विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है

Options Trading: क्या होती है ऑप्शंस ट्रेडिंग? कैसे कमाते हैं इससे मुनाफा और क्या हो आपकी रणनीति
Options Trading: निश्चित ही ऑप्शंस ट्रेडिंग एक जोखिम का सौदा है. हालांकि, अगर आप बाजार के बारे में जानकारी रखते हैं और कुछ खास रणनीति बनाकर चलते हैं तो इससे मुनाफा अर्जित कर सकते हैं.
By: मनीश कुमार मिश्र | Updated at : 18 Oct 2022 03:40 PM (IST)
ऑप्शंस ट्रेडिंग ( Image Source : Getty )
डेरिवेटिव सेगमेंट (Derivative Segment) भारतीय बाजार के दैनिक कारोबार में 97% से अधिक का योगदान देता है, जिसमें ऑप्शंस एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनता है. निवेशकों के बीच बाजार की जागरूकता बढ़ने के साथ, ऑप्शंस ट्रेडिंग (Options Trading) जैसे डेरिवेटिव सेगमेंट (Derivative Segment) में रिटेल भागीदारी में उछाल आया है. इसकी मुख्य वजह उच्च संभावित रिटर्न और कम मार्जिन की आवश्यकता है. हालांकि, ऑप्शंस ट्रेडिंग में उच्च जोखिम शामिल है.
क्या है ऑप्शंस ट्रेडिंग?
Options Trading में निवेशक किसी शेयर की कीमत में संभावित गिरावट या तेजी पर दांव लगाते हैं. आपने कॉल और पुष ऑप्शंस सुना ही होगा. जो निवेशक किसी शेयर में तेजी का अनुमान लगाते हैं, वे कॉल ऑप्शंस (Call Options) खरीदते हैं और गिरावट का रुख देखने वाले निवेशक पुट ऑप्शंस (Put Options) में पैसे लगाते हैं. इसमें एक टर्म और इस्तेमाल किया जाता है स्ट्राइक रेट (Strike Rate). यह वह भाव होता है जहां आप किसी शेयर या इंडेक्स को भविष्य में जाता हुआ देखते हैं.
जानकारी के बिना ऑप्शंस ट्रेडिंग मौके का खेल है. ज्यादातर नए निवेशक ऑप्शंस में पैसा खो देते हैं. ऑप्शंस ट्रेडिंग में जाने से पहले कुछ बुनियादी बातों से परिचित होना आवश्यक है. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के हेड - इक्विटी स्ट्रैटेजी, ब्रोकिंग एंड डिस्ट्रीब्यूशन हेमांग जानी ने ऑप्शंस ट्रेडिंग को लेकर कुछ दे रहे हैं जो आपके काम आ सकते हैं.
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धन की आवश्यकता: ऑप्शंस की शेल्फ लाइफ बहुत कम होती है, ज्यादातर एक महीने की, इसलिए व्यक्ति को किसी भी समय पूरी राशि का उपयोग नहीं करना चाहिए. किसी विशेष व्यापार के लिए कुल पूंजी का लगभग 5-10% आवंटित करना उचित होगा.
ऑप्शन ट्रेड का मूल्यांकन करें: एक सामान्य नियम के रूप में, कारोबारियों को यह तय करना चाहिए कि वे कितना जोखिम उठाने को तैयार हैं यानी एक एग्जिट स्ट्रेटजी होनी चाहिए. व्यक्ति को अपसाइड एग्जिट पॉइंट और डाउनसाइड एग्जिट पॉइंट को पहले से चुनना होगा. एक योजना के साथ कारोबार करने से व्यापार के अधिक सफल पैटर्न स्थापित करने में मदद मिलती है और आपकी चिंताओं को अधिक नियंत्रण में रखता है.
