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ETF लिक्विडिटी

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गोल्ड ETF की ओर आकर्षित हो रहे हैं निवेशक, जानिए क्या है ये और इसके फायदे

नई दिल्ली। कोरोना काल में लोगों को निवेश और बचत का महत्व समझ आया है। अगस्त में सोने के एक्सचेंज ट्रेडिड फंड्स (गोल्ड ETF) में सुधार आया है। पिछले महीने इसमें 24 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया गया। एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों के दौरान गोल्ड ईटीएफ में कुल प्रवाह 3,070 करोड़ रुपये रहा। इतना ही नहीं, पिछले महीने गोल्ड ईटीएफ में निवेशक फोलियो की संख्या 21.46 लाख तक पहुंच गई।

हालांकि, अगस्त 2019 से इसमें धीमी गति से सुधार हो रहा है। गोल्ड ईटीएफ में नवंबर 2020 में 141 करोड़, फरवरी 2021 में 195 करोड़ और जुलाई 2021 में 61.5 करोड़ रुपये की शुद्ध निकासी दर्ज की गई थी। वैश्विक स्तर पर बने सकारात्कमक रुख से पीली धातु को लेकर धारणा में सुधार आया है। जुलाई 2021 में निकासी के बाद अगस्त में सोने में निवेश सकरात्मक रहा।

क्या है ईटीएफ?
पेपर गोल्ड में निवेश करने का सबसे अच्छा तरीका गोल्ड ईटीएफ (एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स) खरीदना है। चूंकि, ईटीएफ में निवेश करने में उच्च प्रारंभिक खरीद, बीमा और यहां तक कि ETF लिक्विडिटी बिक्री की लागत शामिल नहीं होती, इसलिए यह बहुत अधिक कॉस्ट-इफेक्टिव है। ईटीएफ में निवेश करने के लिए लोगों को ऑनलाइन स्टॉकब्रोकर और डीमैट खाते से ट्रेडिंग अकाउंट की आवश्यकता होती है। एक बार अकाउंट बनने के बाद केवल गोल्ड ईटीएफ चुनने और ब्रोकर के ट्रेडिंग पोर्टल से ऑर्डर देने की बात है।

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यह निवेश का एक सरल माध्यम है। इसकी खरीद-फरोख्त अन्य शेयरों की तरह स्टॉक एक्सचेंज में ही होती है। इसे स्टॉक एक्सचेंज में खरीद-बिक्री की सुविधा वाला फंड भी कहा जाता है। यह किसी इंडेक्स या कई एसेट्स के समूह को ट्रैक करता है। पूरे दिन कारोबार होने से इसकी भी कीमतों में उतार-चढ़ाव देखा जाता है। बेहतर लिक्विडिटी होने की वजह से इसे कभी बेचा जा सकता है।

कैसे करता है काम?
ईटीएफ किसी इंडेक्स या एसेट को ट्रैक करता है। अगर कोई ईटीएफ बीएसई सेंसेक्स को ट्रैक करता है तो यह अपने फंड का निवेश सेंसेक्स में शामिल 30 कंपनियों के शेयरों में करेगा। यह निवेश उसी अनुपात में होगा, जितना हर कंपनी का सेंसेक्स में वेटेज होगा। आपके इस ईटीएफ में निवेश करने पर एसेट मैनेजमेंट कंपनी आपको निवेश के मूल्य के हिसाब से यूनिट्स जारी कर देगी।

NIMF ने निप्पॉन इंडिया सिल्वर और सिल्वर ETF फंड ऑफ फंड किया लॉन्च

07 जनवरी 2022: निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड (NIMF) की एसेट मैनेजर निप्पॉन लाइफ इंडिया एसेट मैनेजमेंट लिमिटेड (एनएएम इंडिया) ने फिजिकल सिल्वर और सिल्वर रिलेटेड इंस्ट्रूमेंट्स तथा निप्पॉन इंडिया सिल्वर ईटीएफ फंड ऑफ फंड (fof) में निवेश करते हुए निप्पॉन इंडिया सिल्वर ईटीएफ को लॉन्च करने की घोषणा की है, जो निप्पॉन इंडिया सिल्वर ईटीएफ की यूनिट्स में निवेश करेगा। दोनों योजनाओं का यह एनएफओ 13 जनवरी 2022 को खुलेगा और 27 जनवरी 2022 को बंद होगा।

