सर्वोत्तम उदाहरण और सुझाव

अभौतिक खाता

अभौतिक खाता
"संस्कृति मनुष्य की कृति है तथा एक साधन है , जिसके द्वारा वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करता है। आपका कहना है कि "संस्कृति जीवन व्यतीत करने की एक संपूर्ण विधि ( Total Way of Life) है जो व्यक्ति के शारीरिक , मानसिक एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।"

फिर लौटकर आती है आत्मा

रीट मनोविज्ञान नोट्स -Imagination(कल्पना ) notes for REET

कल्पना एक प्रकार की मानसिक प्रक्रिया हैं । जिसके माध्यम से बीटी हुई अनुभूतियों को या फिर जो तथ्य हमारे सामने प्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत नहीं हैं । उन्हे स्मरण किया जाता हैं । कल्पना दूरस्थ वस्तुओ का संबंध में चिंतन हैं – मकड़ुएगल

कल्पना की परिभाषा

कल्पना की खोज विलियम मकड़ुएगल के द्वारा की गई थी अभौतिक खाता । ये दो प्रकार की होती है ;

  1. पुनरुत्पादक कल्पना Re-Productive Imagination
  2. उत्पादक कल्पना Productive Imagination- इसके दो प्रकार हैं –
    1. रचनात्मक कल्पना constructive – इसे निर्माणात्मक कल्पना भी कहा जाता हैं । ये भौतिक होती हैं ।
    2. सृजनात्मक कल्पना Creative – ये अभौतिक कल्पना होती हैं ।

    पुनरुत्पादक कल्पना

    “बीती हुई अनुभूतियों का ज्यों का त्यों स्मरण मे लाना ही पुनरुत्पादक कल्पना हैं । ” जैसे – बचपन में मैं दिनभर खाता रहता था कोई टेंशन नहीं थी ।

    “बीती हुई स्मृतयो को इस प्रकार सृजित किया जाए की कुछ नवीन तथ्य उत्पन्न हो तो इसे उत्पादक कल्पना कहते हैं । “जैसे – एक बालक बूंदी में एक मकान देखा ओर अपने गाँव में भी वैसे ही मकान बनाने की कल्पना करता हैं किन्तु उसका गेट अलग तरीके से बनाना चाहता हैं । इसके दो प्रकार हैं –

    1. रचनात्मक कल्पना – किसी भौतिक वस्तु के निर्माण की कल्पना करना , रचनात्मक कल्पना हैं । जैसे – एक अभियंता का नदी पर पुल बनाने की कल्पना करना । थॉमस अल्वा एडीसन का विद्युत बल्ब का आविष्कार करने की कल्पना करना ।
    2. सृजनात्मक कल्पना – किसी अभौतिक वस्तु का निर्माण करना अभौतिक खाता ही सृजिनात्मक कल्पना हैं । जैसे – कविता , गीत संगीत की रचना की कल्पना करना

    ड्रेवर के अनुसार कल्पना

    1. पुनरुत्पादक कल्पना
    2. उत्पादक कल्पना- इसके दो प्रकार हैं
      1. आदानात्मक या ग्राही कल्पना
      2. सृजनात्मक कल्पना- इसके दो प्रकार हैं
        1. परिणामवादी / कार्य साधक – इसके दो प्रकार हैं
          1. विचारक / सिद्धांतिक
          2. क्रियात्मक / व्यावहारिक
          1. कलात्मक
          2. मन तरंग ( खयाली पुलाव )

          Note :- जेम्स ड्रेवर ने विलियम मकड़ुएगल के आधार पर ही कल्पना के परकर दिए थे ।

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          क्या आप जानते हैं कि मानव संस्कृति का निर्माण कैसे कर पाया ?

          लेस्ली ए व्हाईट ( Leslie A White) के अनुसार मानव संस्कृति का निर्माण

          लेस्ली ए व्हाईट ( Leslie A White) ने मानव में पाँच विशिष्ट क्षमताओं का उल्लेख किया हैं , अभौतिक खाता जिसे मनुष्य ने प्रकृति से पाया है और जिसके फलस्वरूप वह संस्कृति का निर्माण कर सका है :

          मानव में पाँच विशिष्ट क्षमता जिससे मानव संस्कृति का निर्माण हुआ

          पहली विशेषता है-

          • मानव के खड़े रहने की क्षमता , इससे व्यक्ति दोनों हाथों द्वारा उपयोगी कार्य करता है।
          • मनुष्य के हाथों की बनावट है , जिसके फलस्वरूप वह अपने हाथों का स्वतन्त्रतापूर्वक किसी भी दिशा में घुमा पाता है और उसके द्वारा तरह-तरह की वस्तुओं का निर्माण करता है ।
          • मानव की तीक्ष्ण दृष्टि , जिसके कारण वह प्रकृति तथा घटनाओं का निरीक्षण अवलोकन कर पाता है और तरह-तरह की खोज एवं अविष्कार करता है।

          संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा

          प्रसिद्ध मानवशास्त्री एडवर्ड बनार्ट टायलर ( 1832-1917 ) के द्वारा सन् 1871 में प्रकाशित पुस्तक Primitive Culture में संस्कृति के संबंध में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है।

          टायलर द्वारा दी गयी संस्कृति की परिभाषा

          टायलर मुख्य रूप से संस्कृति की अपनी परिभाषा के लिए जाने जाते हैं , इनके अनुसार ,

          संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान , विश्वास , कला आचार , कानून , प्रथा और अन्य सभी क्षमताओं तथा आदतों का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज के नाते प्राप्त कराता है। "

          • टायलर ने संस्कृति का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है। इनके अनुसार सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति अपने पास जो कुछ भी रखता है तथा सीखता है वह सब संस्कृति है। इस परिभाषा में सिर्फ अभौतिक तत्वों को ही सम्मिलित किया गया है।

          संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा |मानव संस्कृति का निर्माण |Meaning and definitions of culture in Hindi

          संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा |मानव संस्कृति का निर्माण |Meaning and definitions of culture in Hindi

          • संस्कृति शब्द का प्रयोग हम दिन-प्रतिदिन के जीवन में (अक्सर ) निरन्तर करते रहते हैं। साथ ही संस्कृति शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न अर्थों में भी करते हैं। उदाहरण के तौर पर हमारी संस्कृति में यह नहीं होता तथा पश्चिमी संस्कृति में इसकी स्वीकृति है। समाजशास्त्र विज्ञान के रूप में किसी भी अवधारणा का स्पष्ट अर्थ होता है जो कि वैज्ञानिक बोध को दर्शाता है।
          • अतः "संस्कृति" का अर्थ समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में सीखा हुआ व्यवहार होता है। अर्थात् कोई भी व्यक्ति बचपन से अब तक जो कुछ भी सीखता है, उदाहरण के तौरे पर खाने का तरीका , बात करने का तरीका , भाषा का ज्ञान लिखना पढना तथा अन्य योग्यताएँ , यह संस्कृति है।

          मनुष्य का कौन सा व्यवहार संस्कृति है ?

          मनुष्य के व्यवहार के कई पक्ष हैं

          ( अ) जैविक व्यवहार ( Biological behaviour) जैसे- भूख , नींद , चलना , दौड़ना ।

          ( ब) मनोवैज्ञानिक व्यवहार ( Psychological behaviour ) जैसे- सोचना , डरना , हँसना आदि

          ( स) सामाजिक व्यवहार ( Social behaviour ) जैसे- नमस्कार करना , पढ़ना-लिखना , बातें करना आदि ।

          क्या आप जानते हैं कि मानव संस्कृति का निर्माण कैसे कर पाया ?

          लेस्ली ए व्हाईट ( Leslie A White) के अनुसार मानव संस्कृति का निर्माण

          लेस्ली ए व्हाईट ( Leslie A White) ने मानव में पाँच विशिष्ट क्षमताओं का उल्लेख किया हैं , जिसे मनुष्य ने प्रकृति से पाया है और जिसके फलस्वरूप वह संस्कृति का निर्माण कर सका है :

          मानव में पाँच विशिष्ट क्षमता जिससे मानव संस्कृति का निर्माण हुआ

          पहली विशेषता है-

          • मानव के खड़े रहने की क्षमता , इससे व्यक्ति दोनों हाथों द्वारा उपयोगी कार्य करता है।
          • मनुष्य के हाथों की बनावट है , जिसके फलस्वरूप वह अपने हाथों का स्वतन्त्रतापूर्वक किसी भी दिशा में घुमा पाता है और उसके द्वारा तरह-तरह की वस्तुओं का निर्माण करता है ।
          • मानव की तीक्ष्ण दृष्टि , जिसके कारण वह प्रकृति तथा घटनाओं का निरीक्षण अवलोकन कर पाता है और तरह-तरह की खोज एवं अविष्कार करता है।

          संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा

          प्रसिद्ध मानवशास्त्री एडवर्ड बनार्ट टायलर ( 1832-1917 ) के द्वारा सन् 1871 में प्रकाशित पुस्तक Primitive Culture में संस्कृति के संबंध में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है।

          टायलर द्वारा दी गयी संस्कृति की परिभाषा

          टायलर मुख्य रूप से संस्कृति की अपनी परिभाषा के लिए जाने जाते हैं , इनके अनुसार ,

          संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान , विश्वास , कला आचार , कानून , प्रथा और अन्य सभी क्षमताओं तथा आदतों का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज के नाते प्राप्त कराता है। "

          • टायलर ने संस्कृति का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है। इनके अनुसार सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति अपने पास जो कुछ भी रखता है तथा सीखता है वह सब संस्कृति है। इस परिभाषा में सिर्फ अभौतिक तत्वों को ही सम्मिलित किया गया है।

          पितृपक्ष विशेष : क्या मृत्यु के बाद सभी बनते हैं प्रेत, कैसा होता है आत्मा सफर?

          शरीर से निकलने के बाद आत्मा की स्थिति

          मृत्यु तो एक दिन सभी की आनी है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा जब शरीर से निकल जाती है तो कुछ समय तक अचेत स्थिति में रहती है। चेतना आने पर आत्मा अपने शरीर को देखकर मोहवश अपने परिवार और अपने शरीर को देखकर दुःखी होती रहती है और परिजनों से बात करना चाहती, फिर से अपने शरीर में लौटने की कोशिश करती है लेकिन शरीर में फिर से प्रवेश नहीं कर पाती है। इसके बाद यम के दूत आत्मा को अपने साथ तीव्र गति से लेकर यम के दरबार में पहुंचा देते हैं। यहां चित्रगुप्त और यम के सभासद व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा करके वापस परिजनों के पास पहुंचा देते हैं।

          फिर लौटकर आती है आत्मा

          यहां मृत व्यक्ति की आत्मा मृत्यु के 12 दिनों तक प्रेतावस्था में परिवार वालों के बीच में रहती है और परिजनों द्वारा दिए गए पिंडदान को खाते हैं और दिए गए जल को पीते हैं जिससे अंगूठे के आकार का इनका अभौतिक शरीर तैयार होता है जिन्हें व्यक्ति के द्वारा जीवित अवस्था में किए गए कर्मों का फल भोगना होता है। इसी अभौतिक शरीर को यम के दूत 12वें दिन यमपास में बांधकर यममार्ग पर ले जाते हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यममार्ग का सफर बहुत ही कठिन होता है। इस मार्ग पर व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार कष्ट प्राप्त होता है। 12 महीने में 16 नगरों और कई नरकों को पार करके आत्मा यमलोक पहुंचती है।

          आत्मा के लिए वो 12 दिन

          आत्मा के लिए वो 12 दिन

          गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के बाद हर व्यक्ति को 12 दिनों के लिए प्रेत योनी में जाना होता है। यह 12 दिन मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति की आत्मा को अभौतिक शरीर दिलाने के लिए होता है। यही अभौतिक शरीर पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग और पाप के प्रभाव से नरकगामी होता है। कर्म भोगने वाले इस शरीर द्वारा कर्म के फल को भोग लिए जाने के बाद फिर से जीवात्मा को नया शरीर प्राप्त होता है। स्वर्ग गए लोग अपने पुण्य के प्रभाव से धनवान और सुखी परिवार में जन्म लेते हैं या अपने कर्मों से धनवान होते हैं।

          मृत्यु के बाद आत्मा का सफर

          मृत्यु के बाद आत्मा का सफर

          गरुड़ पुराण जिसमें मृत्यु के बाद की स्थिति का वर्णन किया गया है, उसमें बताया गया है, जो लोग पुण्यात्मा होते हैं केवल वही भगवान विष्णु के दूतों द्वारा विष्णु लोक को जाते हैं। इन्हें प्रेत योनी में नहीं जाना होता है बाकी सभी लोगों को मृत्यु के बाद प्रेत योनी से गुजरना ही होता है। मृत्यु के बाद जब आत्मा को यमलोक लाया जाता है तो यम के दूत एक दिन में उस अभौतिक शरीर को एक दिन में 1600 किलोमीटर चलाते हैं। महीने में एक दिन मृत्यु तिथि के दिन आत्मा को ठहरने का मौका दिया जाता है।

          इसलिए मृत्यु के बाद श्राद्ध तर्पण जरूरी

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