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लाभ पद्धति

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Gayatri Pariwar

इस युग को शिक्षा और सभ्यता का युग कहा जाता है। चारों ओर शिक्षा और सभ्यता की धूम है। शिक्षित लाभ पद्धति और सभ्य बनने तथा बनाने के लिए नाना विधि, आयोजन हो रहे हैं। बालक जैसे ही 5-6 वर्ष के होते हैं वैसे ही उन्हें शिक्षित बनाने के लिए स्कूल में भेज दिया जाता है। बालक पढ़ना आरम्भ करता है और पन्द्रह बीस वर्ष (अपने जीवन का लगभग एक तिहाई भाग) स्कूल कालेजों में व्यतीत करता हुआ शिक्षित बनकर निकलता है। उसके पास एम. ए., बी. ए. आदि की डिग्रियाँ होती हैं, जिन माता-पिता ने उन्हें पेट काट कर शिक्षा का अत्यन्त भारी खर्चा उठाया वे आशा करते हैं कि इतनी बड़ी साधना के बाद हमारा लड़का बहुत ही सुयोग्य बनकर निकलेगा। उसकी शिखा अपने शुभ परिणामों से आनन्दमय, वातावरण की सृष्टि करेगी।

परन्तु शिक्षा समाप्त करके निकले हुए छात्र की वास्तविक दशा देखकर अभिभावकों की आँखों तले अंधेरा छा जाता है। लड़के का स्वास्थ्य चौपट नजर आता है। हड्डियों का ढांचा एक पीले चमड़े के खोल में लिपटा होता है। ऐनक नाक पर रखे बिना उनकी आँखें काम नहीं करतीं। पिचका लाभ पद्धति हुआ चेहरा, रोती सी सूरत, बैठी हुई आंखें, यह बताती हैं कि शिक्षा के अनावश्यक भार ने इनके स्वास्थ्य को चबा डाला। रहा बचा जीवन, रस कुसंग की शर्मनाक भूखों में बह गया। शारीरिक दृष्टि से वे इतने अशक्त होते हैं कि भारी परिश्रम के काम उनकी क्षमता से बाहर हो जाते हैं।

सभ्यता लाभ पद्धति के नाम पर फैशन और उच्छृंखलता दो ही बातें वे सीख पाते हैं। बालों के सजाव शृंगार में वेश्याएं उनकी होड़ नहीं करतीं। अनावश्यक, असुविधाजनक, बेढ़ंगों, खर्चीली, यूरोपीय फैशन की, नये-नये तर्ज का पोशाक पहनने में वे बहुत आगे बढ़े-चढ़े रहते हैं। बड़ों के प्रति आदर भाव का दर्शन नहीं होता। यही इनकी सभ्यता है जीवन यापन के लिये क्लर्की करने के अतिरिक्त और कोई चारा इनके पास नहीं होता। जीवन भर पराई ताबेदारी करके पेट पालने के अतिरिक्त और साधन उनके पास नहीं होता। स्वर्गीय कविवर अकबर की उक्ति उनके विषय में पूरी तरह चरितार्थ होती हैं

“गुजर उनका हुआ कब,

कब आलमें अल्लाह अकबर में।

कालिज के चक्कर में,

मरे साहब के दफ्तर में॥”

जीविकोपार्जन की दिशा में वे सर्वथा लुँज पुँज, दूसरों की दया पर निर्भर होते हैं। जब किसी नौकरी के लिए कोई छोटा-मोटा स्थान खाली होने की सरकारी विज्ञप्ति अखबारों में निकलती है तो एक-2 जगह के लिए हजारों दरख्वास्तें पहुँचती हैं।

जिन्हें सरकारी नौकरी मिल जाती है वे समझते हैं कि इन्द्र का इन्द्रासन मिल गया। यदि वहाँ बुरी से बुरी परिस्थिति में रहना पड़े, दिन-रात अपमानित होना पड़े एवं आत्म हनन करके अनुचित काम भी करना पड़े तो भी इसे छोड़ने का साहस नहीं कर पाते, क्योंकि वे जानते हैं कि जितने पैसे यहाँ मिलते हैं अपनी हीन योग्यता और हीन अनुभव के आधार पर उतना भी कमाना उनके लिये कठिन है।