निप्पॉन इंडिया सिल्वर ETF के लिए एनएफओ के दौरान आवश्यक न्यूनतम निवेश राशि 1,000 रुपये और उसके बाद 1 रुपये के गुणकों में है; जबकि निप्पॉन इंडिया सिल्वर ईटीएफ फंड ऑफ फंड (एफओएफ) के लिए एनएफओ के दौरान आवश्यक न्यूनतम निवेश राशि 100 रुपये और उसके बाद 1 रुपये के गुणकों में है। निप्पॉन इंडिया सिल्वर ईटीएफ फंड ऑफ फंड (एफओएफ) के जरिए निवेशक कोई डीमैट ETF लिक्विडिटी खाता न होते हुए भी निवेश कर सकते हैं और सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) वाला विकल्प भी चुन सकते हैं।

इस लॉन्च के अवसर पर बात करते हुए निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड के ईटीएफ प्रमुख हेमेन भाटिया ने कहा, “गोल्ड ईटीएफ और गोल्ड एफओएफ का अग्रदूत होने के नाते हम निप्पॉन इंडिया सिल्वर ईटीएफ और निप्पॉन इंडिया सिल्वर ईटीएफ फंड ऑफ फंड (एफओएफ) को लॉन्च करने के साथ कमोडिटी ETF लिक्विडिटी स्पेस के भीतर निवेशकों को एक अतिरिक्त बिल्डिंग ब्लॉक की पेशकश करके खुश हैं।

ऐतिहासिक रूप से भारतीय इक्विटी सूचकांकों के साथ सिल्वर का अपेक्षाकृत कम अंतर्संबंध रहा है और इसीलिए यह निवेशकों को अपने एसेट एलोकेशन के लिए खुद के पोर्टफोलियो में विविधता लाने का अवसर प्रदान करेगा। इसके अलावा निप्पॉन इंडिया सिल्वर ईटीएफ या निप्पॉन इंडिया सिल्वर ईटीएफ फंड ऑफ फंड (एफओएफ) के जरिए निवेश करने से सिल्वर का परेशानी मुक्त भंडारण होगा, छोटे मूल्यवर्ग में खरीदारी कर सकते हैं, चोरी का कोई डर नहीं होगा, सिल्वर को भौतिक रूप से अपने पास रखने के मुकाबले आसान लिक्विडिटी उपलब्ध रहेगी और सिल्वर की शुद्धता की कोई चिंता नहीं करनी पड़ेगी।”

यह ईटीएफ फिजिकल सिल्वर और सिल्वर रिलेटेड इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करेगा और योजना के पर्फॉर्मेंस को सिल्वर के घरेलू मूल्य (एलबीएमए सिल्वर के दैनिक स्पॉट फिक्सिंग मूल्य के आधार पर) के मुकाबले बेंचमार्क किया जाएगा। फिजिकल सिल्वर 99.9 प्रतिशत शुद्धता (प्रति हजार 999 हिस्से) की होगी जो लंदन बुलियन मार्केट एसोसिएशन (एलबीएमए) गुड डिलिवरी स्टैंडर्ड्स के अनुरूप होगी।

