियमों की व्याख्या करते समय भी इंग्लिश कॉमन लॉ का प्रयोग किया जाता है।
प्रमुख निर्णय (Leading Cases)-
इसमे हाई कोर्ट (High Court) एवं सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा दिए गए आधारभूत निर्णय भविष्य में उत्पन्न होने वाले समान विवादों के हल के लिए सन्नियम बन जाते हैं । उसी अनुसार निर्णय दिये जाते है। अर्थात् ऐसे निर्णय भविष्य में उन्हीं परिस्थितियों में उसी प्रकार लागू किए जाते हैं। और यह भविष्य के लिए सुरक्षित होते है। अत: इस प्रकार के निर्णय भी भारतीय व्यापारिक सन्नियम के प्रमुख स्रोत हैं।
भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला (IITF)
एम्पोरियम विभाग द्वारा शासन के निर्देशानुसार प्रतिवर्ष 14-27 नवम्बर के दौरान नई दिल्ली स्थित प्रगति मैदान में भारतीय अंर्तराष्ट्रीय व्यापार मेले में राज्य शासन की ओर से विगत 41 वर्षो से नोडल एजेंसी के रूप में भाग लिया जा रहा है। उक्त मेले में लघु उद्योग निगम के संपदा/निर्माण विभाग के सहयोग से म.प्र. मंडप का निर्माण एवं साज-सज्जा का कार्य किया जाता है ।
मध्यप्रदेश दिवस समारोह का सांस्कृतिक भव्यता के साथ 41वें भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला 2022 में हुआ आयोजन
नई दिल्ली : प्रगति मैदान में चल रहे 41वें भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला 2022 में आज मध्यप्रदेश दिवस समारोह का सांस्कृतिक भव्यता के साथ आयोजन हुआ।
कार्यक्रम का शुभारम्भ श्रीमती इमरती देवी सुमन, अध्यक्ष लघु उद्योग निगम, श्री पी. नरहरि सचिव, सूक्ष्य लघु और मध्यम उद्यम, श्री रोहित सिंह, प्रबंध संचालक , लघु उद्योग निगम और श्री पंकज राग, आवासीय आयुक्त द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। इस कार्यक्रम में मध्यप्रदेश लघु उद्योग निगम, मध्यप्रदेश शासन के अन्य अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित परिचय और नियम व्यापार थे।
कार्यक्रम के दौरान स्वागत अभिभाषण में श्री नरहरि ने बताया कि 'आजादी की 75वीं वर्षगांठ' के अवसर पर आयोजित इस व्यापार मेले में मध्यप्रदेश मण्डप का निर्माण ’’वोकल फार लोकल, लोकल टू ग्लोबल’’ थीम पर किया गया है।
वर्ष 2022 में " वोकल फार लोकल, लोकल टू ग्लोबल " की थीम पर सफलतापूर्वक भाग लिया गया ।
भारतीय अंर्तराष्ट्रीय व्यापार मेले में प्रतिवर्ष ज्यूरी द्वारा विभिन्न प्रदेशों के मंडप में से सर्वश्रेष्ठ मंडप का चुनाव किया जाकर प्रथम एवं द्वितीय पुरस्कार प्रदान किया जाता है । मध्यप्रदेश मंडप को विभिन्न 09 अवसरो पर उत्कृष्ट डिस्प्ले हेतु प्रथम एवं द्वितीय पुरस्कार निम्नानुसार प्राप्त हुए हैः-
वर्ष | पुरस्कार |
1998 | प्रथम पुरस्कार - गोल्ड |
1999 | द्वितीय पुरस्कार - सिल्वर |
2004 | प्रथम पुरस्कार उत्कृष्ट डिस्प्ले हेतु |
2006 | उत्कृष्ट डिस्प्ले पुरस्कार |
2011 | द्वितीय पुरस्कार - सिल्वर |
2013 | द्वितीय पुरस्कार - सिल्वर |
2014 | द्वितीय पुरस्कार - सिल्वर |
2015 | द्वितीय पुरस्कार - सिल्वर |
2021 | उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु विषेष प्रशंसा प्रमाण पत्र |
सांस्कृतिक कार्यक्रम
पुरस्कार ( 41वें भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला 2022)
आरसेप का विकल्प खुला रहे तो बेहतर