लार्ड मेकाले की निश्चित योजना के अनुसार वर्तमान अँग्रेजी शिक्षा पद्धति केवल अंग्रेजों लिए ही उपयोगी है। विदेशी शासन यंत्र ढोने के लिए खस्सी बैल उन्हें सुविधापूर्वक मिलते रहने के लिए यह फैक्टरी उनके बहुत काम की है। परन्तु भारतीय दृष्टिकोण से विचार करने पर वर्तमान शिक्षा पद्धति व्यर्थ ही नहीं हानिकर भी है। इनमें छात्र की व्यक्तिगत योग्यताएं विकसित होने के लिये गुंजाइश नहीं है। अनुपयोगी, अनावश्यक जीवन में कुछ काम न आने वाली बातें रटते-रटते लड़कों का दिमाग चट जाता है, स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है, जीवन का सबसे कीमती भाग नष्ट हो जाता है। बदले में एक सनद का कागज मिलता है जिसे दिखाकर किसी किसी को कहीं, “मोस्ट ओविडियन्ट सर्वेन्ट” कहाने का सौभाग्य प्रदान करने वाली नौकरी मिल जाती है। जिन्हें वह भी नहीं मिलती वे फटे हाल बाबू इधर से उधर जूतियाँ चटकाते फिरते हैं और उस सनद की निरर्थकता पर भारी पश्चात्ताप प्रकट करते हैं।

हाथ से काम करना अपमान जनक अनुभव होता है बाबूजी के लिए अपना सूट केस लेकर आधे मील चलना अपमानजनक है। घर के काम काज करते हुये, परिश्रम पड़ने वाले कामों में हाथ डालते हुये उन्हें ऐसी लज्जा लगती है मानो कोई भयंकर पाप कर रहे हों। ऐसी दशा में कोई स्वतन्त्र कारोबार उनके द्वारा होना भला किस प्रकार सम्भव है। बिना पढ़े ताँगे वाले, खोमचे वाले, कुली, गाड़ी वाले, मजूर आदि उससे कहीं अधिक कमा लेते हैं जितना कि बाबू लोगों को तनख्वाह मिलती है। स्वस्थता एवं दीर्घ जीवन का उपयोग भी इन शिक्षितों की अपेक्षा वे अशिक्षित अधिक करते हैं।

लड़कियाँ भी इस शिक्षा प्रणाली के दोषों से अधिक बच नहीं पाती। पढ़ लिखकर जहाँ उन्हें गृहलक्ष्मी बनना चाहिये वहाँ वे फैशन परस्त तितलियाँ बन जाती हैं। हाथ से काम करने में वे अपनी हेठी समझती हैं। उच्छृंखलता, तुनकमिज़ाजी, अवज्ञा एवं विलासिता के कुसंस्कार उन्हें भी सफल गृहस्थ जीवन के सुसंचालन में अयोग्य बना देते हैं। यूरोप में भी दुखदायी वातावरण वहाँ के गृहस्थ जीवनों को नरक बनाये हुए हैं उसकी छाया किन्हीं अंशों में इस शिक्षा पद्धति द्वारा भारतीय गृहस्थों में भी जा पहुँचती है।

माता-पिता अपने बालकों को इसलिये पढ़ाते हैं कि पढ़ लिखकर अधिक सुयोग्य बनें। परन्तु जिस शिक्षा के द्वारा सुयोग्यताओं का लोप होकर अयोग्यताऐं उपलब्ध होती हैं। उसके लिए अभिभावकों का पैसा और बालकों का समय बर्बाद होने से क्या लाभ? अब तक ‘कोई अच्छी सरकारी नौकरी” मिलने की एक आशा प्रधान रूप से रहती थी पर अब तो उसका भी मार्ग बन्द हो चला है। क्योंकि एक तो अंग्रेजी शिक्षा का प्रचलन इतना अधिक हो गया है कि उनमें से एक प्रतिशत को भी सरकारी नौकरियाँ नहीं मिल सकती, दूसरे सेना से लौटे हुए व्यक्तियों को उन नौकरियों में प्रथम स्थान मिलेगा। इसके अतिरिक्त भारत, स्वशासन प्राप्त करने की दिशा में बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। जैसे-जैसे इस दिशा में प्रगति होगी वैसे ही वैसे विदेशी भाषा जानने वालों को जो महत्व अब प्राप्त है वह घटेगा। इन सब कारणों से सरकारी नौकरी के लिए पढ़ने वालों का मार्ग क्रमशः अधिक कंटकाकीर्ण होता जायगा।

इन सब बातों पर विचार करते हुए अभिभावकों को यह विचारना होगा कि अपने बालकों को क्या पढ़ायें? अब ऐसी शिक्षा पद्धति अपनाने की आवश्यकता है जिसके द्वारा बालक अपनी शारीरिक, मानसिक, साँस्कृतिक, आर्थिक और आत्मिक उन्नति कर सके। समर्थ स्वावलम्बी और व्यवहार कुशल और पुरुषार्थी बन सके। ऐसी शिक्षा ही सच्ची शिक्षा कहला सकने की अधिकारिणी है।

एक अनुभवी शिक्षा शास्त्री का मत है कि—”शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ही यह है कि वह मनुष्य की बुद्धि तथा हृदय की गुप्त शक्तियाँ पूर्ण विकास करें और उसे सर्वांग सुन्दर नागरिक बनावें।” जो मानव जीवन को सब दृष्टियों से विकसित करे, ऊँचे उठावे और आगे बढ़ावे उसी को सच्चे अर्थों में शिक्षा कहा जा सकता है, वर्तमान अंग्रेजी शिक्षा पद्धति इस दृष्टि से निकम्मी साबित हुई है। अपने प्राणप्रिय बालकों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए हमें उनके लिए समुचित शिक्षा की ही व्यवस्था करनी चाहिये।

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भारत सरकार ने गरीबों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए जून , 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली शुरू की थी। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधीन राज्यों के लिए यह अपेक्षित है कि वे गरीबों की पहचान करने , उचित दर दुकानों पर खाद्यान्नों की सुपुर्दगी देने और उचित दर दुकान स्तर पर इनका पारदर्शी और जवाबदेह तरीके से वितरण करने की पुख्ता व्यवस्था बनाएं और क्रियान्वित करें।

जिस समय यह स्कीम लागू की गई थी उस समय इसका उद्देश्य लगभग 6 करोड़ गरीब परिवारों को लाभान्वित करना था , जिनके लिए वार्षिक रूप से खाद्यान्नों की लगभग 72 लाख टन मात्रा निर्दिष्ट की गई थी। इस योजना के अंतर्गत गरीबों की पहचान स्‍वर्गीय प्रो . लाकड़ावाला की अध्यक्षता में " गरीबों का अनुपात और संख्या के अनुमान संबंधी विशेषज्ञ समूह " की विधि पर आधारित वर्ष 1993-94 के लिए योजना आयोग के राज्यवार निर्धनता अनुमानों के अनुसार राज्यों द्वारा की गई थी। राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को खाद्यान्नों का आवंटन विगत की औसत खपत अर्थात् लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली आरंभ करते समय पिछले दस वर्षों के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधीन खाद्यान्नों के औसत वार्षिक उठान के आधार पर किया गया था।

गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की आवश्यकता से अधिक खाद्यान्नों की मात्रा राज्य को " अस्थायी आवंटन " के रूप में प्रदान की गई थी जिसके लिए वार्षिक तौर पर खाद्यान्नों की 103 लाख टन मात्रा निर्धारित की गई थी। लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के आवंटन के अतिरिक्त राज्यों को अतिरिक्त आवंटन भी दिया गया था। अस्थायी आवंटन गरीबी रेखा से ऊपर की आबादी को राजसहायता प्राप्त खाद्यान्नों के लाभ को जारी रखने के लिए था क्योंकि उनको सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाले मौजूदा लाभ को अचानक समाप्त करना वांछनीय नहीं समझा गया था। अस्थायी आवंटन ऐसे मूल्यों पर जारी किया गया था जो राजसहायता प्राप्त थे परन्तु खाद्यान्नों के गरीबी रेखा से नीचे के कोटे के मूल्यों से अधिक थे।

गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को खाद्यान्नों के आवंटन में वृद्धि करने पर एक राय होने की दृष्टि में और खाद्य सब्सिडी को बेहतर लक्षित करने के लिए , भारत सरकार ने 1.4.2000 से गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को खाद्यान्नों का आवंटन आर्थिक लागत के 50% पर 10 किलोग्राम से बढ़ाकर 20 किलोग्राम प्रति परिवार प्रति माह कर दिया और गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों को आर्थिक लागत पर आवंटन किया गया। गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों के लिए आवंटन को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के शुरू होने के समय में किए गए आवंटन के स्तर पर बनाए रखा गया था लेकिन उनके लिए केन्द्रीय निर्गम मूल्य को उक्त तारीख से आर्थिक लागत के 100% पर निर्धारित कर दिया गया ताकि समस्त उपभोक्ता राजसहायता गरीबी रेखा से नीचे की आबादी के लाभ के लिए दी जा सके। तथापि , बीपीएल और अंत्‍योदय अन्‍न योजना के लिए क्रमश: जुलाई और दिसंबर 2000 में निर्धारित और एपीएल के लिए जुलाई 2002 में निर्धारित केन्‍द्रीय निगम मूल्‍यों को खरीद की लागत में वृद्धि के बावजूद बढ़ाया नहीं गया है।

गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की संख्‍या में दिनांक 01.12.2000 से वृद्धि की गई जिसमें वर्ष 1995 के पूर्ववर्ती जनसंख्‍या अनुमानों के स्‍थान पर दिनांक 01.03.2000 की स्थिति की स्थिति के अनुसार महा-पंजीयक के आबादी संबंधी अनुमानों को आधार बनाया गया। इस वृद्धि से बीपीएल परिवारों की कुल स्‍वीकृत संख्‍या 652.03 लाख , जब जून , 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू की गई थी , परिवारों की मूल रुप से अनुमानित संख्‍या 596.23 लाख थी।

मौजूदा लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत अंतिम खुदरा मूल्य थोक/खुदरा विक्रेताओं के मार्जिन , ढुलाई प्रभार , लेवी , स्थानीय कर आदि को हिसाब में लेने के बाद राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा निर्धारित किया जाता है। राज्यों से पहले ही अनुरोध किया गया था कि वे इस प्रणाली में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए केन्द्रीय निर्गम मूल्यों के ऊपर से 50 पैसे से अधिक अंतर पर खाद्यान्न जारी न करें। तथापि वर्ष 2001 से अंत्योदय अन्न योजना , जिसमें अंतिम खुदरा मूल्य को गेहूं के लिए 2 रूपये प्रति किलोग्राम और चावल के लिए 3 रूपये प्रति किलोग्राम रखा जाना है , को छोड़कर लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधीन खाद्यान्नों का वितरण करने के लिए केन्द्रीय निर्गम मूल्यों के ऊपर 50 पैसे तक मार्जिन के प्रतिबंध को हटाकर खुदरा निर्गम मूल्य निर्धारित करने के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को लचीला रुख अपनाने का अधिकार दिया गया है।

आयुर्वेदिक उपचार पद्धति का सभी को लाभ लेना चाहिए : शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर Ayurvedic Treatment

Ayurvedic Treatment: स्वास्थ्य विभाग यमुनानगर व सुदर्शन फाऊंडेशन की और से सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र छछरौली में निशुल्क आयुर्वेदिक मैडिकल जांच शिवर व जागरूकता कैम्प का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर व विशिष्ट अतिथि के तौर पर विधायक घनश्याम दास अरोडा, भाजपा के जिला अध्यक्ष राजेश सपरा साथ रहे ,कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रजवलित करके की गई,सिविल सर्जन यमुनानगर डॉ. मंजीत सिंह द्वारा मुख्य अतिथि तथा जनसमूह का स्वागत किया।

आयुर्वेद हमारे जीवन जीने की शैली की पद्धति (Ayurvedic Treatment)

मुख्य अतिथि शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर ने आयुर्वेदिक कैम्प में सम्बोधन करते हुए कहा कि लोगों को अपने खान पान की आदतो में बदलाव करना चाहिए, हमारे प्राचीन ग्रांथो में हर बीमारी का आयुर्वेद उपचार बताया गया है परन्तु हम इन चीजो को भुल गए है परन्तु कोरोना काल में यही आर्युवेद ने हमारी रक्षा की है,आर्युवेद के अनुसार बनाए गए काढ़े के सेवन ने कोरोना वायरस को काफी हद तक रोका और आयुर्वेदिक चिकित्सा के महत्व के बारे में बताया।

आर्युवेदिक मैडीकल कैम्प में 347 मरीजों ने लाभ लिया (Education Minister Kanwarpal Gurjar)

सुदर्शन फाऊंडेशन संस्था के संचालक संदीप बजाज व एएसएमओ डॉ. वर्गीश गुटैन ने जानकारी देते हुये बताया कि इस आयुर्वेदिक कैम्प में 347 मरीजो ने इसका लाभ लिया। सभी मरीजो की डाक्टरो द्वारा गहनता से जांच की गई और उन्हे संस्था की और से दवाईयां भी मुफ्त में दी गई और इस कैम्प में स्वास्थ्य विभाग यमुनानगर द्वारा अनिमिया मुक्त अभियान हरियाणा के लिए 170 मरीजो की निशुल्क खून की जांच की गई। शिविर में 59 लोगो का कोविड वैक्सीन टीकाकरण किया गया और आयुषमान कार्ड की जानकारी दी गई। कार्यक्रम में संस्था के साथ जुडे सदस्यो को व कोरोना काल में बेहतरीन सेवाएं देने के लिए डाक्टरो ,नर्सिंग स्टाफ को शिक्षा मंत्री कंवरपाल ने स्मृति चिन्ह देकर समानित किया,

विधायक घनश्याम दास अरोडा ने भी आयुर्वेदिक उपचार व जडी बुटियो के महत्व के बारे में लोगो को जागरूक किया व कहा कि महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए और अपने खून की नियमित जांच करानी चाहिए, एनीमिया की कमी को दूर करने के लिए स्वास्थ्य विभाग यमुनानगर व सुदर्शन फाऊंडेशन द्दारा किए जा रहे कार्य की प्रशंसा करते हैं और इस प्रकार के आयोजन लगातार होते रहने चाहिए।

इस दौरान भाजपा जिला अध्यक्ष सहित ये सभी रहे मौजूद (Ayurvedic Treatment)

इस दौरान भाजपा जिला अध्यक्ष राजेश सपरा,सीएमओ डाक्टर मनजीत सिंह,भाजपा मीडिया प्रभारी कपिल मनीष गर्ग,मंडल अध्यक्ष कल्याण सिंह,मंडल महामंत्री जगदीश धीमान, जिला उपाध्यक्ष रामपाल नंबरदार रमेश चन्द्र,डायरेक्टर रामजतन डमौली,पूर्व मंडल अध्यक्ष रमेश चाहडो,भाजपा नेता गुलशन अरोडा,युवा मोर्चा मंडल अध्यक्ष कुलबीर दादुपुर, मांगा राम प्रीतम ,कुलदीप ,कालाराम,सुदर्शन फाउडैशन की तरफ से संदीप बजाज, सरोज बजाज ,पैटर्न सदस्य डा नरेन्द्र साही, कुनाल बजाज, सुन्दर नारंग, विजय बब्बर, डा विभा गुप्ता, संजीव ओबराय, तुषार कोहली, संयम जैन, हर्षित बजाज, युवा भाजपा नेता गुरमेहर सिंह व मनजीत सिंह साथ रहे।

What is Stem Cell | Advantages of stem cell | Stem cell Therapy | स्टैम कोशिका क्या होती है?

Stem cell therapy is the use of Stem लाभ पद्धति Cells in the treatment of any genetic disease, disease or any damaged part of the body. Stem cells have the ability to heal themselves and transform into any other cell.

  • Stem cells are mainly classified as embryonic stem cells and adult stem cells. All cells in the embryo are totipotent (capable of developing a complete organ). While adult stem cells are also called somatic cells. These are mainly found in the bone marrow. This method involves the following treatment processes – harvesting, separation, activation and treatment. This method of therapy has the following advantages.

Stem cell therapy has the following advantages over other therapies.

  1. The stem cells used in this method of treatment are the patient’s own cells, thereby avoiding medical complications such as rejection of the organ later on.
  2. With this medical method, a damaged organ can be regenerated, which can be cured by a complex and risky procedure like organ transplantation.
  3. Stem cell approach provides complete cure for difficult medical conditions while other methods have their limitations regarding complete cure.

Types of stem cells

There are three types of stem cell –

  1. Embryonic stem cells
  2. Adult stem cells
  3. Induced pluripotent stem cells

किसी आनुवंशिक बीमारी, रोग अथवा शरीर के किसी क्षतिग्रस्त भाग के उपचार में स्टैम कोशिका का प्रयोग ही स्टैम कोशिका चिकित्सा है। स्टेम कोशिकाओं में स्वयं को ठीक करने तथा किसी अन्य कोशिका के रूप में बदलने की क्षमता होती है।

  • स्टैम कोशिकाओं को मुख्यतः भ्रूण स्टैम कोशिका तथा वयस्क स्टैम कोशिका के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भ्रूण में सभी कोशिकाएँ टोटीपोटेन्ट (पूर्ण अंग विकसित करने की क्षमता) होती हैं। जबकि वयस्क स्टैम कोशिका को सोमैटिक कोशिका भी कहते हैं. ये मुख्यतः अस्थि मज्जा में पाई जाती हैं। इस पद्धति में उपचार की निम्न प्रक्रियाएँ शामिल हैं – हार्वेस्टिंग, पृथक्करण, सक्रियण तथा उपचार। इस चिकित्सा पद्धति के निम्नलिखित लाभ हैं।

अन्य चिकित्सा पद्धतियों की तुलना में स्टैम कोशिका चिकित्सा के निम्नलिखित लाभ हैं।

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