निप्पॉन इंडिया म्यूचुअल फंड (एनआईएमएफ) भारत के सबसे बड़े ईटीएफ खिलाड़ियों में गिना जाता है, जिसका 30 नवंबर, 2021 तक एयूएम 500 बिलियन रुपये से अधिक रहा। भारतीय इंडस्ट्री के गोल्ड ईटीएफ एवं गोल्ड ईटीएफ आधारित एफओएफ के बीच निप्पॉन इंडिया ईटीएफ गोल्ड बीईईएस एवं निप्पॉन इंडिया गोल्ड सेविंग्स फंड का एयूएम सबसे बड़ा है। भारतीय इंडस्ट्री के गोल्ड ईटीएफ में निप्पॉन इंडिया ईटीएफ गोल्ड बीईईएस का वॉल्यूम सबसे ज्यादा है।

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गोल्ड ईटीएफ बेहतर या सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड

हालिया दिनों कीमतों में आई नरमी के बाद निवेश के नजरिये से सोने के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। लोग यह भी समझने लगे हैं कि फिजिकल गोल्ड के बजाय पेपर गोल्ड में निवेश करना ज्यादा बेहतर है। लेकिन ज्यादातर लोग इस बात को लेकर दुविधा में होते हैं कि पेपर गोल्ड में निवेश के दो पॉपुलर विकल्प यानी गोल्ड ईटीएफ और सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में से किसमें निवेश किया जाए। आज अलग-अलग कसौटियों पर इन्हीं दो विकल्पों को परखते हैं ताकि निवेशकों को किसी एक विकल्प के चयन में आसानी हो सके।

निवेश की सीमा

सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड ईटीएफ दोनो में निवेशकों को प्रति यूनिट गोल्ड में निवेश का मौका मिलता है। लेकिन इसके लिए उन्हें फिजिकल फॉर्म में सोना रखने की जरूरत नहीं होती। गोल्ड ईटीएफ और बॉन्ड दोनों में एक यूनिट की कीमत 1 ग्राम सोने की कीमत के बराबर होती है। मतलब आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड ईटीएफ दोनों में कम से कम 1 ग्राम गोल्ड के बराबर वैल्यू की एक यूनिट में निवेश कर सकते हैं। गोल्ड ईटीएफ में अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। जबकि सॉवरिन बॉन्ड में एक व्यक्ति एक वित्त वर्ष में अधिकतम 4 किलोग्राम सोने की कीमत के बराबर यूनिट में निवेश कर सकता है। ध्यान रहे गोल्ड ईटीएफ और सॉवरिन बॉन्ड दोनों में सोना सिर्फ अंडरलाइंग एसेट है इसलिए रिडेम्प्शन के बाद फिजिकल गोल्ड नहीं बल्कि अंडरलाइंग ऐसेट यानी सोने की कीमत भारतीय रुपये में मिलेगी।

खरीद-बेच की सुविधा

गोल्ड ईटीएफ को आप स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर कैश ट्रेडिंग के लिए निर्धारित समय के दौरान कभी भी खरीद या बेच सकते हैं। लेकिन सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई समय-समय/ निश्चित अंतराल पर जारी करती है। इसे कभी भी बेचा नहीं जा सकता है। बॉन्ड की मैच्योरिटी पीरियड आठ वर्ष की है। लेकिन पांचवें, छठे और सातवें वर्ष में बॉन्ड को बेचने का विकल्प यानी एग्जिट ऑप्शन है, जिसका इस्तेमाल ब्याज भुगतान की तारीख पर किया जा सकता है। हां, डीमैट फॉर्म में इस बॉन्ड को लेने वाले इसे स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग आवर्स के दौरान कभी भी बेच सकते हैं।

डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट

गोल्ड ईटीएफ के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट का होना जरूरी है। जबकि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट का होना जरूरी नहीं है। हां, अगर आप सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड की एक्सचेंज पर ट्रेडिंग करना चाहते हैं तो आपको बॉन्ड को डीमैट फॉर्म में लेना होगा। जिसके लिए डीमैट अकाउंट का होना जरूरी है। सबसि्क्रप्शन के दौरान ही आपको सॉवरिन बॉन्ड फिजिकल फॉर्म (सर्टिफिकेट) के अतिरिक्त डीमैट फार्म में भी लेने का विकल्प मिलता है।

