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दूसरा स्वर्ण खंड

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अस्सी घाट: प्राचीन इतिहास के अनुसार यह मान्यता है कि देवी दुर्गा (शिव की अद्र्धांगिनी) ने शुभ-निशुंभ राक्षसों का संहार करने के बाद अपनी तलवार (जिसे असि भी कहा जाता है) को इस नदी में फेंक दिया था। अस्सी घाट का काशी खंड में ’’अस्सी समबेद तीर्थ’’ के रूप में वर्णन किया गया है, जिसका अर्थ होता है कि जो जीवन में एक बार इस स्थान पर डुबकी लगाता है, उसे समस्त तीर्थाें का पुण्य फल मिलता है। सामान्यतः तीर्थयात्री चैत्रमास (मार्च/अप्रैल महीना) तथा माघमास (जनवरी/फरवरी माह) के साथ ही साथ अन्य महत्वपूर्ण अवसरों जैसे-सूर्य/चन्द्र ग्रहण, प्रबोधिनी एकादशी, मकर संक्रान्ति एवं कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान हेतु इस स्थान पर एकत्रित होते हैं। इस घाट पर पीपल वृक्ष के नीचे एक बड़ा शिवलिंग स्थित है, जहाॅं पर तीर्थयात्री गंगा जी के जल में स्नान के उपरान्त जल चढ़ाते है। अस्सी घाट के पास संगमरमर के छोटे मंदिर में दूसरा शिवलिंग - असि संगमेश्वर लिंग स्थित है। पुराने हिन्दूग्रंथ, जैसे-मत्स्य पुराण, कूर्म पुराण, पद्म पुराण, अग्नि पुराण एवं काशी खंड में भी इस घाट का वर्णन मिलता है।

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पर्यटन एवं प्रचीन धरोहर

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर: श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी के अधिपति देवता भगवान शिव को समर्पित प्रमुख धार्मिक आकर्षण है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों, ज्वालामय प्रकाश स्तंभ, जो पृथ्वी की सतह के नीचे से प्रकाश पंुज के दूसरा स्वर्ण खंड रूप में निकलकर आकाश में तेजी से समाते हुए भगवान शिव की दैवीय उत्त्कृष्टता प्रकाशित किए थे, में से एक है। वत्र्तमान मंदिर का निर्माण इन्दौर की रानी अहिल्या बाई होलकर द्वारा वर्ष 1776 में कराया गया, हालाॅंकि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का अस्तित्व वत्र्तमान मंदिर के पहले भी था। महाराज रणजीत सिंह द्वारा 800 कि0ग्रा0 सोने से मन्दिर के शिखर को स्वर्ण मंडित कराया गया था, इसलिए इसे वाराणसी का स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है। विगत शताब्दियों में मंदिर का कई बार निर्माण एवं पुन-निर्माण कराया गया। मंदिर का नाम काशी से लिया गया है जो कि वाराणसी का दूसरा नाम है। इस तीर्थ का विवरण स्कन्द पुराण जैसे पुराने ग्रंथों में भी आता है। यहाॅं का भक्तिमय वातावरण प्रायः प्रत्यक्ष है। हजारों मील की यात्रा करके आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए यहाॅं उमड़ने वाली भीड़, मंत्रोच्चार एवं घंटों की लगातार ध्वनि से यहाॅं की ही पवित्रता में वृद्धि हो जाती है। अन्दरूनी इलाके में कई छोटे पूजा स्थल/मंदिर एवं भगवान शिव के 2.1 मीटर ऊंचे बैल-नंदी एवं ज्ञानवापी कूप स्थित है। यहाॅं आयोजित की जाने वाली आरती वाराणसी भ्रमण पर आने वाले लोगों के लिए बहुत ही आनन्ददायक अनुभव होता है। दर्शन का सजीव प्रसारण भी होता है।

