एक नौसिखिया को कितने शेयर खरीदने चाहिए

यह कहा जा रहा है कि भारत के इस कदम से नवाज शरीफ अपने मुल्क में कमजोर हुए हैं। वहां इमरान खान और मौलाना कादिरी जन-विद्रोह की अगुवाई कर रहे हैं। लेकिन हम यह न भूलें कि पाकिस्तानी हुकूमत कभी मुल्क की सामरिक नीतियां तैयार नहीं करती, बल्कि इसे पाकिस्तानी फौज बनाती है। बीते साढ़े छह दशकों में अधिकांश समय सेना के अधिकारी ही सत्ता में रहे और उन्होंने अपने मुताबिक सामरिक नीतियां बनाईं और जब-जब वहां लोकतांत्रिक सरकारें आईं, तब भी भारत, अफगानिस्तान, अमेरिका आदि देशों की नीतियां उनके मुताबिक ही बनीं। अगर पाकिस्तान एक नौसिखिया को कितने शेयर खरीदने चाहिए की सिविल सोसायटी वहां हुकूमत से लोहा लेने को आमादा है, तो यह भी ध्यान देने वाली बात है कि हर देश को यह गुत्थी अपने आप सुलझानी होती है। वह एक नौसिखिया को कितने शेयर खरीदने चाहिए देश तो कम से कम नहीं ही सुलझाता है, जिसे दुश्मन माना जाता हो।
भारत ने लाल रेखा खींच दी है
विदेश नीति और राजनय प्रणाली में अधिकतर निरंतरता होती है। लेकिन इसमें भी हर प्रधानमंत्री एक नौसिखिया को कितने शेयर खरीदने चाहिए अपनी एक छाप छोड़ता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू का एक तरीका था, इंदिरा गांधी के पास अलग दृष्टिकोण था। अटलजी ने एक रुख अपनाया, तो मनमोहन सिंह का अपना तरीका था और अब देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना असर दिखा रहे हैं।
पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की वार्ता रद्द करने से प्रधानमंत्री नरेंद्र एक नौसिखिया को कितने शेयर खरीदने चाहिए मोदी की पाकिस्तान-नीति साफ होने लगी है। इससे पहले तक इसका बस अंदाज ही लगाया जा रहा था। अपने दो महीने से अधिक के कार्यकाल में उन्होंने साफ कर दिया है कि वह काफी सोच-समझकर कदम उठाते हैं। सबसे पहले उन्होंने सार्क देशों को एक नौसिखिया को कितने शेयर खरीदने चाहिए तवज्जो दी। इसकी पीछे उनकी मंशा थी कि जो हमारी आर्थिक उपलब्धियां हैं, उन्हें अन्य सार्क देशों के साथ साझा करें। इसलिए शपथ-ग्रहण समारोह के लिए उन्होंने तमाम सार्क नेताओं को दावत दी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी इस मौके पर भारत आए। लोगों को यह महसूस हुआ कि 27 मई की मोदी-शरीफ बातचीत रचनात्मक थी और इसी बुनियाद पर यह तय हुआ कि दोनों देशों के विदेश सचिव आपस में मिलेंगे। हालांकि, इस मामले में दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के बयान में अंतर था। पाकिस्तान की तरफ से आए बयान में उनके दृष्टिकोण की झलक सामने आई, मगर हमारे विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि मुलाकात में आपसी संबंधों को सुधारने के रास्ते ढूंढ़े जाएंगे और किन विषयों पर बातचीत हो सकती है, इस पर चर्चा की जाएगी। इस तरह की वार्ता को कूटनीति की भाषा एक नौसिखिया को कितने शेयर खरीदने चाहिए में ‘टॉक्स एबाउट टॉक’ यानी ‘वार्ता को लेकर बातचीत’ कहते हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान का बयान अधिक महत्वाकांक्षी था। उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि विदेश सचिव स्तरीय वार्ता में सभी विषयों पर बातचीत होगी।