जोखिम

सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड सरकार की तरफ से आरबीआई जारी करती है। इसलिए इसमें डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं है। जबकि प्राइवेट असेट मैनेजमेंट कंपनियां गोल्ड ईटीएफ मैनेज करती है। इसमें भी डिफॉल्ट का खतरा काफी कम होता है।

ब्याज

सॉवरिन बॉन्ड में इनिशियल इन्वेस्टमेंट / इश्यू प्राइस पर 2.5 फीसदी वार्षिक ब्याज मिलता है। यह हर 6 महीने में देय होता है। अंतिम ब्याज मैच्योरिटी पर इनिशियल इन्वेस्टमेंट यानी प्रिंसिपल अमाउंट के साथ दिया जाता है। लेकिन ब्याज की कंपाउंडिंग नहीं होती है। ब्याज की रकम भी टैक्सेबल है। हालांकि ब्याज पर कोई टीडीएस नहीं कटता है। जबकि गोल्ड ईटीएफ पर आपको कुछ भी ब्याज नहीं मिलता।

एक्सपेंस/खर्च

गोल्ड ईटीएफ मैनेज करने के एवज में फंड हाउस निवेशक से चार्ज वसूलते हैं। जिसे टोटल एक्सपेंस रेश्यो (टीईआर) कहते हैं। इसके अतिरिक्त जब भी आप यूनिट खरीदते या बेचते हो ब्रोकर को ब्रोकरेज चार्ज देना होता है। जबकि सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड में इस तरह का कोई अतिरिक्त एक्सपेंस नहीं है। हां, अगर आप सॉवरिन बॉन्ड को एक्सचेंज पर खरीदोगे या बेचोगे तो आपको ब्रोकरेज चार्ज देना होगा।

लोन

जरूरत पड़ने पर गोल्ड बॉन्ड के एवज में बैंक से लोन भी लिया जा सकता है। मतलब लोन के लिए गोल्ड बॉन्ड पेपर को कोलैटरल यानी जमानत/गारंटी के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन गोल्ड ईटीएफ पर यह सुविधा नहीं है।

टैक्स

अगर सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को मैच्योरिटी के बाद रिडीम करते हैं तो आपको रिटर्न पर ETF लिक्विडिटी कोई टैक्स नहीं देना होगा। लेकिन गोल्ड ईटीएफ पर इस तरह का टैक्स बेनिफिट नहीं है। गोल्ड ईटीएफ पर टैक्स डेट फंड की तरह लगता है। मतलब अगर खरीदने के बाद 36 महीने पूरे होने से पहले रिडीम करते हैं तो जिस वर्ष आप रिडीम करते हैं उस वर्ष रिटर्न/लाभ आपके एनुअल इनकम में जुड़ जाएगा और आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना पडेगा। लेकिन अगर ETF लिक्विडिटी ETF लिक्विडिटी 36 महीने पूरे होने के बाद रिडीम करते हैं तो इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस और सरचार्ज मिलाकर 20.8 फीसदी) लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स चुकाना पडेगा।

लेकिन सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड को भी अगर मैच्योरिटी से पहले यानी 8 साल से पहले रिडीम करते हैं तो गोल्ड ईटीएफ की तरह ही टैक्स देना होगा। कहने का मतलब सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड पर टैक्स बेनिफिट तभी है जब आप उसे मैच्योरिटी पीरियड तक होल्ड करते हो। फिजिकल गोल्ड पर भी गोल्ड ईटीएफ की तर्ज पर ही टैक्स लगता है।