जानकारी हासिल करें: व्यक्ति को ऑप्शंस और उनके अर्थों में आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ जार्गन्स से परिचित होने का प्रयास करना चाहिए. यह न केवल ऑप्शन ट्रेडिंग से अधिकतम लाभ प्राप्त करने में मदद करेगा बल्कि सही रणनीति और बाजार के समय के बारे में भी निर्णय ले सकता है. जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं, सीखना संभव हो जाता है, जो एक ही समय में आपके ज्ञान और अनुभव दोनों को बढ़ाता है.
इलिक्विड स्टॉक में ट्रेडिंग से बचें: लिक्विडिटी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यक्ति को ट्रेड में अधिक आसानी से आने और जाने की अनुमति देता है. सबसे ज्यादा लिक्विड स्टॉक आमतौर पर उच्च मात्रा वाले होते हैं. कम कारोबार वाले स्टॉक अप्रत्याशित होते हैं और बेहद स्पेक्युलेटिव होते हैं, इसलिए यदि संभव हो तो इससे बचना चाहिए.
होल्डिंग पीरियड को परिभाषित करें: वक्त ऑप्शंस के मूल्य निर्धारण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. प्रत्येक बीतता दिन आपके ऑप्शंस के मूल्य को कम करता है. इसलिए व्यक्ति को भी पोजीशन को समय पर कवर करने की आवश्यकता होती है, भले ही पोजीशन प्रॉफिट या लॉस में हो.
मुख्य बात यह जानना है कि कब प्रॉफिट लेना है और कब लॉस उठाना है. इनके अलावा, व्यक्ति को पोजीशन की अत्यधिक लेवरेज और एवरेजिंग से भी बचना चाहिए. स्टॉक ट्रेडिंग की तरह ही, ऑप्शंस ट्रेडिंग में ऑप्शंस खरीदना और बेचना शामिल है या तो कॉल करें या पुट करें.
ऑप्शंस बाइंग के लिए सीमित जोखिम के साथ एक छोटे वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है अर्थात भुगतान किए गए प्रीमियम तक, जबकि एक ऑप्शंस सेलर के रूप में, व्यक्ति बाजार का विपरीत दृष्टिकोण रखता है. ऑप्शंस को बेचते वक्त माना गया जोखिम मतलब नुकसान मूल निवेश से अधिक हो सकता है यदि अंतर्निहित स्टॉक (Underlying Stocks) की कीमत काफी गिरती है या शून्य हो जाती है.
ऑप्शंस खरीदते या बेचते समय कुछ नियमों का पालन करना चाहिए:
- डीप-आउट-ऑफ-द-मनी (OTM) विकल्प केवल इसलिए न खरीदें क्योंकि यह सस्ता है.
- समय ऑप्शन के खरीदार के खिलाफ और ऑप्शन के विक्रेता के पक्ष में काम करता है. इसलिए समाप्ति के करीब ऑप्शन खरीदना बहुत अच्छा विचार नहीं है.
- अस्थिरता ऑप्शन के मूल्य को निर्धारित करने के लिए आवश्यक कारकों में से एक है. इसलिए आम तौर पर विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है यह सलाह दी जाती है कि जब बाजार में अस्थिरता बढ़ने की उम्मीद हो तो ऑप्शंस खरीदें और जब अस्थिरता कम होने की उम्मीद हो तो ऑप्शंस बेचें.
- प्रमुख घटनाओं या प्रमुख भू-राजनीतिक जोखिमों से पहले ऑप्शंस बेचने के बजाय ऑप्शंस खरीदना हमेशा बेहतर होता है.
नियमित अंतराल पर प्रॉफिट की बुकिंग करते रहें या प्रॉफिट का ट्रेलिंग स्टॉप-लॉस रखें. अगर सही तरीके से अभ्यास किया जाए तो ऑप्शंस ट्रेडिंग से कई गुना रिटर्न्स प्राप्त किया जा सकता है.
(डिस्क्लेमर : प्रकाशित विचार एक्सपर्ट के निजी हैं. शेयर बाजार में निवेश करने से पहले अपने निवेश सलाहकार की राय अवश्य लें.)