भारत ने गत वर्ष क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसेप) में शामिल नहीं होने का निर्णय लिया था। इस संधि से संबंधित वार्ता अंतिम दौर की ओर बढ़ रही है और वर्ष 2020 के अंत तक यह समझौता अंतिम रूप ले लेगा। भारत ऐसी क्षेत्रीय व्यापार व्यवस्था को स्वीकार करने को तैयार नहीं था जिसमें उसे आयात वृद्धि से निपटने की सीमित पात्रता थी। उत्पादों के मूल स्थान से संबंधित नियमों को लेकर परिचय और नियम व्यापार कुछ मसले थे। मूल स्थान वाला मुद्दा पहले ही आपूर्ति शृंखला आधारित क्षेत्रीय रूप से एकीकृत व्यापार नेटवर्क में निहित है। आमतौर पर किसी भी कारोबारी साझेदार का उत्पाद कई अन्य देशों से आए घटकों और वस्तुओं से बनता है। किसी विशेष मुल्क को ध्यान में रखकर किए गए कारोबारी उपाय और शुल्क परिचय और नियम व्यापार बहुत मायने नहीं रखते। भारत यदि इन आपूर्ति शृंखलाओं का हिस्सा नहीं है तो इसमें उसका ही नुकसान है। इसलिए क्योंकि विभिन्न कारोबारी साझेदारों के साथ अलहदा शुल्क व्यवहार एक जटिल कवायद है।
बहरहाल, यदि भारत मानता है कि उसके कारोबार का भविष्य क्षेत्रीय और वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनने में है तो आरसेप से बाहर रहने का निर्णय विरोधाभासी है। यदि भारतीय बाजार के आकार का लाभ लेते हुए आरसेप की आपूर्ति शृंखला में शामिल हुआ जाता कहीं अधिक बेहतर रणनीति होती। इससे बुनियादी ढांचे, व्यापार सुविधा उपायों और गुणवत्ता आदि में तत्काल सुधार देखने को मिलता क्योंकि आपूर्ति शृंखलाओं के लिए यह ज्यादा उपयोगी होता है। आपूर्ति शृंखला केवल कम शुल्क वाली व्यवस्था में कारगर हो सकती है जहां घटकों और कच्चे माल का उदारतापूर्वक आयात किया जा सके।
ताजातरीन आर्थिक परिचय और नियम व्यापार समीक्षा में भी यह अनुशंसा की गई है कि भारत को चीन जैसा, श्रम आधारित निर्यात दायरा तैयार करना चाहिए और देश में बढ़ते युवाओं के लिए रोजगार के जबरदस्त अवसर तैयार करने चाहिए। यहां आवश्यकता यह है कि नेटवर्क उत्पादों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। ये वे उत्पाद होते हैं जो तमाम मूल्य शृंखलाओं में तैयार होते हैं जहां असेंबली शृंखला बड़े पैमाने पर इनका उत्पादन करती हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से देश में असेंबलिंग का काम मेक इन इंडिया के साथ एकीकृत होगा। बजट पेश करते समय अपने भाषण में वित्त मंत्री ने आर्थिक समीक्षा की बात दोहराते हुए कहा कि भारत को नेटवक्र्ड वस्तुएं बनाने की आवश्यकता है। ऐसा करके वह वैश्विक मूल्य शृंखला का हिस्सा बन सकता है। इससे निवेश ज्यादा आता है और युवाओं को ज्यादा रोजगार प्राप्त होते हैं।
इस संदर्भ में भारत को भी आरसेप को लेकर खुले दिमाग का परिचय देना चाहिए। बाली में गत 3 और 4 फरवरी को आरसेप सदस्यों की अनौपचारिक बैठक में शामिल होने के आसियान के न्योते का सकारात्मक प्रत्युत्तर इसी क्रम में था। वार्ताकारों को असेंबल इन इंडिया नीति को बातचीत की टेबल पर लाना था। वह साझेदारों की हमारी कुछ चिंताओं को दूर करने की इच्छाशक्ति का भी परीक्षण कर सकता था। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह अवसर गंवा दिया गया। जैसा कि हमने पहले कहा आपूर्ति शृंखला कम शुल्क की व्यवस्था में काम करती है। जबकि बीते चार बजट में शुल्क बढ़ाया गया है। भारत आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण के 25 वर्ष के रुझान से पीछे हट रहा है। आयात प्रतिस्थापन की नीति तेजी से मजबूत हो रही है लेकिन उसका नीतिगत असर क्या होगा इसे लेकर भ्रम है। क्या नीतिगत चयन रुपये की कमजोर विनिमय दर में नहीं दिखना चाहिए? क्या विदेशी निवेश ऐसे क्षेत्रों में बुलाया जाना चाहिए जहां भारतीय कारोबारी कमजोर हैं?