लिक्विडिटी

गोल्ड ईटीएफ को स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी खरीदा बेचा जा सकता है। मतलब लिक्विडिटी की समस्या यहां नहीं है। लेकिन सॉवरिन बॉन्ड को कम से कम 5 साल के बाद ही रिडीम किया जा सकता है। लेकिन मैच्योरिटी से पहले रिडीम करने पर टैक्स बेनिफिट ETF लिक्विडिटी से हाथ धोना पड़ेगा। दूसरी बात अगर आप स्टॉक एक्सचेंज पर कभी भी शार्ट यानी बेचना चाहेंगे तो आपको या तो पर्याप्त खरीदार नहीं मिलेंगे या मिलेंगे भी तो मार्केट प्राइस के नीचे यानी डिस्काउंट पर। यानी गोल्ड ईटीएफ की तुलना में सॉवरिन बॉन्ड में लिक्विडिटी निश्चित रूप से कम है।

निष्कर्ष / सलाह

अगर आप बॉन्ड को उसकी मैच्योरिटी पीरियड तक होल्ड कर सकते हैं तो आपके लिए सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड बेहतर है। लेकिन अगर आप कभी खरीदना बेचना चाहते हैं, यानी 8 साल तक होल्ड नहीं कर सकते हैं तो आपको गोल्ड ईटीएफ में निवेश करना चाहिए।

लार्ज, मिड या स्मॉल कैप फंड

आप बाजार की अनिश्चितता से बाहर निकलने के लिए अपने पोर्टफोलियो की स्थिति कैसे बनाते हैं?
हम सब इस दूसरी लहर से बाहर आ चुके हैं!

अब बाजार मिले-जुले संकेत दे रहा है।

सीएमआईई के अनुमान के अनुसार एक तरफ यह पॉजिटिव रिकवरी ट्रिगर्स जैसे टीकाकरण में गति, कोविड -19 मामलों को कम करने और बेरोजगारी के स्तर को कम करने का संकेत देता है।

हालांकि, तीसरी लहर और बढ़ती इन्फ्लैशन जैसे नेगटिव जोखिम की संभावना है। इस दौरान आप कहां इन्वेस्ट करते हैं- लार्ज कैप, मिड कैप या स्मॉल कैप ?

कॉर्पोरेट इंडिया: बड़ी कंपनियां बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं

सोर्स: सीएमआईई- , इकॉनोमिक आउटलुक, मार्च 2021 तक के आंकड़े

कोविड के दौरान छोटी कंपनियां सबसे अधिक प्रभावित हुईं।

इसके विपरीत फाइनेंसियल वर्ष 2021 में बड़ी लिस्टेड कंपनियां बेहतर तरीके से टिकी रहीं।

उनके पक्ष में क्या काम किया? एक मजबूत बैलेंस शीट, बेहतर कॉस्ट कंट्रोल और बिज़नेस कॉन्टिनुइटी के उपाय।

लार्ज कैप v/s मिड-कैप और स्मॉल कैप का मार्केट परफॉरमेंस

अब, यदि आप सभी इंडिकस (मिड कैप, स्मॉल कैप और लार्ज कैप) के परफॉरमेंस को देखें, तो आपको स्मॉल कैप या मिड कैप के 1 साल के प्रदर्शन में बेहतर नंबर्स दिखाई देंगें।

लेकिन लंबी टाइम स्पेन में, मान लीजिए 10 वर्षों में, लार्ज कैप का परफॉर्मेन्स अन्य दो लिस्टेड के समान है और वे अधिक स्टेबल है जिसका अर्थ है लोअर वोटालिटी।

इंडेक्स

1 वर्ष

3 वर्ष

5 वर्ष

10 वर्ष

एसएंडपी बीएसई लार्ज कैप टीआरआई

एसएंडपी बीएसई मिड कैप टीआरआई

एसएंडपी बीएसई स्मॉल कैप टीआरआई

सोर्स: बीएसई सूचकांक 30 जून, 2021 तक।
पिछला परफॉरमेंस भविष्य में कायम रह सकता है या नहीं भी।