Published at : 18 Oct 2022 11:42 AM (IST) Tags: Options Trading Derivatives Call Option Put Option Trading in Options Stop loss हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi
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मुक्त व्यापार समझौते के मोर्चे पर भारत के लिए कई अवसर
वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के कारण सुस्त होती जा रही है। ऐसी स्थिति में विश्व व्यापार में हमारी हिस्सेदारी यदि 3-4 फीसदी भी बढ़ती है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उत्साहजनक होगा। इसी कारण भारत ने मुक्त व्यापार समझौते अर्थात एफटीए पर अपना रुख बदला है। विश्व में अनेक क्षेत्रीय व्यापार समझौते हुए हैं। भारत ने भी 2012 के बाद श्रीलंका, बांग्लादेश, जापान, दक्षिण कोरिया इत्यादि देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारत में उद्योग एवं सरकार में अवधारणा बनी कि एफटीए पर पहले के रुख से भारत को लाभ नहीं मिला, बल्कि उद्योग जगत को नुकसान हुआ। यही कारण था कि भारत, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से 2019 में अलग हो गया।
आरसीईपी समझौते को लेकर भारत की आशंका थी कि शुल्क मुक्त चीनी सामान से घरेलू बाजार भर जाएगा। हालांकि आरसीईपी से अलग होने के बावजूद चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा बीते तीन सालों से बढ़ता ही जा रहा है। यही कारण है कि भारत ने एफटीए को लेकर एक अंतराल के बाद अपना रुख बदला है। संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए हो चुका है। इस क्रम में ब्रिटेन, कनाडा और यूरोपीय यूनियन से वार्ता विभिन्न चरणों में जारी है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार ब्रिटेन के साथ एफटीए वार्ता जल्द पूरी होने वाली है।
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय कमजोर होती मुद्रा, घटते विदेशी मुद्रा भंडार, तीव्र गति से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की निकासी, व्यापार घाटे में वृद्धि इत्यादि विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है की समस्याओं से जूझ रही है। ऐसे में निर्यात वृद्धि आवश्यक है। इसके लिए भारत का ग्लोबल वैल्यू चेन यानी जीवीसी से जुडऩा जरूरी है। जीवीसी से संबद्ध होने में एफटीए की विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है विशिष्ट भूमिका है। हमारे व्यापार में एफटीए की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 16 प्रतिशत थी जो अब 18.5 प्रतिशत है। स्पष्ट है कि भारत एफटीए से आशा के अनुरूप लाभ नहीं उठा सका है। हमारे व्यापार में ज्यादा हिस्सेदारी गैर-एफटीए की है, जिसमें अमरीका, चीन और ईयू प्रमुख हैं। हमारे आयात-निर्यात की दृष्टि से अमरीका का महत्त्व बरकरार है, जबकि ईयू का महत्त्व पहले से कम हुआ है। हमें वर्तमान में उपयोगी देशों और क्षेत्रों से संबंधित एफटीए की जरूरत है। हमें वर्तमान में उच्च निर्यात बाजार अमरीका, ईयू और बांग्लादेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त भविष्य के प्रमुख बाजारों अफ्रीका और लैटिन अमरीकी देशों पर भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
भारत ने 2019 में आरसीईपी से दूरी बनाई, पर अब एशिया पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आइपीईएफ) में शामिल होने का मौका है, जो हाल ही में बना है। इस समूह में 14 देश शामिल हैं और वैश्विक जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी 28 फीसदी है।
ट्रांस पैसिफिक भागीदारी का नेतृत्व कभी अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा करते थे, परंतु ट्रंप ने इससे दूरी बना ली थी। इस समझौते से अलग रहने का खमियाजा अमरीका भुगत रहा है। उसके व्यापार अवसर छूट रहे हैं और उसका भू-राजनीतिक प्रभाव भी घट रहा है। यही कारण है कि अमरीका ने आइपीईएफ की स्थापना में अति सक्रियता दिखाई। भारत को भी त्वरित तौर पर इसमें शामिल होकर व्यवस्थित और सुसंगठित रूप से अपने व्यापार के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहिए। आइपीईएफ में अमरीका, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और वियतनाम हैं, जो भारत के लिए भी खास हैं। गौरतलब है कि चीन, आइपीईएफ में शामिल नहीं है।
