रणनीति विदेशी मुद्रा

उल्लेखनीय है कि बसु का यह बयान ऐसे समय आया है जबकि दो दिन पहले रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने बाजार की चिंताओं को दूर करने का प्रयास करते हुए कहा था कि किसी दबाव से निपटने के लिए हमारे पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है।
चुनौतियों के बीच आर्थिक रणनीति
हम रणनीति विदेशी मुद्रा उम्मीद करें कि डीबीटी के लिए अधिक मजबूती, व्यापार घाटे में कमी के उपायों, औद्योगिक और खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि तथा स्वामित्व योजना के तेज विस्तार से कृषि व ग्रामीण अर्थव्यवस्था के साथ देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। साथ ही इन विभिन्न उपायों पर ध्यान दिए जाने से देश वैश्विक आर्थिक-वित्तीय चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर सकेगा तथा देश के करोड़ों लोगों को और अधिक राहत दी जा सकेगी। स्वामित्व योजना के विस्तार से किसानों की अधिक आमदनी का नया अध्याय लिखा जा सकेगा…
हाल ही में 13 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबों और किसानों के सशक्तिकरण के मद्देनजर भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा वर्ष 2014 से लागू की गई प्रत्यक्ष नगद हस्तांतरण (डीबीटी) योजना एक चमत्कार की तरह है। इससे सरकारी योजना का फायदा सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में पहुंच रहा है। साथ ही भारत में करोड़ों लोगों के लिए कोरोना काल से अब तक डिजिटलीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सरलतापूर्वक निशुल्क खाद्यान्न की बेमिसाल आपूर्ति की जा रही है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोरोना काल की चुनौतियों के बाद इस समय जब पूरी दुनिया में रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन-ताइवान तनाव और आपूर्ति श्रृंखला में अवरोधों की वजह से आर्थिक-वित्तीय चुनौतियों और बढ़ती महंगाई से हाहाकार मचा हुआ है, तब भारत में डीबीटी से करोड़ों लाभार्थियों के खातों में सीधे सब्सिडी की पहुंच और चुनौतियों से निपटने के लिए अपनाई गई विवेकपूर्ण आर्थिक रणनीति से आम आदमी के लिए राहतकारी परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। रणनीति विदेशी मुद्रा निश्चित रूप से डीबीटी योजना गरीबों और किसानों के सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभा रही है और उनके लिए राहतकारी है। केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक 31 मई 2022 तक किसान सम्मान निधि योजना के तहत 11 करोड़ से रणनीति विदेशी मुद्रा अधिक किसानों के खातों में डीबीटी से सीधे करीब दो लाख करोड़ रुपए हस्तांतरित किए जा चुके हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार आर्थिक संकट से निपटने में नाकाफी: अर्थशास्त्री बसु
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विदेशी मुद्रा भंडार घटा, भुगतान संतुलन का संकट तो नहीं?
दुनिया भर के देशों के सामने आ रहे आर्थिक संकट के बीच अब भारत की आर्थिक स्थिति को लेकर आख़िर चिंताएँ क्यों उठने लगी हैं? क्या विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ रहा है इसलिए?
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विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। डॉलर के मुक़ाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। भुगतान संतुलन में भी कुछ गड़बड़ी दिख रही है। तो क्या ये किसी आर्थिक संकट की ओर इशारा करते हैं?
भुगतान संतुलन को किसी देश की आर्थिक स्थिति को पता लगाने की अहम नब्ज माना जा सकता है। अब यदि इस आधार पर देखें तो भारत की आर्थिक स्थिति रणनीति विदेशी मुद्रा कितनी ख़राब या कितनी बढ़िया दिखती है? इस हालात को समझने से पहले यह समझ लें कि भुगतान संतुलन क्या है। तकनीकी भाषा में कहें तो किसी देश के भुगतान संतुलन उसके शेष विश्व के साथ एक समय की अवधि में किये जाने वाले मौद्रिक लेन-देन का विवरण है। लेकिन मोटा-मोटी समझें तो भुगतान संतुलन का मतलब है कि किसी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में अपने आयात के बिल को चुकाने की क्षमता कितनी है।
विदेशी मुद्रा पदामिहित उन प्राप्तव्यों से प्राप्तियों रणनीति विदेशी मुद्रा में विलंब करने की प्रथा जिसकी मुद्राओं का मोल रणनीति विदेशी मुद्रा बढ़ने की प्रत्याशा हो और विदेशी मुद्रा के रूप में नामित विदेशी मुद्राएं जिनका मोल घटने की आशंका हो, में विलंब करने को क्या कहा जाता है ?
Key Points
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लीड और लैगआमतौर पर मुद्रा विनिमय दरों में अपेक्षित परिवर्तन का लाभ उठाने के लिए विदेशी मुद्रा में जानबूझकर तेजी या भुगतान में देरी का उल्लेख करते हैं।
- भुगतान की जा रही मुद्रा के सुदृढ़ीकरण से विचाराधीन इकाई के लिए एक छोटा भुगतान होगा, जबकिमुद्रा के कमजोर होने से भुगतान में देरी होने पर लागत में वृद्धि होगी।
- एक निगम या सरकार उचित सीमा के भीतर प्राप्त या किए गए भुगतानों की अनुसूची को नियंत्रित कर सकती है।
- जब किसी विदेशी संस्था को भुगतान शामिल होता है, तो संगठन निर्धारित समय से रणनीति विदेशी मुद्रा पहले या बाद में भुगतान करने का विकल्प चुन सकता है।
- ये परिवर्तन मुद्रा विनिमय दरों में परिवर्तन से लाभ प्राप्त करने की प्रत्याशा में किए जाएंगे।
श्रीलंका को उसके मित्र चीन से नहीं मिला कोई सहारा, भारत कर रहा मदद
श्रीलंका में आज जो भी हालात है उसके पीछे चीन का महत्वपूर्ण हाथ रहा है। यहाँ जरूरी चीजों को खरीदने के लिए लोग लंबी कतारों में नजर आ रहे हैं। जरूरी चीजों की कीमतें इतनी महंगी है कि लोगों के लिए जीना मुश्किल हो गया है। खाने की चीजें हो या ईंधन और ट्रैवल कॉस्ट सभी आसमान छू रहे हैं। इसके पीछे का कारण खराब इकोनॉमिक गर्वनेंस भी है। इससे पहले हम अपनी रिपोर्ट में बता चुके हैं श्रीलंका की हालत के पीछे विदेशी मुद्रा भंडार का कम होना सबसे बड़ा रहा है। तीन साल पहले जहां श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 7.5 अरब डॉलर था जो घटकर कर पिछले साल नवंबर में 1.58 अरब डॉलर हो गया। विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण श्रीलंका चीन, जापान, भारत और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कर्ज भी नहीं चुका पा रहा है। रणनीति विदेशी मुद्रा आज इस हालात के लिए चीन की रणनीति भी जिम्मेदार है।