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संकटमोचन मंदिर: संकट मोचन मंदिर हनुमान जी को समर्पित नगर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन देवता का नाम विशेष रूप से ’’संकट मोचन’’ रखा था, जिसका अर्थ होता सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला। इस मंदिर में भोग के रूप में बेसन के लड्डू अर्पित किए जाते हैं तथा मूर्ति को खूबसूरत गेंदे के फूल की माला से सजाया जाता है। इस मंदिर की यह अनोखी विशेषता है कि हनुमान जी की मूर्ति के सामने उनके आराध्य भगवान राम की मूर्ति स्थित है। यह कहा जाता है गोस्वामी तुलसीदास ने यहीं पर राम चरितमानस की रचना की थी। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो नियमित रूप से संकटमोचन मंदिर जाते हैं उनकी सभी मनोकामनाएॅं पूर्ण होतीं है। यह माना जाता है कि तुलसीदास जी ने इस मंदिर का निर्माण उस समय कराया था जब उन्हें हनुमान जी के साक्षात दर्शन हुए थे।

अस्सी घाट: प्राचीन इतिहास के अनुसार यह मान्यता है कि देवी दुर्गा (शिव की अद्र्धांगिनी) ने शुभ-निशुंभ राक्षसों का संहार करने के बाद अपनी तलवार (जिसे असि भी कहा जाता है) को इस नदी में फेंक दिया था। अस्सी घाट का काशी खंड में ’’अस्सी समबेद तीर्थ’’ के रूप में वर्णन किया गया है, जिसका अर्थ होता है कि जो जीवन में एक बार इस स्थान पर डुबकी लगाता है, उसे समस्त तीर्थाें का पुण्य फल मिलता है। सामान्यतः तीर्थयात्री चैत्रमास (मार्च/अप्रैल महीना) तथा माघमास (जनवरी/फरवरी माह) के साथ ही साथ अन्य महत्वपूर्ण अवसरों जैसे-सूर्य/चन्द्र ग्रहण, प्रबोधिनी एकादशी, मकर संक्रान्ति एवं कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान हेतु इस स्थान पर एकत्रित होते हैं। इस घाट पर पीपल वृक्ष के नीचे एक बड़ा शिवलिंग स्थित है, जहाॅं पर तीर्थयात्री गंगा जी के जल में स्नान के उपरान्त जल चढ़ाते है। अस्सी घाट के पास संगमरमर के छोटे मंदिर में दूसरा शिवलिंग - असि संगमेश्वर लिंग स्थित है। पुराने हिन्दूग्रंथ, जैसे-मत्स्य पुराण, कूर्म पुराण, पद्म पुराण, अग्नि पुराण एवं काशी खंड में भी इस घाट का वर्णन मिलता है।

दुर्गा मंदिर: दुर्गा मंदिर जिसे मंकी टेम्पल भी कहा जाता है (बहुत से बंदरों के इस मंदिर के परिसर में रहने के कारण), दुर्गाकुंड के समीप स्थित है। यह देवी दुर्गा को समर्पित है तथा इसका निर्माण अठारहवीं सदी में हुआ था। मंदिर का निर्माण एक बंगाली महारानी द्वारा उत्तर भारतीय शैली में कराया गया था, जिसमें कई पंक्तियों में शिखर बने हैं। एक आकर्षक सरोवर जिसे दुर्गाकुंड के रूप में जाना जाता है, मंदिर के दाहिनी ओर निर्मित है, जो पूर्व में गंगा जी से जुड़ा हुआ था। देवी दुर्गा की मूर्ति मानव निर्मित नहीं है, बल्कि मान्यता के अनुसार यह स्वतः प्रकट हुई थी। नवरात्रि के अवसर में भारी संख्या में हिन्दू भक्त दर्शन के लिए आतें हैं। इस मंदिर का निर्माण चैकोर आकृति में किया गया है जिसमें देवी दुर्गा के प्रतीक लाल रंग के पत्थरों का प्रयोग किया गया है। यह मंदिर शहर के दक्षिणी भाग में, तथा घाटों से दूर स्थित है। अन्दर जाने का रास्ता आसान है तथा इसके दोनों ओर माला-फूल एवं पूजा-सामग्रियों के विक्रेताओं की दुकाने हैं। मंदिर की उर्जा प्रत्यक्षतः महसूस की जा सकती है। यह मान्यता है कि दुर्गा देवी सभी आपदाओं से वाराणसी की सदैव रक्षा करती है।