वित्त मंत्री की बातों से भी स्पष्ट है कि देश संरक्षणवादी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, 'यह देखा गया है कि मुक्त व्यापार समझौतों के तहत होने वाला आयात बढ़ रहा है। इसके लाभ के अवांछित दावों से घरेलू उद्योग को खतरा पैदा हो गया है। ऐसे आयात पर कड़ी निगरानी की जरूरत है। इस संदर्भ में सीमा शुल्क अधिनियम में उपयुक्त प्रावधान शामिल किए जा रहे हैं। आने वाले महीनों में हम स्रोत आवश्यकता के नियम की समीक्षा करेंगे। खासकर चुनिंदा संवेदनशील वस्तुओं के बारे में ताकि यह सुनिश्चित हो कि मुक्त व्यापार समझौते नीतिगत दिशा के साथ सामंजस्य में हों।'
सीमा शुल्क में ऐसा ही एक प्रस्तावित संशोधन उल्लेखनीय है। अधिनियम की धारा 11 (2) का एक प्रावधान केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह देश की अर्थव्यवस्था को सोने या चांदी के अनियंत्रित आयात या निर्यात से होने वाले नुकसान से बचाए। इस प्रावधान में संशोधन कर इसमें सोने और चांदी के अलावा 'कोई अन्य वस्तु' का प्रावधान जोडऩा चाहती है। यह एक परिचय और नियम व्यापार अहम व्यापार प्रतिबंध वाला उपाय होगा और यह स्पष्ट नहीं है कि यह विश्व व्यापार संगठन के साथ हमारे नए दायित्वों के अनुरूप होगा या नहीं।
अब ज्यादातर वैश्विक व्यापार व्यापक क्षेत्रीय समझौतों के अधीन होते हैं। उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता, यूरोपीय संघ और लैटिन अमेरिका की में ऐसी व्यवस्थाएं हैं। आरसेप एशिया में उनका समकक्ष होगा। विश्व व्यापार संगठन की भूमिका कमजोर पड़ी है और अबाध व्यापार और निवेश प्रवाह की अवधारणा के साथ, खासकर विकासशील देशों में, हम तेजी से विश्व व्यापार व्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं। यह प्रत्युत्तर के सिद्घांत पर आधारित होगा और व्यापार प्रवाह पर शुल्क का असर कम तथा मानकों, विशिष्टताओं, बौद्घिक संपदा संबंधी उपायों तथा पर्यावरण मानक का असर अधिक होगा। इस नई विश्व व्यवस्था की निगरानी सुधरे हुए और पुनर्गठित विश्व व्यापार संगठन के हाथ होगी। चीन और अमेरिका जैसे बड़े कारोबारी देशों के अलावा अन्य देशों के लिए यहां सीमित गुंजाइश होगी तथा बड़े क्षेत्रीय कारोबारी समझौते अहम होंगे। भारत का विदेश व्यापार वैश्विक व्यापार के दो फीसदी से कम है। यदि भारत इन समझौतों में से किसी का हिस्सा नहीं बना तो वह नियम बनाने वालों में नहीं रह जाएगा। इस पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए क्योंकि हमारी भविष्य की आर्थिक संभावनाएं इससे जुड़ी हैं।
सन 1991 में जब भारत ने आर्थिक सुधार और उदारीकरण की नीतियां अपनाईं तब आशंका थी कि देश का उद्योग जगत लडख़ड़ा जाएगा। ये आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं और भारत स्थायी रूप से उच्च वृद्घि पथ पर वापस आ गया। सफल आर्थिक नीति को छोडऩे और नाकाम आयात प्रतिस्थापन को को अपनाने का क्या तुक है? देश को वैश्विक असेंबली हब बनाने और उसके बाद विपरीत नीतियां अपनाने की बात अनुपयुक्त है।
अधिनियम और नियम प्रभाग द्वारा प्रशासित
श्रम विषय को भारत के संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है, जो विभिन्न श्रम संबंधी मामलों पर केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों को कानून बनाने हेतु अधिकार प्रदान करती है। वैश्वीकरण उदारीकरण के साथ ही पूरे विश्व में सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में अत्यधिक बदलाव आए हैं। खुली व्यापार नीति श्रम संबंधी कानूनों में इन बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुरूप अद्यतन करने का समर्थन करती है। सभी श्रम संबंधी कानून राष्ट्र के लिए अत्यधिक महत्व के हैं क्योंकि उनका आम आदमी पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है क्योंकि आज की तारीख तक भारतीय उद्योग श्रमिक सघन हैं तथा कामगार देश की सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिसंपत्ति/मेरूदंड है, जिसके हितों का किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता है। आईआर प्रभाग द्वारा प्रशासित केंद्रीय श्रमिक कानून इस प्रकार है:-
- औद्योगिक विवाद, अधिनियम, 1947
- व्यापार संघ अधिनियम, 1926
- बागान श्रमिक अधिनियम, 1951
- औद्योगिक रोजगार (परिचय और नियम व्यापार स्थाई आदेश) अधिनियम, 1946
- साप्ताहिक अवकाश अधिनियम, 1942
- प्रबंधन विधेयक में कामगारों की सहभागिता, 1990
उपर्युक्त केंद्रीय अधिनियमों के रख-रखाव के अलावा इस मंत्रालय में निम्नलिखित राज्य अधिनियमों की भी जांच की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि क्या राज्यों द्वारा प्रस्तावित संशोधन संवैधानिक रूप से वैद्य है; क्या किसी मौजूदा केंद्रीय कानून के साथ भिन्नता है, और, यदि ऐसा है, तो क्या इस भिन्नता को होश-हवास में अनुमति प्रदान की जा सकती है; और क्या राज्य के प्रस्तावित कानून में मौजूदा राष्ट्रीय अथवा केंद्रीय नीति से कोई ऐसा विचलन है, जिससे इसे क्षति हो अथवा देश में एकसमान कानूनों के अधिनियम में बाधा हो।