बाजार अर्थव्यवस्था क्या है

अति दीर्घकालीन बाजार:- इस बाजार में उत्पादकों को पूर्ति बढ़ाने के लिए इतना लंबा समय मिल जाता है कि उत्पादक उपभोक्ता के स्वभाव रुचि फैशन आदि के अनुरूप उत्पादन कर सकता है।
बाजार का अर्थ एवं वर्गीकरण
परंतु अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का अर्थ इससे अलग है। अर्थशास्त्र के अंतर्गत बाजार शब्द का आशय उस सम्पूर्ण क्षेत्र से है। जहां तक किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता फैले होते हैं तथा उनमे वस्तुओं के खरीदने और बेचने की स्वतंत्र प्रतियोगिता होती है जिसके कारण वस्तु के मूल्य में एकरूपता की प्रवृत्ति पाई जाती है। उसे बाजार कहते है। अर्थशास्त्र में बाजार का वर्गीकरण:-
निम्नलिखित दृष्टिकोण से किया जाता है।
1. क्षेत्र की दृष्टि से
2. समय की दृष्टि से
3. कार्यों की बाजार अर्थव्यवस्था क्या है दृष्टि से
4. प्रतियोगिता की दृष्टि से
5. वैधानिकता की दृष्टि से
दोस्तों यहाँ पर हम केवल क्षेत्र की दृष्टि से, समय की दृष्टि से, कार्यों की दृष्टि से बाजार का वर्गीकरण के बारे में जानेंगे।
1. क्षेत्र की दृष्टि से:- क्षेत्र की दृष्टि से बाजार के वर्गीकरण का आधार है कि वस्तु विशेष के क्रेता और विक्रेता कितने क्षेत्र में फैले हुए हैं यह चार प्रकार का होता है।
अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं यह कितने प्रकार बाजार अर्थव्यवस्था क्या है की होती है?
अर्थव्यवस्था वह संरचना है, जिसके अंतर्गत सभी आर्थिक गतिविधियों का संचालन होता है। उत्पादन उपभोग व निवेश अर्थव्यवस्था की आधारभूत गतिविधियाँ है। अर्थव्यवस्था की ईकाईयाँ मानव द्वारा गठित होती है। अतः इनका विकास भी मानव अपने अनुसार ही करता है।
आय का सृजन उत्पादन प्रक्रिया में बाजार अर्थव्यवस्था क्या है होता है। उत्पादन प्रक्रिया द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं पर आय व्यय किया जाता है। आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु व्यय करना आवश्यक है जिसे बाजार अर्थव्यवस्था क्या है अर्थशास्त्र में उपभोग क्रिया कहते है। जब उपभोग क्रिया अधिक होती है बाजार अर्थव्यवस्था क्या है तो उत्पादन भी अधिक करना आवश्यक है उत्पादन करने के लिये अधिक धन्य व्यय करने की आवश्यकता होती है। इस व्यय को विनियोग कहते हैं। जिन क्षेत्रों में उत्पादन उपभोग व निवेश की क्रिया की जाती है, उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं।
अर्थव्यवस्था की परिभाषा
ए.जे. ब्राउन के अनुसार, ‘‘अर्थव्यवस्था एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा लोग जीविका प्राप्त करते हैं।’’ जिस विधि से मनुष्य जीविका प्राप्त करने का प्रयास करता है वह समय तथा स्थान के सम्बन्ध में भिन्न होती है।
1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था:- ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें निजी क्षेत्रों व बाजार की भूमिका प्रभावकारी होती है, आर्थिक गतिविधियों के समस्त निर्णय जैसे कितना उत्पादन किया जाए किसका किया जाए कैसे किया जाए। निजी क्षेत्र द्वारा लिए जाते है दूसरे शब्दों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था बाजार की शक्तियों अर्थात मांग एवं पूर्ति द्वारा संचालित होती है जिसका एकमात्र उद्देश्य लाभ प्राप्त करना है उदाहरण के लिए अमेरिका, कनाडा, मेक्सिकों की अर्थव्यवस्थाएँ पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है।
2. समाजवादी अर्थव्यवस्था- ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें आर्थिक क्रियाओं का निर्धारण एवं नियंत्रण केन्द्रीय इकाई या राज्य के द्वारा होता है इसीलिए इसे नियंत्रित अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है यहाँ बाजार के कारकों की भूमिका सीमित होती है, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था जहाँ उपभोग एवं उत्पादन का निर्धारण करता है वहीं समाजवादी अर्थव्यवस्था उत्पादन एवं उपभोग का निर्धारण करती है, वहीं दूसरी और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था लाभ से प्रेरित होती है, जबकि समाजवादी अर्थव्यवस्था कल्याणकारी राज्य की संकल्पना पर आधारित होती है उदाहरण के लिए चीन, वियतनाम, उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्थाएँ।
बाजार समाजवाद क्या है? What is Market Socialism?
बाजार समाजवाद क्या है? What is Market Socialism?