पैरामीटर्स

3 वर्ष

5 वर्ष

10 वर्ष

एसएंडपी बीएसई लार्जकैप टीआर

एसएंडपी बीएसई मिडकैप टीआर

एसएंडपी बीएसई स्मॉलकैप टीआर

पिछला परफॉर्मेन्स भविष्य में कायम रह सकता है या नहीं भी।

एनुअलाइसेड रिस्क-एडजस्टेड रिटर्न

पैरामीटर्स

3 वर्ष

5 वर्ष

10 वर्ष

एसएंडपी बीएसई लार्जकैप टीआर

एसएंडपी बीएसई मिडकैप टीआर

एसएंडपी बीएसई स्मॉलकैप टीआर

रिस्क को स्टैण्डर्ड डेविएशन के रूप में डिफाइन किया गया है, जिसकी कैलकुलेशन मंथली वैल्यूज का उपयोग करके कुल रिटर्न के आधार पर की जाती है। पिछला परफॉर्मेन्स भविष्य में कायम रह सकता है या नहीं भी।

लार्ज कैप आमतौर पर लॉंग टर्म में ऊपर की ओर बढ़ने के लिए बेहतर होते हैं, साथ ही उनके मजबूत फंडामेंटल के कारण डाउनसाइड से सुरक्षा भी होती है।

यहां 4 कारण बताए गए हैं कि इन्वेस्टर आमतौर पर लार्ज कैप कंपनियों को क्यों पसंद करते हैं:

रिस्क रिवॉर्ड बैलेंस:

यह फीचर या बेनिफिट लार्ज कैप्स के लिए है जिसे हराया नही जा सकता। इस तरह के लार्ज कैप्स के पास पोटेंशियल होता है कि वे आपके पोर्टफोलियो को लॉंग टर्म रिस्क- एडजस्टेड परफॉर्मेन्स मार्किट में साईकल करते है।

सेबी की गाइडलाइन्स के अनुसार, इंडिया की लिस्टेड कम्पनीज अपनी फाइनेंसियल डिस्क्लोजर करने के लिए बाध्य है । यह जानकारी इन्वेस्टर्स को ट्रेंड एनालाइस और डिसिशन लेने में मदद करती है।

लार्ज कैप्स कंपनियों के शेयर आमतौर पर लेस्स वोलेटाइल होते है। इसका मतलब यह है कि बाजार में उतार-चढ़ाव से उनकी कीमते कॉम्पेरिटीव कम वोलेटाइल होती है।

अपनी लोकप्रियता के कारण सबसे ज्यादा लिक्विड इन्वेस्टमेंट ऑप्शन है।
लार्ज ट्रेडिंग वॉल्यूम के कारण इन्हे आसानी से खरीदा और बेचा जा सकता है।

दूसरी ओर, यदि आप रिवॉर्ड के साथ रिस्क का बैलेंस देख रहे हैं, तो आप एक डाइवर्सिफाइड म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो बनाने पर विचार कर सकते हैं, जो मार्केट-कैप एक्सिस्टनस और स्टाइल में भिन्न हो।

पान्डेमिक इम्पैक्ट, इकनोमिक रिकवरी, इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी- इनसाइट्स रिवील्ड! पर हमारा हाल ही में बना वेबिनार वीडियो देखें। जहां सौरभ गुप्ता, फंड मैनेजर, इक्विटी और चिराग मेहता, सीनियर मैनेजर, अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट्स चर्चा में और इनसाइट साझा करते हैं।

अस्वीकरण, वैधानिक विवरण और जोखिम कारक:

इस लेख / वीडियो में यहां व्यक्त किए गए विचार केवल सामान्य जानकारी और पढ़ने के उद्देश्य के लिए हैं और पाठक द्वारा अनुसरण की जाने वाली किसी भी कार्रवाई के बारे में कोई दिशा-निर्देश और सिफारिशें नहीं हैं।
क्वांटम एएमसी/क्वांटम म्यूचुअल फंड योजना(यों) में किए गए निवेश पर किसी भी सांकेतिक प्रतिफल की गारंटी/प्रस्ताव/संचार नहीं कर रहा है। विचार एक पेशेवर गाइड / निवेश सलाह के रूप में काम करने के लिए नहीं हैं / पाठक के लिए किसी भी वित्तीय उत्पाद या साधन या म्यूचुअल फंड इकाइयों की खरीद या बिक्री के लिए एक प्रस्ताव या आग्रह करने का इरादा नहीं है। लेख सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी, आंतरिक रूप से विकसित डेटा और विश्वसनीय माने जाने वाले अन्य स्रोतों के आधार पर तैयार किया गया है। यद्यपि यहां प्रदान की गई जानकारी के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है, यह सुनिश्चित करने के लिए उचित सावधानी बरती गई है कि तथ्य सटीक हैं और दिए गए विचार आज तक उचित और उचित हैं। इस लेख के पाठकों को अपनी स्वयं की जांच से उत्पन्न जानकारी/डेटा पर भरोसा करना चाहिए और स्वतंत्र पेशेवर सलाह लेने और कोई भी निवेश करने से पहले एक सूचित निर्णय लेने की सलाह दी।

म्युचुअल फंड निवेश बाजार जोखिमों के अधीन हैं, योजना से संबंधित सभी दस्तावेजों को ध्यान से पढ़ें।

ETF क्या है (What is ETF in Hindi) | ETF कितने प्रकार के होते है

ETF क्या है (what is ETP in hindi)

MFI के अनुसार ETP एक्सचेंज प्रोडक्ट फण्ड एक इन्वेस्टमेंट ETF लिक्विडिटी प्रोडक्ट है जो इंडेक्स कमोडिटी बांड्स या स्टॉक्स के बॉक्स को ट्रैक करता है ETF का फुल फॉर्म exchange traded fund होता है वह रेगुलर स्टॉक्स की तरह ही स्टॉक एक्सचेंज पर ख़रीदा या बेचा जा सकता है किसी दुसरे स्टॉक की तरह थ्रू आउट buy और sell किये जा सकते है ETP भी रेगुलर स्टॉक ट्रेडिंग की तरह ही ट्रेडिंग फ्लेक्सिबिलिटी ऑफर करते है

जैसे की short selling ,limit order stop loss order, margin buying, हेजिंग इनके साथ साथ ETP और भी फ्लेक्सिबिलिटी फीचर ऑफर करते है traditional mutual fund और इंडेक्स फण्ड ऑफर नहीं कर पाते है एक ETP कई तरह से ट्रैक कर सकता है जैसे की (स्टॉक .बांड्स , करेंसी ,कमोडिटी ,गोल्ड) ETP मैनली पैसिव मैनेजमेंट के लिए इस्तेमाल किये जाते है ETP का उद्देश्य है एक Particular market इंडेक्स और स्ट्रेटेजी को मैच करना होता है.

ETF के कितने प्रकार होते है (different type of ETP)

मार्केट में आज कई तरह के ETP उपलब्ध है जैसे की निचे देख सकते है-

  • sector-based ETFs
  • market-cap weighted funds
  • equal weighted funds
  • debt ETFs
  • gold ETFs
  • smart beta ETFs

ETF में निवेश कैसे करे (how to invest in ETP)

निवेशक हर घंटे ETF (exchange traded fund) की यूनिट को मन चाहे खरीदकर इन्वेस्ट कर सकते है और निवेशक अपने ब्रोकर को राय दे सकते है या फिर ब्रोकर की तरफ से उपलब्ध कराये जाने वाले ऑनलाइन ट्रेडिंग एप्लीकेशन का उपयोग कर इन्वेस्टमेंट कर सकते है.

ETF में निवेश के लिए शर्त क्या है (condition of ETP)

ETF (exchange traded fund) में निवेश करने के लिए एक डीमेट अकाउंट के साथ ट्रेडिंग अकाउंट होना चाहिए कोई व्यक्ति 1 से ज्यादा अकाउंट खोल सकता है ETF में डीमेट अकाउंट के साथ साथ ट्रेडिंग अकाउंट की भी सुविधा दी जाती है जिससे की मल्टीपल निवेश को एक ही जगह से मैनेज कर सकते है इस अकाउंट को खोलने के लिए एक फॉर्म भरना होता है जिसके लिए KYC दस्तावेज की आवश्यकता होती है.

ETF कैसे काम करता है (how do work in ETP)

ETP (exchange traded fund) साधरण ETF लिक्विडिटी तौर पर अंडर लाइन इंडेक्स कम्पोजीशन की Performance रेफ्लिकेट करने में फोकस करते है मतलब ETP में भी इंडेक्स के चड़ने और उतरने पर बदलाव आता है ETP का रिटर्न और रिस्क BSE सेंसेक्स या सोने जैसे एसेट में उतार चड़ाव पर निर्भर करता है.

ETF के advantage और disadvantage क्या है ( ETP advantage or disadvantage)

ETF के advantage :

  • ETF investor के वाइड वेरिएटी और इन्वेस्टर स्ट्रेटेजी एक्स्पोसर प्रोवाइड करते है जो ट्रेडिशनल mutual fund सही तरीके से कवर नहीं करते है
  • mutual fund के अंतर में ETF के expensive ratio बहुत कम है
  • better trading flexibility प्रोवाइड करते है
  • ETF होल्डर्स को capital games टैक्स ग्रान नही करना पड़ता जिसकी वजह से mutual fund और ETF के अंतर में ETF ज्यादा टैक्स Efficient होते है
  • mutual fund के compare में ETF का स्ट्रक्चर ज्यादा ट्रांसपेरेंट होता है

ETF के disadvantage :

  • ETF में हर बार low फीस चार्ज नहीं होती है वो ETF जो Actively मैनेज स्ट्रेटेजी पर बेस्ड है उनकी फ्री प्रोफाइल actively manage mutual fund के सिमिलर होती है
  • ETF में stock prices के तरह ही हाई intraday volatility भी होती है
  • ETF हमेशा ही एक्चुअल इंडेक्स या बास्केट से लेग करेगा
  • ETF में फाइनेंस डेरीवेटिव यूज़ करने की फ्लेक्सिबिलिटी की वजह से ETF का रिस्क प्रोफाइल अंडर लाइन इंडेक्स के compare में बहुत ज्यादा हाई रहता है
  • एक ETF में इन्वेस्टर पार्टिसिपेशन ज्यादा ना होने से लिक्विडिटी बहुत कम हो सकती है दुसरे इन्वेस्टर को पार्टिसिपेट को रेस्ट्रिक्ट करती है

ETF सेलेक्ट करने से पहले किन बातो का रखे ध्यान ( ETP select carefully)

एक सही ETP ख़रीदा बहुत ही complicated और Convenient हो जाता है इन्वेस्टमेंट के ऑब्जेक्टिव के बियॉन्ड 4 बेसिक फेक्टर है जो इन्वेस्टर को ETF सेलेक्ट करने से पहले कंसीडर करना चाहिए

  1. tracking error : tracking error जितना कम होगा एक ETP उतना ही Efficiently अंडर लाइन को Replicate करेगा

2. Liquidity : फण्ड में जितनी ज्यादा Liquidity होगी उस ETP को ट्रेड करना उतना ही सरल होगा

3. TER (total expense ratio) : total expense ratio जितनी कम होगी इन्वेस्टर से expenses भी कम चार्ज किये जायेगे

4. AUM (assets under management) : फण्ड में AUM जितना ज्यादा होगा उतना ही इन्वेस्टर का फण्ड में इंटरेस्ट भी बढेगा जिससे TER कम हो जाएगी.

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