यह कोई संयोग नहीं है कि हमारा बीते दो दशकों में चीन, दक्षिण कोरिया और वियतनाम से कारोबार बढ़ा है। ये विश्व के सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धी देश हैं और प्राय: सभी देशों का व्यापार संतुलन का झुकाव इन तीन देशों की तरफ हो गया है। भारत गैर शुल्कीय बाधाओं और अधिक लागत की शिकायत कर सकता है, पर अंतत: प्रतिस्पर्धा को बढ़ाकर ही व्यापार संतुलन को सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके लिए एफटीए सबसे बेहतर विकल्प है।
कई वैश्विक निवेशक ‘चाइना प्लस वन’ की रणनीति अपना रहे हैं। जाहिर है इससे भारत को भी लाभ होगा, विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है क्योंकि ये निवेशक चीन से बाहर वियतनाम, थाईलैंड, भारत जैसे देशों में फैक्ट्री लगाना चाहते हैं। चीन-अमरीका ‘ट्रेड वार’ के समय भी भारत के लिए स्वर्णिम अवसर उपलब्ध थे, पर उनका समुचित लाभ नहीं उठाया जा सका था। वैश्विक भागीदारी से मूल्य संवर्धन के साथ रोजगार के अवसर भी बनेंगे। ‘चाइना प्लस वन’ से उत्पन्न हुए अवसर हमेशा नहीं रहेंगे। इसलिए भारत के लिए आवश्यक है कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में खुलेपन के सिद्धांतों तथा प्रतिस्पर्धी बनने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए। भारत का विकास मुख्य रूप से उत्पादन और सेवा के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर निर्भर है।
विदेशी मुद्रा पदामिहित उन प्राप्तव्यों से प्राप्तियों में विलंब करने की प्रथा जिसकी मुद्राओं का मोल बढ़ने की प्रत्याशा हो और विदेशी मुद्रा के रूप में नामित विदेशी मुद्राएं जिनका मोल घटने की आशंका हो, में विलंब करने को क्या कहा जाता है ?
Key Points
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लीड और लैगआमतौर पर मुद्रा विनिमय दरों में अपेक्षित परिवर्तन का लाभ उठाने के लिए विदेशी मुद्रा में जानबूझकर तेजी या भुगतान में देरी का उल्लेख करते हैं।
- भुगतान की जा रही मुद्रा के सुदृढ़ीकरण से विचाराधीन इकाई के लिए एक छोटा भुगतान होगा, जबकिमुद्रा के कमजोर होने से भुगतान में देरी होने पर लागत में वृद्धि होगी।
- एक निगम या सरकार उचित सीमा के भीतर प्राप्त या किए गए भुगतानों की अनुसूची को नियंत्रित कर सकती है।
- जब किसी विदेशी संस्था को भुगतान शामिल होता है, तो संगठन निर्धारित समय से पहले या बाद में भुगतान करने का विकल्प चुन सकता है।
- ये परिवर्तन मुद्रा विनिमय दरों में परिवर्तन से लाभ प्राप्त करने की प्रत्याशा में किए जाएंगे।
Additional Information नेटिंग- नेटिंग में दो या दो से अधिक पक्षकारों के बीच आदान-प्रदान के कारण कई स्थितियों या भुगतानों के मूल्य को ऑफसेट करना शामिल है। इसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है कि बहुदलीय समझौते में किस पक्ष का पारिश्रमिक बकाया है। नेटिंग एक सामान्य अवधारणा है जिसके विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है वित्तीय बाजारों सहित कई अन्य विशिष्ट उपयोग हैं।
जोखिम हेजिंग- हेजिंग एक जोखिम प्रबंधन रणनीति है जिसका उपयोग संबंधित परिसंपत्ति में विपरीत स्थिति लेकर निवेश में होने वाली हानि की भरपाई के लिए किया जाता है। हेजिंग द्वारा प्रदान की गई जोखिम में कमी भी आम तौर पर संभावित लाभ में कमी का परिणाम है। हेजिंग में इसके द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा के लिए धन का भुगतान करने की आवश्यकता होती है, जिसे प्रीमियम के रूप में जाना जाता है।
अत:, सही उत्तर लैगिंग है।
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Last updated on Nov 10, 2022
University Grants Commission (Minimum Standards and विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है Procedures for Award of Ph.D. Degree) Regulations, 2022 notified. As, per the new regulations, candidates with a 4 years Undergraduate degree with a minimum CGPA of 7.5 can enroll for PhD admissions. The UGC NET Final Result for merged cycles of December 2021 and June 2022 was released on 5th November 2022. Along with the results UGC has also released the UGC NET Cut-Off. With tis, the exam for the merged cycles of Dec 2021 and June 2022 have conclude. The notification for December 2022 is expected to be out soon. The UGC NET CBT exam consists of two papers - Paper I and Paper II. Paper I consists of 50 questions and Paper II consists of 100 questions. By qualifying this exam, candidates will be deemed eligible for JRF and Assistant Professor posts in Universities and Institutes across the country.
विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग जरूरी
हम उम्मीद करें कि एक ऐसे समय जब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार ऐतिहासिक स्तर पर है, तब सरकार के द्वारा वर्ष 2022 में विदेशी मुद्रा भंडार के रणनीतिक उपयोग की उपयुक्त रणनीति बनाई जाएगी। इस परिप्रेक्ष्य में सरकार के द्वारा बुनियादी ढांचा और चिकित्सा ढांचे को मजबूत करने तथा चीन व पाकिस्तान से मिल रही रक्षा चुनौतियों के बीच उपयुक्त मात्रा में आधुनिक रक्षा साजो-सामान की खरीदी के लिए भी विदेशी मुद्रा भंडार का एक उपयुक्त भाग रणनीतिक रूप से व्यय करने की डगर पर आगे बढ़ेगी…
हाल ही में संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। अब विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में पूरी दुनिया में भारत के आगे केवल तीन देश हैं- चीन, जापान और स्विटरलैंड। 7 जनवरी को देश का विदेशी मुद्रा भंडार 632 अरब डॉलर से अधिक की ऊंचाई पर पहुंच गया है। ऐसे विशाल विदेशी मुद्रा भंडार के आकार के मद्देनजर देश के आर्थिक और वित्तीय जगत में यह विचार मंथन किया जा रहा है कि देश में बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य ढांचे की मजबूती तथा चीन व पाक से मिल रही रक्षा चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रों की उपयुक्त मात्रा में खरीदी के लिए विदेशी मुद्रा कोष के एक भाग को व्यय करने की डगर पर रणनीतिक रूप से आगे बढ़ा जाए। गौरतलब है कि एक ओर जब कोविड-19 के कारण जनवरी 2022 की शुरुआत में भी दुनिया की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं संकट के विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है दौर से गुजर रही हैं, तब देश के विशाल आकार के विदेशी मुद्रा भंडार से जहां भारत की वैश्विक आर्थिक साख बढ़ी है, वहीं इस बड़े विदेशी मुद्रा भंडार से देश की एक वर्ष से भी अधिक की आयात जरूरतों की पूर्ति सरलता से की जा सकती है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार देश की अच्छी आर्थिक स्थिति और आकर्षक अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी बन गया है। वस्तुतः विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में देश का तीन दशक पहले का परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। वर्ष 1991 में देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। हमारी अर्थव्यवस्था भुगतान संकट में फंसी हुई थी। उस समय के गंभीर हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार करीब दो-तीन हफ्तों की आयात जरूरतों के लिए भी पर्याप्त नहीं था।
उस समय रिजर्व बैंक के द्वारा करीब 47 टन सोना विदेशी बैंकों के पास गिरवी रख कर विभिन्न आयात जरूरतों के लिए कर्ज लिया गया था। फिर देश के द्वारा वर्ष 1991 में नई आर्थिक नीति अपनाई गई जिसका उद्देश्य वैश्वीकरण और निजीकरण को बढ़ाना रहा। इस नई नीति के पश्चात धीरे-धीरे देश के भुगतान संतुलन की स्थिति सुधरने लगी। वर्ष 1994 से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने लगा। 