कालभैरव मंदिर: यह मंदिर बाबा काल भैरव, जिन्हें काशी का कोतवाल (रक्षक) भी कहा जाता है, को समर्पित है। यह मान्यता है कि उनकी अनुमति के बिना कोई काशी में नहीं रह सकता। भैरव को ,भगवान शिव का भयंकर रूप माना जाता है, जिनके गले में मुंडों की माला रहती है तथा मोरपंख धारण करते हैं। काल भैरव का अर्थ-मृत्यु एवं दूसरा स्वर्ण खंड भाग्य दोनों होता है। कहा जाता है कि काल भी काल भैरव से डरते हैं। मंदिर के द्वार की रक्षा भैरव की सवारी श्वान द्वारा की जाती है, दूसरा स्वर्ण खंड जिससे होकर पतला रास्ता अन्दर जाता है। इसके मध्य भाग में भैरव का मुख्य मंदिर है। अन्दर मंदिर के द्वार के रास्ते से फूलों की माला पहने हुए चाॅंदी का चेहरा देखा जा सकता है, जबकि मूर्ति का शेषभाग त्रिशूल धारण किए हुए तथा श्वान पर बैठा हुआ माना जाता है जो कपड़े से ढका होता है। अधिकांश शिव भक्तों के लिए यह मंदिर कई सदियों से आस्था का केन्द्र रहा है। वाराणसी के इस महत्त्वपूर्ण मंदिर को शहर के कोतवालपुरी क्षेत्र के लोगों द्वारा, जो इनके प्रभाव क्षेत्र में रहतें हैं, अत्यधिक पूज्य/सम्मानित माना जाता है। वाराणसी आने वाले तीर्थयात्री काल भैरव मंदिर भी अवश्य आते हैं।

श्मशान घाट: मणिकर्णिका एवं हरिश्चन्द्र घाटों पर शवदाह की प्रक्रिया को काफी नज़दीक से देखकर एक आजीवन अनुभव प्राप्त किया जा सकता है। हरिश्चन्द्र घाट, जो कि श्मशान घाट है, का नामकरण प्रसिद्ध राजा हरिश्चन्द्र के नाम पर हुआ। इनके बारे में यह प्रचलित है कि आत्म-त्याग की इच्छा से इन्होनें अपना सर्वस्व दान कर दिया था। एक ऐसा राजा जिन्होंने ईमानदारी को सर्वाेच्च प्राथमिकता दी तथा श्मशान घाट पर एक डोम के रूप में कार्य करना स्वीकार किया। नगर के भाग में रहने वाले लोगों की मान्यता है कि यह घाट वाराणसी का प्राचीनतम श्मशान घाट है, मणिकर्णिका घाट से भी अधिक प्राचीन/चैक से एक सॅंकरी गली सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण श्मशान घाट मर्णिकर्णिका घाट की ओर दूसरा स्वर्ण खंड दूसरा स्वर्ण खंड जाती है। शवों के साथ सैंकडों गमशुदा लोग (मित्र-सम्बन्धी आदि) एवं शवों को ढ़ोने में मदद करने वाले पेशेवर लोग घाट तक जातें हैं। मणिकर्णिका घाट पर गाइड आपकों पवित्र सरोवर ’’चक्रकुंड’’ दिखाएगा, जहाॅं पर मान्यता के अनुसार भगवान शिव एवं देवी पार्वती ने साथ-साथ स्नान किया था। यहाॅं पर श्मशानेश्वर एवं कालेश्वर महादेव मंदिर तथा उस चिरकालिक अग्नि के दर्शन होतें हैं जो विगत 3000 वर्षाें से लगातार जल रही है। आज भी यह घाट धुएॅं से आच्छादित रहता है।