बाजार समाजवाद क्या है? इसके विकास पर प्रकाश डालिए। अथवा अर्थव्यवस्था (बाजार समाजवाद) के विकास में योगदान दिया है? प्रकाश डालिए।
बाजार समाजवाद एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है- 1950 के दशक में पोलैण्ड के दार्शनिक प्रोफेसर ऑस्कर लाज द्वारा राज अर्थव्यवस्थाओं को “बाजार समाजवादी” (Market Socialism) की तरह होने की बाजार अर्थव्यवस्था क्या है सलाह दी गयी, जिसकी पूँजीवादी एवं समाजवादी अर्थवव्यवस्थाओं द्वारा अनदेखी की गयी। लॉज द्वारा वास्तव में समाजवादी आर्थिक प्रणाली में पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली के कुछ तत्त्वों के समावेश की सलाह दी गयी थी, जिसमें सबसे प्रमुख था बाजार बाजार व्यवस्था को प्रोत्साहन देने से निजी सम्पत्ति, मूल्य पद्धति, वैयक्तिक स्वतन्त्रता तथा राज्य की एकाधिकारी आर्थिक शक्ति में कमी इत्यादि तत्वों का समावेश होता है। अर्थविदों का मानना है कि राज्य अर्थव्यवस्थाओं द्वारा इस सलाह को नहीं मानने से इनका आर्थिक पतन हुआ और अन्तत, बाजार अर्थव्यवस्था क्या है साम्यवादी चीन द्वारा सन् 1985 में “बाजार समाजवादी” को अपनी “ओपन डोर पॉलिसी” नीति के अन्तर्गत अपनाया गया। इसी समय ऐसी ही पूर्व सोवियत संघ द्वारा ग्लासनोस्ट और प्रेस्ट्रॉयका नामक अर्थनीतियों का प्रयोग किया गया (रूसी शब्द ग्लासनॉस्ट का अर्थ खुलापन और प्रोस्ट्रायका का अर्थ पुनर्संरचना है) वास्तव में चीन द्वारा आने वाले समय के बाजार समाजवाद के लिए सन् 1970 से ही तैयार प्रारम्भ कर दी गयी थी।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र
प्रारंभिक
- इस क्षेत्र में उत्पादन प्राकृतिक संसाधनों की सहायता से।
- यह क्षेत्र कच्चे माल की आपूर्ति का स्रोत है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र की भूमिका सबसे कम है।
द्वितीयक
- इसके अंतर्गत प्राथमिक क्षेत्र से प्राप्त कच्चा माल एवं मशीनों बाजार अर्थव्यवस्था क्या है की सहायता से।
- इस क्षेत्र में मूल्यवर्धन किया जाता है।
उदाहरण
- निर्माण क्षेत्र
- विनिर्माण क्षेत्र
तृतीयक
- प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र की उत्पादन गतिविधियों में सहायता करता है।
- प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र में संयोजक का कार्य करता है।
उदाहरण
क्या मुद्रा स्फीति हमेशा ही अर्थव्यवस्था के लिए ख़राब होती है?
मुद्रा स्फीति बाजार अर्थव्यवस्था क्या है का मतलब बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में लगातार वृद्धि से होता हैं. मुद्रा स्फीति की स्थिति में मुद्रा की कीमत कम हो जाती है क्योंकि उपभोक्ताओं को बाजार में वस्तुएं खरीदने के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ती है. ऐसी स्थिति में यह सवाल उठता है कि क्या मुद्रा स्फीति सभी लोगों और अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी है या नही?
मुद्रा स्फीति की परिभाषा(Definition of Inflation):
मुद्रा स्फीति का मतलब बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में लगातार वृद्धि से होता हैं. मुद्रा स्फीति की स्थिति में मुद्रा की कीमत कम हो जाती है क्योंकि उपभोक्ताओं को बाजार में वस्तुएं खरीदने के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ती है.
अर्थात
‘मुद्रा स्फीति; बाजार की एक ऐसी दशा होती है जिसमे उपभोक्ता “झोला भरकर” रुपया बाजार ले जाता है और हाथ में सब्जियां लेकर आता है’.
मुद्रा स्फीति का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
विभिन्न वर्षों के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद यह बात सामने आई है कि कम और नियंत्रित मुद्रा स्फीति; उद्यमियों को अधिक निवेश के लिए प्रेरित करती है क्योंकि वस्तुएं और सेवाएँ महँगी होने के कारण उन्हें लागत की तुलना में अधिक कीमत मिलती है.
लेकिन यदि उद्यमियों ने इस लाभ को दुबारा निवेश नही किया और विलासिता की वस्तुओं पर खर्च कर दिया तो इकॉनमी को फायदा नही होगा; क्योंकि नए निवेश के आभाव में नए रोजगारों का सृजन नही होगा; इस कारण संसाधनों का सदुपयोग नही होगा.
मुद्रा स्फीति के नकारात्मक प्रभाव:
चूंकि बाजार अर्थव्यवस्था क्या है मुद्रा स्फीति के कारण लोगों की वास्तविक आय कम हो जाती है जिसके कारण उनकी बचत में कमी आती है, निवेश कम होता है जिसके कारण उत्पादन कम हो जाता है जो कि आगे निर्यात को कम करता है और भुगतान संतुलन विपरीत हो जाता है. इस प्रकार अधिक मुद्रा स्फीति के कारण पूरी अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है.
समाज के कमजोर वर्ग क्या प्रभाव पड़ता है?
समाज का ऐसा वर्ग जो कि स्थिर आय प्राप्त करता है जैसे दिहाड़ी मजदूर,पेंशनभोगी, वेतनभोगी इत्यादि के लिए मुद्रा स्फीति नुकसान दायक होती है क्योंकि मुद्रा की वास्तविक कीमत में कमी होने के कारण उनकी क्रय शक्ति में कमी आती है. जैसे जिस 100 रुपये की मदद से ये लोग पहले 3 किलो प्याज खरीद लेते थे अब मुद्रा स्फीति के बाद 1 या 2 किलो ही खरीद पाएंगे.
मुद्रास्फीति का विभिन्न लोगों का प्रभाव: