Quotex पर आपूर्ति और मांग क्षेत्रों का उपयोग कैसे करें

ताप बिजली संयंत्रों के लिए टोलिंग की अनुमति
राज्यों की ओर से बिजली की बढ़ती मांग और कोयले की आपूर्ति में कमी को देखते हुए केंद्र सरकार ने आज ताप बिजली संयंत्रों के लिए 25 प्रतिशत तक 'टोलिंग' की अनुमति दे दी है। साथ ही सुझाव दिया है कि बिजली उत्पादन कंपनियों Quotex पर आपूर्ति और मांग क्षेत्रों का उपयोग कैसे करें को 10 प्रतिशत मिलाने के लिए कोयले के आयात पर विचार करना चाहिए। इसके साथ ही मंत्रिमंडल ने कोयला और ऊर्जा से संबंधित बुनियादी ढांचे की स्थापना और विकास के लिए खनन की जा चुकी भूमि के इस्तेमाल संबंधी नीति को भी मंजूरी दी है।
एक आधिकारिक बयान में बिजली मंत्रालय ने कहा है कि लंबी दूरी तक कोयले की ढुलाई से बचने के लिए कोयले के लिंकेज के 25 प्रतिशत तक टोलिंग की सुविधा कुछ निश्चित बिजली उत्पादन कंपनियों Quotex पर आपूर्ति और मांग क्षेत्रों का उपयोग कैसे करें को दी जाएगी। बिजली मंत्री आरके सिंह ने कहा कि आयातित कोयला आधारित संयंत्रों के परिचालन और राज्यों द्वारा मिश्रण के लिए कोयले के आयात की समीक्षा के बाद यह किया गया है।
एक आधिकारिक बयान के मुताबिक सिंह ने कहा, 'इससे राज्य अपने संयंत्र से जुड़े कोयले का अधिकतम इस्तेमाल अपनी नजदीकी खदान से कर सकेंगे, क्योंकि दूर से कोयले की ढुलाई की तुलना में बिजली पारेषण सरल होगा।'
सिंह की अध्यक्षता में एक समीक्षा में राज्यों और बिजली उत्पादकों के लक्ष्योंं की सूची तैयार की गई, जिससे मिश्रण के मकसद से कोयले की डिलिवरी सुनिश्चित हो सके। बयान में कहा गया है, 'राज्य वार और बिजली उत्पादन कंपनियां (जेनको) वार लक्ष्य तय किए गए थे और यह अनुरोध किया गया था कि मिश्रण करने के मकसद से कोयले की डिलिवरी मॉनसून आने के पहले कर ली जाए क्योंकि बारिश के सीजन में कोयले की आपूर्ति प्रभावित होती है।' बयान में कहा गया है, 'मंत्री ने आयातित कोयले पर आधारित परिचालन की समीक्षा की और सभी उत्पादक राज्यों को निर्देश दिए कि सभी आईसीबी संयंत्रों का परिचालन उचित और तार्किक शुल्क पर होने चाहिए।' खबरों के मुताबिक भारत को इस साल गर्मी के मौसम में ज्यादा बिजली कटौती की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि कोयले का भंडार गर्मी के पहले के 9 साल के निचले स्तर पर है, जबकि गर्मी बढऩे के साथ बिजली की मांग बढऩे की पूरी संभावना है। खबरों के मुताबिक महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने पहले से ही अनिवार्य बिजली कटौती शुरू कर दी है।
कोयले की खाली जमीन के उपयोग की नीति को मंजूरी वहीं एक अन्य फैसले में मंत्रिमंडल ने एक नीति को मंजूरी दी है, जिसके तहत खदानों की जमीन का इस्तेमाल किया जा सकेगा। यह नीति ऐसी भूमि के उपयोग के लिए स्पष्ट रूपरेखा देती है जिनमें खनन हो चुका है या जो खनन के लिए व्यावहारिक रूप से अनुपयुक्त है या फिर कोयला खनन गतिविधियों के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है।
मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'कोयला क्षेत्र में निवेश तथा रोजगार सृजन को बढ़ाने के उद्देश्य से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला युक्त क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 (सीबीए अधिनियम) के तहत अधिग्रहीत भूमि के उपयोग के लिए नीति को मंजूरी दी है। इस नीति में कोयला और ऊर्जा से संबंधित अवसंरचना के विकास तथा स्थापना के उद्देश्य से ऐसी भूमि के उपयोग का प्रावधान है।' सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनियां, जैसे कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और इसकी अनुषंगी, सीबीए अधिनियम के तहत अधिग्रहीत इन भू-क्षेत्रों की मालिक बनी रहेंगी और इस नीति के तहत केवल नीति में दिए गए निर्दिष्ट उद्देश्यों के लिए ही भूमि को पट्टे पर दिया जा सकेगा।
बयान में कहा गया कि कोयला और ऊर्जा संबंधी अवसंरचना विकास गतिविधियों के लिए सरकारी कोयला कंपनियां संयुक्त परियोजनाओं में निजी पूंजी लगा सकती हैं।
ईमानदारी और पारदर्शिता के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध
ओरेकल के अध्यक्ष (जापान और एशिया प्रशांत) गैरेट इल्ग इस बात पर जोर देते हैं कि कंपनी के कार्यों की ईमानदारी और पारदर्शिता हमेशा सर्वोपरि रहेगी। उनकी यह टिप्पणी हाल में ओरेकल के खिलाफ लगाए गए आरोपों के मद्देनजर आई है। उसे अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी) को 2.3 करोड़ डॉलर का भुगतान करना पड़ा था क्योंकि उसने विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम का उल्लंघन किया था। शिवानी शिंदे के साथ एक साक्षात्कार में गैरेट ने बताया कि हाल के दिनों में कर्मचारियों के लिए अनुपालन प्रशिक्षण सख्त हो गया है। उन्होंने भारत में ओरेकल क्लाउड समाधान के लिए तेजी से बढ़ती मांग, विकास केंद्र की भूमिका और कंपनी में बदलती संस्कृति के संबंध में भी बात की। संपादित अंश...
ऐसा दूसरी बार हुआ है, जब ओरेकल ने खुद को भ्रष्टाचार के मसले में उलझा हुआ पाया है, जिसे उसने शुल्क से निपटाया है। इस विषय में आपकी क्या टिप्पणियां हैं और अगले कदम क्या हैं?
इस संबंध में मेरे पास प्रत्येक जानकारी नहीं है। लेकिन मैं आपको यह बता सकता हूं कि हम ऐसे मसलों को गंभीरता से लेते हैं। हम अपने कार्यों की ईमानदारी और पारदर्शिता दोनों के लिए ही पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। हमारे आंतरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम हैं, जिनका दुनिया भर में हमारे सभी कर्मचारियों के लिए प्रबंध किया जाता है और पैमाइश की जाती है तथा हमारे अनुपालन के रूप में हम सभी को इस प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है। हम इस मामले में पिछले एक साल में और अधिक आक्रामक हो गए हैं। हम न केवल जागरूकता फैला रहे हैं, बल्कि हम शिक्षित कर रहे हैं और सुनिश्चित कर रहे हैं कि हम कंपनी के भीतर उस शिक्षा को सुदृढ़ करें।
क्या इसका किसी भी तरह से कारोबार पर असर पड़ा है?
यह निश्चित रूप से बातचीत का विषय है। इस संबंध में हमसे सवाल पूछे गए हैं और हमने इस पर ठीक उन्हीं बिंदुओं के साथ बात की है, जो मैंने यहां साझा किए हैं। इससे हमारे कारोबार पर कोई असर नहीं पड़ा है। मुझे लगता है कि हमारे बहुत से ग्राहक यह समझते हैं कि किसी के द्वारा किए गए कुछ बुरे कृत्यों का मतलब यह नहीं है कि पूरी कंपनी बुरी है और हमारा काम यह सुनिश्चित करना है कि ऐसा कोई कृत्य कभी न हो।
क्लाउड पर खर्च के मामले में भारतीय बाजार कैसा है और ओरेकल के मामले में यह कैसे बढ़ रहा है?
ओरेकल के लिए भारत एक बहुत ही रणनीतिक क्षेत्र है और कई अन्य कंपनियों के विपरीत भारत ओरेकल के शीर्ष नेतृत्व के साथ काफी नजदीक से जुड़ा हुआ है। भारत एक ऐसा बाजार है, जो नवाचार कर रहा है, इसके पास ऐसा मध्य वर्ग है जो तेजी से विकसित हो रहा है, शायद दुनिया में किसी और जगह की तुलना में सबसे तेजी से।
भारत कितना महत्वपूर्ण है?
बहुत महत्त्वपूर्ण। हमारे पास भारत में दो डेटा क्षेत्र हैं (मुंबई और हैदराबाद) तथा हम एयरटेल के साथ तीसरे वाले पर काम कर रहे हैं। हमारे दोनों डेटा क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुरूप हैं। ओरेकल इंडिया, ओरेकल के लिए वैश्विक उद्यम है। हम अपने वैश्विक उत्पाद विकास, समर्थन, परामर्श, ग्राहक सेवा आदि का काफी कुछ करते हैं। हम सभी दिशाओं में विस्तार कर रहे हैं।
मंदी ओरेकल को किस तरह प्रभावित कर रही है?
वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं वास्तव में अभी काफी असमान हैं। प्रत्येक देश अपने खुद के मसलों में फंसा हुआ है या तो मुद्रास्फीति के दबाव से या फिर मुद्रा में उतार-चढ़ाव के कारण और कई अर्थव्यवस्थाएं अब भी कारोबारी बाधाओं का सामना कर रही हैं, खास तौर पर कोविड के बाद की आपूर्ति श्रृंखला के मसलों की वजह से, जो अभी भी सुस्त है तथा निश्चित रूप से
भू- राजनीतिक चुनौतियां भी हैं।
जनसंख्या, स्वास्थ्य, और फिलीपींस में पर्यावरण: एक समृद्ध इतिहास
फिलीपींस बहुक्षेत्रीय जनसंख्या का उपयोग करके प्रोग्रामिंग में अग्रणी रहा है, स्वास्थ्य, और पर्यावरण (पीएचई) दृष्टिकोण. The country has much to share with others interested in using the PHE approach to improve conservation efforts , परिवार नियोजन, and overall health in their communities . For the first time , insights from two decades of PHE programming have been collected in one document— The History of Population , स्वास्थ्य, and Environment Approaches in the Philippines . Intended for use by others interested in multi-sectoral approaches , this document provides both a history of PHE programs in the country and a compendium of themes and programmatic lessons learned .
जनसंख्या, स्वास्थ्य, और पर्यावरण (पीएचई) is an integrated community-based approach that recognizes and addresses the complex relationships between people’s health and the environment . This multi-sectoral approach strives to improve voluntary family planning and reproductive health , conservation , and natural resource management within the communities living in ecologically rich areas of our globe .
में 2000, the Integrated Population and Coastal Resource Management ( IPOPCORM ) initiative was launched in the Philippines . A trailblazing Population , स्वास्थ्य, और पर्यावरण (पीएचई) कार्यक्रम, IPOPCORM provided evidence that multi-sectoral approaches actually worked—and could promote community health and environmental conservation more effectively than standalone programs . When IPOPCORM was launched , there was a limited amount of information about PHE—looking for “PHE” on any search engine was fruitless . अब, knowledge about the approach is widely available—and programs in the Philippines have contributed to the rich evidence and tools available . But insights , recommendations , and programmatic guidance are still spread across multiple resources and project reports . Some lessons learned were never even documented explicitly and remained “in the heads” of PHE experts .
Summarizing the Philippines’ rich history of PHE work
इस पर बात करो, Knowledge SUCCESS partnered with PATH Foundation Philippines to curate and compile evidence and experiences from decades of PHE programs in the Philippines . Together we synthesized dozens of documents and conducted in-depth interviews with experts and implementers who have worked on groundbreaking PHE programs in the Philippines . The result is a 75-page booklet that combines a history of PHE in the Philippines with a roundup of themes and programmatic guidance .
Until now , the information in this booklet has been scattered among various project reports , बहीखाता सामग्री, and meeting notes—and in some cases , not documented at all . This resource reviews the rich history of PHE in the Philippines , highlighting key projects and milestones . It then summarizes implementation guidance , सीख सीखी, and key themes that have emerged during the last two decades , and provides links to resources and tools with more details . The booklet also includes quotes from experts , strategies for engaging communities , and success stories on various PHE themes and programs .
What does the new publication cover ?
The History of Population , स्वास्थ्य, and Environment Approaches in the Philippines describes the benefits of the PHE approach—with a particular emphasis on vulnerable and marginalized communities . It talks about the value of partnerships—among advocates , स्वास्थ्य - कर्मी, नीति Quotex पर आपूर्ति और मांग क्षेत्रों का उपयोग कैसे करें निर्माताओं, and community members—and shows the impact of multiple sectors coming together for common goals of reducing environmental degradation and improving reproductive health .
The booklet provides guidance and lessons learned for those implementing PHE programs in other settings , including information on the following topics :
A community gathering . छवि क्रेडिट: पाथ फाउंडेशन फिलीपींस, इंक.
- Communicating about PHE’s impact
- Establishing long-term commitment from PHE champions and communities
- Working with faith-based groups
- Framing PHE within the larger context
- Ensuring local ownership for sustainability
- Scaling up PHE
- Meeting the needs of underserved groups ( including youth )
- Addressing gender
- Integrating programs
How can you use these PHE lessons for your own work ?
This is a practical resource for others interested in PHE implementation , including program managers , तकनीकी सलाहकार, or policymakers in the Philippines and worldwide . In today’s increasingly interconnected world , it is especially important to explore multi-sectoral approaches to meet the holistic needs of families and communities . We look forward to seeing how others incorporate these learnings into their own programs to advance the health and well-being of communities around the world .
The publication can be accessed on लोग-ग्रह कनेक्शन, a new site dedicated to collecting PHE information and resources in one central location .
Interested in Knowledge SUCCESS ’ other PHE work ?
View our 20 जनसंख्या के लिए आवश्यक संसाधन, स्वास्थ्य, और पर्यावरण संग्रह | Not sure where to start ? Take a quiz to see what PHE resources suit your needs
World Blood Donor Day:खून की मांग 70 फीसदी बढ़ी पर रक्तदान घटा
देश में कोरोना के मामले बढ़ने और अनलॉक 1 के तहत गतिविधियां तेज होने के बाद दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में खून की मांग 70 फीसदी तक बढ़ी है। बस, ट्रक और वाहनों की आवाजाही के बाद दुर्घटनाओं के बढ़ते मामलों.
देश में कोरोना के मामले बढ़ने और अनलॉक 1 के तहत गतिविधियां तेज होने के बाद दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में खून की मांग 70 फीसदी तक बढ़ी है। बस, ट्रक और वाहनों की आवाजाही के बाद दुर्घटनाओं के बढ़ते मामलों से भी अस्पतालों में खून की मांग में तेजी आई है, लेकिन रक्तदान सामान्य काल से काफी कम है।
इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी दिल्ली की निदेशक डॉ. वनश्री सिंह का कहना है कि मांग 60 से 70 फीसदी तक बढ़ी है। दिल्ली में जीटीबी, एलएनजेपी और कुछ अन्य अस्पताल कोविड से संबद्ध होने के कारण उन अस्पतालों के थैलेसीमिया, डायलिसिस और अन्य ब्लड डिसऑर्डर के मरीजों से ब्लडबैंकों में रक्त की मांग बढ़ी है।
ब्लडबैंक से अस्पतालों की मांग पूरी नहीं होने से रिश्तेदारों को बुलाकर मांग पूरी करनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान मार्च-अप्रैल में रक्त एकत्र करने में औसतन 30 से 50 फीसदी कमी आई थी, लेकिन तब सर्जरी कम होने, दुर्घटनाएं कम घटने के कारण ज्यादा मांग न होने से कोई संकट नहीं आया। लेकिन अब वापस मांग बढ़ने से तैयारी दोगुनी बढ़ा दी गई है। बंद जगहों पर रक्तदान तीन गुना बढ़ाकर कमी पूरी की गई है।
कोविड का संक्रमण और उनके संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या बढ़ने के कारण बहुत से वालंटियर डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन और स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रोटोकॉल के अनुसार रक्तदान नहीं कर पाएंगे। कंटेनमेंट जोन बढ़ने से उन इलाकों में कैंप नहीं लग पाएंगे और न ही वहां के स्वयंसेवा जुड़ पाएंगे।
एम्स में एक हफ्ते की जरूरत का स्टॉक
एम्स के अधिकारियों का कहना है कि रक्त की मांग बढ़ने के साथ हमने रक्तदान अभियान भी तेज किया है। अस्पताल में हमेशा एक हफ्ते की जरूरत का स्टॉक बनाए रखा जाता है।
आपात तैयारियां आवश्यक
विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली-एनसीआर में कोविड के मरीजों की बढ़ती संख्या के कारण कंटेनमेंट जोन बढ़ेंगे। कोविड से ज्यादा अस्पताल संबद्ध हो सकते हैं। ऐसे में रक्तदान में फिर मार्च-अप्रैल जैसी दिक्कतें आ सकती हैं, लिहाजा आपात तैयारी करना आवश्यक है।
राजधानी में हमेशा आपूर्ति से ज्यादा मांग
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, एक प्रतिशत आबादी रक्तदान करे तो उस देश की जरूरतें पूरी होती हैं। लेकिन दिल्ली की दो करोड़ की आबादी के हिसाब से एक प्रतिशत दो लाख होती है, लेकिन हम 70 ब्लड बैंक के जरिये सात लाख यूनिट रक्त इकट्ठा करते हैं, फिर भी दिल्ली में इलाज के लिए देश भर से लोगों के आने और भारी आवागमन से वाहन दुर्घटनाओं के कारण कमी बनी रहती है।
हरियाणा का योगदान बढ़ा
दिल्ली-एनसीआर में संकट के दौरान हरियाणा ने रक्तदान बेहतर रहा। रोटरी ब्लड बैंक फरीदाबाद के अध्यक्ष संजय वधावन ने कहा कि मार्च और अप्रैल की शुरुआत में परेशानियां रहीं, लेकिन मई में रक्त संग्रह को डेढ़ गुना बढ़ गया है। थैलेसीमिया और अन्य रोगों के करीब 313 मरीजों को ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराया। रेडक्रॉस ने भी हरियाणा के जरिये दिल्ली की मांग को पूरा किया।
इस कारण रक्त की मांग बढ़ी-
-वाहन दुर्घटनाओं में दोबारा वृद्धि
-अस्पतालों में सर्जरी फिर शुरू हुईं
-प्रसव या प्रसवोपरांत की जरूरतें
-दूसरी जगहों के थैलेसीमिया के मरीज आए
लॉकडाउन में बढ़ा था दबाव-
-शून्य हो गया था स्वैच्छिक रक्तदान इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी का अप्रैल में
-30 फीसदी घटा रक्त संग्रह नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल का मार्च में
सुरक्षित हैं ब्लड डोनेशन-
-रक्तदान करने से किसी को संक्रमण नहीं होता
-सोशल डिस्टेंसिंग के साथ रक्तदान पहले की तरह सुरक्षित
-रक्तदान से जुड़े संगठन लाने-ले जाने की सुविधा दे रहे
-थर्मल स्क्रीनिंग, लोकेशन हिस्ट्री जानकर ही रक्त ले रहे
-विदेशी यात्री या संक्रमित के परिवार का भी रक्त नहीं लेते
विकसित देशों से सीखें भारतीय-
-विकसित देशों मे 1000 में से 150 लोग करते हैं रक्तदान
-10-15 लोग ही हजार में से स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं भारत में
पहले भी महामारी के समय था संकट-
-90 फीसदी तक गिर गया था रक्त संग्रह सार्स के कारण 2003 में
-60 फीसदी तक कम हो गया था रक्त संग्रह सिंगापुर में तब