समग्र शिक्षा में बेहतरीन कार्य के लिए डाइट ऊना को मिला दूसरा पुरस्कार

ऊना: वर्ष 2021-22 में समग्र शिक्षा अभियान को बेहतर ढंग से लागू करने के लिए डाइट ऊना को प्रदेश में दूसरे स्थान पर आंकते हुए ऑर्डर ऑफ एक्सीलेंस से पुरस्कृत किया गया है। इस बारे जानकारी देते हुए उपायुक्त ऊना राघव शर्मा ने कहा कि वर्ष 2021-22 में समग्र शिक्षा हिमाचल प्रदेश ने प्रत्येक माह प्रदेश के सभी शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों के कार्यों के निष्पादन हेतु प्रमुख संकेतन (केपीआई) बनाए थे, जिनमें मासिक वित्तीय खर्चे, मासिक विजिट, संकुल, खंड, जिला स्तरीय समीक्षा बैठकें, व्हाट्सएप क्विज में छात्रों की भागीदारी, ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करवाना आदि जैसे विषय शामिल रहे।

इन सभी केपीआई के आकलन के बाद शिक्षा विभाग ने ऊना डाइट को राज्य में दूसरे स्थान पर आंका है, जबकि मंडी पहले स्थान पर रहा है। राघव शर्मा ने इस उपलब्धि के लिए डाइट ऊना की समस्त टीम को बधाई दी हैं। वहीं डाइट प्रधानाचार्य देवेंद्र चौहान ने कहा कि संस्थान गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दे रहा है और यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी। इस वर्ष ऊना दूसरे स्थान पर रहा है तथा अगले वर्ष सभी हितधारकों के सहयोग से जिला ऊना प्रदेश में पहला स्थान हासिल करने का प्रयास करेगा। चौहान ने डाइट फैकल्टी, बीईईओ, बीपीओ, सभी खंड समन्वयकों को बेहतर कार्य के लिए बधाई दी है।

काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर एक हिन्दूओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है यह मंदिर पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर विश्वनाथ व विश्वेश्वर के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ है ‘‘ब्रह्मांड का शासक’’। यह मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी में स्थित है तथा यह मंदिर पवित्र गंगा के पश्चिमी तट पर है। काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थित ज्योति लिंग भगवान शिव के 12 ज्योति लिंग में से है तथा 12 ज्योति लिंगों में से विश्वनाथ को सातवां ज्योति लिंग माना जाता है। यह ज्योतिलिंग काले दूसरा स्वर्ण खंड रंग के पत्थर से बना हुआ है। यह मंदिर वाराणसी के प्रमुख मंदिरों में से एक है। ऐसा माना जाता है सूर्य के पहली किरण इस मंदिर पर पड़ती है।

इतिहास में कई बार इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया और फिर से पुनः निर्माण किया गया था। आखिरी संरचना औरंगजेब द्वारा ध्वस्त कर दी गई थी, जो छठे मुगल सम्राट ने ज्ञानवीपी मस्जिद का निर्माण किया था। वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन 1780 में करवाया गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया था।

स्कंद पुराण में काशी खंडा (खंड) में मंदिर का उल्लेख किया गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव लिंग को चांदी के वेदी में स्थापित है तथा मुख्य मंदिर के चारों ओर सभी देवी देवताओं के छोटे छोटे मंदिर स्थापित है। मंदिर के अन्दर के छोटी सी दीवार है जिसको ज्ञान व्यापी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है बुद्धि का ज्ञान। ऐसा कहा जाता है जब मंदिर को तोड़ा जा रहा था तो मंदिर के मुख्य पुजारी ने शिव लिंग की रक्षा की थी।