2002 के बाद इसने तेज गति पकड़ी। वर्ष 2004 में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 100 अरब डॉलर के पार पहुंच गया। फिर इसमें लगातार वृद्धि होती गई और 5 जून 2020 को विदेशी मुद्रा भंडार ने 501 अरब डॉलर के स्तर को प्राप्त किया। इस वर्ष जनवरी 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है का आकार करीब 585 अरब डॉलर को पार कर गया और वर्ष के अंत में यह करीब 635 अरब डॉलर की ऊंचाई पर दिखाई दे रहा है। इस समय देश के विदेशी मुद्रा विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है भंडार के तेजी से बढ़ने के तीन प्रमुख आधार हैं-एक, देश से निर्यात बढ़ना। दो, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) तथा विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) बढ़ना। तीन, प्रवासियों के द्वारा बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा स्वदेश भेजना। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021 में भारत के कुल विदेश व्यापार व निर्यात बढ़ने की चमकदार स्थिति बनी है। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-दिसंबर 2021 के नौ महीनों के दौरान भारत का निर्यात करीब 303 अरब डॉलर से अधिक रहा है।
देश के विदेशी मुद्रा भंडार को एफडीआई के प्रवाह ने भी तेजी से बढ़ाया है। पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में देश में एफडीआई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2020-21 में एफडीआई 19 प्रतिशत बढ़कर 59.64 अरब डॉलर हो गया। इस दौरान इक्विटी, पुनर्निवेश आय और पूंजी सहित कुल एफडीआई 10 प्रतिशत बढ़कर 81.72 अरब डॉलर हो गया। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन में ई-कॉमर्स, डिजिटल मार्केटिंग, डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन एजुकेशन तथा वर्क फ्राम होम की प्रवृत्ति, बढ़ते हुए इंटरनेट के उपयोगकर्ता, देशभर में डिजिटल इंडिया के तहत सरकारी सेवाओं के डिजिटल होने से अमेरिकी टेक कंपनियों सहित दुनिया की कई कंपनियां भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि तथा रिटेल सेक्टर के ई-कॉमर्स बाजार की चमकीली संभावनाओं को मुठ्ठियों में करने के लिए भारत में बड़े पैमाने पर एफडीआई के साथ आगे बढ़ी है। उल्लेखनीय है कि विदेशी संस्थागत निवेशक अपना निवेश विदेशी मुद्रा व्यापार रणनीति क्या है करने के पहले उस देश के शेयर बाजार के परिदृश्य को अच्छी तरह मूल्यांकित करते हैं। ऐसे में इस समय दुनिया के निवेशक भारत के शेयर बाजार की तेजी से बढ़ती हुई ऊंचाई को पूरी तरह महत्व देते हुए दिखाई दे रहे हैं। पिछले वर्ष 23 मार्च 2020 को जो बाम्बे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) सेंसेक्स 25981 अंकों के साथ ढलान पर दिखाई दिया था, वह 14 जनवरी को 61223 की ऊंचाई पर बंद हुआ है। यद्यपि पिछले वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट रही है, इसके बावजूद विदेशी संस्थागत निवेशकों के द्वारा भारत को प्राथमिकता दिए जाने के कई कारण हैं। भारत में निवेश पर बेहतर रिटर्न है। भारतीय बाजार बढ़ती डिमांड वाला बाजार है। भारत के एक ही बाजार में कई तरह के बाजारों की लाभप्रद निवेश विशेषताएं हैं। 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' नीति के तहत देश में कारोबार को गति देने के लिए कई सुधार किए गए हैं। निवेश और विनिवेश के नियमों में परिवर्तन भी किए गए हैं।