मंदिर की संरचना तीन भागों में बना है। पहला भगवान विश्वनाथ या महादेव का है। दूसरा स्वर्ण गुंबद है और तीसरा के शिखर पर भगवान विश्वनाथ का एक झंडा और एक त्रिशूल है। मंदिर के तीनों गुंबद के ऊपर शुद्ध सोने की पतर है। मंदिर के दो गुंबदों को सिख महाराज रणजीत सिंह द्वारा दान की गई थी, लेकिन तीसरा गुंबद पर कोई परत नहीं थी। बाद में, यू.पी. सरकार के संस्कृति और धार्मिक मंत्रालय ने मंदिर के तीसरे गुंबद की सोने की परत चढ़ाई।

काशी विश्वनाथ कारीडोर का निर्माण

भारत के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने 8 मार्च 2019 को काशी विश्वनाथ कारीडोर का शिलान्यास किया गया था| काशी विश्वनाथ कारीडोर निर्माण का कार्य पूरा होने में लगभग 32 महिनों का समय लगा था. भारत के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने 13 दिसम्बर 2021 को लोकार्पण किया था. काशी विश्वनाथ मंदिर को सभी प्रकार की सुविधाएं से परिपूर्ण किया गया है. काशी विश्वनाथ मंदिर से गंगा तक जाने के लिए बहुत सुन्दर पथ का निर्माण किया गया है

पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु अपनी महानता के बारे में एक दूसरे से तर्क कर रहे थे। भगवान शिव ने मध्यस्थता की और एक अनन्त प्रकाश किरण का निर्माण किया जो कि तीन शब्दों से बनी थी (ऊँ नमः शिवाय)। ब्रह्मा और विष्णु दोनों इस प्रकाश का अंत नहीं खोज पाए थे, दोनों ने भगवान शिव सबसे महान मना था। भगवान शिव ने यह वास किया और इसलिए इसे ज्योतिलिंग के रूप में जाना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव ने स्वयं इस स्थान को अपने निवास के रूप में घोषित कर दिया है। देवी पार्वती की मां शर्मिंदगी महसूस करती थीं कि उनके दामाद का कोई अच्छा आवास नहीं था। पार्वती देवी को प्रसन्न करने के लिए, शिव ने निकुंभ से कहा कि उन्हें काशी में एक आवास स्थान प्रदान करें। निकुम्बा के अनुरोध पर, एक ब्राह्मण अनीकुम्भ ने भगवान के लिए एक मंदिर का निर्माण किया। प्रसन्न हुए भगवान ने अपने सभी भक्तों को आशीर्वाद दिया। लेकिन देवोदास को एक पुत्र के साथ आशीर्वाद नहीं मिला। गुस्सा दिवाडोर ने उस आवास स्थान को ध्वस्त कर दिया। निकुंभ ने शाप दिया था कि यह क्षेत्र लोगों से रहित होगा। पश्चाताप करने वाले देवों के प्रतिज्ञाओं को सुनकर, भगवान शिव ने एक बार फिर यहां निवास किया। भगवान पार्वती देवी के साथ एक बार फिर से अद्भुत भक्तों के साथ अपने भक्तों को आशीर्वाद देने लगे।

एशियाई एथलेटिक्स ग्रैंड प्रिक्स: इंद्रजीत, जॉनसन को स्वर्ण पदक

गोला फेंक के स्टार एथलीट इंद्रजीत सिंह और मध्यम दूरी के धावक जिनसन जॉनसन ने मंगलवार को एशियाई एथलेटिक्स ग्रैंड प्रिक्स सीरीज के पहले चरण में स्वर्ण पदक जीते.

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aajtak.in

  • बैंकॉक,
  • 23 जून 2015,
  • (अपडेटेड 23 जून 2015, 8:01 PM IST)

गोला फेंक के स्टार एथलीट इंद्रजीत सिंह और मध्यम दूरी के धावक जिनसन जॉनसन ने मंगलवार को एशियाई एथलेटिक्स ग्रैंड प्रिक्स सीरीज के पहले चरण में स्वर्ण पदक जीते.

भारत के नाम कुल आठ पदक
भारत ने प्रतियोगिता के तीन चरणों में से पहले चरण में दो स्वर्ण, एक रजत और पांच कांस्य सहित कुल आठ पदक अपने नाम किये. इंद्रजीत ने 19.83 मीटर गोला फेंककर आसानी से स्वर्ण पदक जीता . वह हालांकि 20 मीटर की दूरी तक नहीं पहुंच पाए, लेकिन उनका प्रयास भारत को स्वर्ण पदक दिलाने के लिये काफी था. इंद्रजीत का यह इस महीने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में दूसरा स्वर्ण पदक है. उन्होंने तीन जून को चीन के वुहान में एशियाई चैंपियनशिप में भी सोने का तमगा हासिल किया था.

जॉनसन भारत की तरफ से स्वर्ण पदक जीतने वाले दूसरे एथलीट रहे. उन्होंने पुरूषों की 800 मीटर के फाइनल में एक मिनट 48 . 52 सेकेंड का समय लेकर पहला स्थान हासिल किया. महिलाओं की 800 मीटर दौड़ में एम गोमती ने दो मिनट 07.48 सेकेंड का समय निकालकर कांस्य पदक हासिल किया. अंकित शर्मा ने पुरूषों दूसरा स्वर्ण खंड की लंबी कूद में 7.78 मीटर की दूरी नापकर रजत पदक हासिल किया. राजीव अरोक्या और एम आर पूवम्मा ने क्रमश: पुरूषों और महिलाओं की 400 मीटर दूसरा स्वर्ण खंड दौड़ में कांस्य पदक जीते. राजीव ने 46.86 सेकेंड जबकि पूवम्मा ने 53.51 सेकेंड का समय लिया.

सर्बाणी नंदा ने महिलाओं के 100 मीटर में 11.58 सेकेंड और गायत्री गोविंदराज ने 100 मीटर बाधा दौड़ में 13.72 सेकेंड के साथ कांस्य पदक हासिल किये. अन्य स्पर्धाओं में एन वी शीना महिलाओं की त्रिकूद में 12.22 मीटर के प्रयास के साथ सातवें स्थान पर रही जबकि 2014 आईएएएफ विश्व जूनियर चैंपियनशिप में चक्का फेंक में कांस्य पदक विजेता नवजीत कौर दूसरा स्वर्ण खंड ढिल्लौं ने 52.04 मीटर चक्का फेंककर तीसरा स्थान हासिल किया.

पुरूषों के भाला फेंक में दविंदर सिंह 69.58 मीटर के साथ छठे स्थान पर रहे. एक अन्य भारतीय रजिंदर सिंह तीसरे थ्रो के दौरान खुद को चोटिल कर बैठे. महिला और पुरुष दोनों वर्ग में चार गुणा 100 मीटर रिले टीमें रेस पूरी नहीं कर पाईं.

स्वर्ण पदक जीतने पर मिलेंगे 1500 डॉलर
ग्रां प्री सीरीज का दूसरा और तीसरा चरण 25 जून और 29 जून को क्रमश: पाथुमतानी और चंताबुरी (दोनों थाईलैंड) में होगा. व्यक्तिगत वर्ग में स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ी को 1500 डॉलर जबकि रजत और कांस्य पदक पदक विजेता को क्रमश: 800 और 500 डॉलर मिलेंगे. आयोजकों के अनुसार सभी स्वीकार्य और नामित एथलीटों को पुरस्कार राशि हासिल करने के लिये तीनों चरणों में भाग लेना होगा. रिले स्पर्धाओं के लिये कोई पुरस्कार राशि नहीं है.

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