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फाइनेंस का महत्त्व?

फाइनेंस का महत्त्व?
Paropkar Ka Arth | Paropkar Ke Udaharan | परोपकार का महत्त्व

Paropkar Ka Arth परोपकार का अर्थ

परहित के समान दूसरा कोई धर्म नहीं फाइनेंस का महत्त्व? है। Paropkar Ka Arth परोपकार का अर्थ हम एक संधि विक्षेद के द्वारा समझेंगे। परोपकार में दो शब्द हैं:- पर+उपकार। पर का अर्थ है दूसरा और उपकार का अर्थ भलाई होता है। इस प्रकार परोपकार का अर्थ Paropkar Ka Arth है दूसरे की भलाई है।

पर का क्षेत्र फाइनेंस का महत्त्व? बड़ा विस्तृत है। पर दूसरे को कहते हैं, शत्रु को भी कहते हैं। पर जान पहचान का भी होता है और बिना जान-पहचान का भी होता है। पर चाहे जो हो, उसकी भलाई अवश्य करनी चाहिए।

Paropkar Ka Arth | Paropkar Ke Udaharan | परोपकार का महत्त्व

Paropkar Ka Arth | Paropkar Ke Udaharan | परोपकार का महत्त्व

व्यास मुनि ने परोपकार का अर्थ (Paropkar Ka Arth) को बहुत ही अच्छी तरह से बताया है। परोपकार सबसे बड़ा धर्म है। व्यास मुनि का कहना है:- परोपकार के समान न तो कोई पुण्य है और परपीड़न के समान न तो कोई पाप है।

व्यास मुनि ने लिखा है कि:- मनुष्य संसार में सुख चाहता है, मोक्ष चाहता है और चाहता है कि, उसकी हर एक अभिलाषा पूरी हो। इसकी केवल एक ही कुंजी है और व कुंजी है, परोपकार।

जो लोग बिना स्वार्थ का परोपकार करता है, उसे लोक में सुख तो मिलता ही है, पर-लोक में भी सुख मिलता है, उसे मनुष्य की कृपा तो मिलती ही है, परमात्मा की कृपा भी मिलती है।

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परोपकार के उदाहरण Paropkar ke udaharan

परोपकार के अनेकों उदहारण है:-

परोपकार के पहले उदहारण

जटायु का कहानी किसे नहीं मालूम है ? वह एक गीध पक्षी था, पर बड़ा विवेकवान था। उसने जब रावण को सीताजी को ले जाते हुए देखा और उनका विलाप सुना, तो सीता जी से जान-पहचान न होने पर भी उसने उन्हें छुड़ाने का प्रयत्न किया। वह सीताजी को छुड़ाने में घायल हो कर धरती पर गिर पड़ा।

जटायु ने जो परोपकार किया, उसे उसका कैसा फल प्राप्त हुआ ? राम जब सीता को खोजते हुए जा रहे थे तो रास्ते में घायल जटायु मिला। यह जानने पर कि, जटायु सीता जी को छुड़ाने में घायल हो गया है, राम गदगद हो गए। राम ने घायल जटायु को अपने हथेली पर रख दिया। उनकी आंखें भर आईं। वे अपने दाहिने हाथ से जटायु की पीठ सहलाने लगे।

जटायु जब मर गया, तो राम ने अपने पिता की भांति ही उसका अंतिम संस्कार किया।

जटायु को राम की हथेली पर बैठने का महान गौरव कैसे प्राप्त हुआ था ? केवल परोपकार से।

परोपकार के दूसरे उदहारण

अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन को कौन नहीं जानता ? लिंकन का जन्म एक बहुत ही गरीब आदमी के घर में हुआ था। ऐसे गरीब आदमी के घर में हुआ था जो पहनने के लिए कपड़ा और खाने के लिए अन्न भी नहीं जुटा पाता था, पर आज उसी लिंकन का नाम सारे संसार में फैला हुआ है। जानते हो क्यों फैला हुआ है ? परोपकार धर्म के पालन से।

लिंकन के परोपकार की कहानी सुनोगे, तो विस्मय की लहरों में डूब जाओगे और सोचने लगोगे कि, लिंकन मनुष्य था या देवता, पर सच बात तो यह है फाइनेंस का महत्त्व? कि, लिंकन एक मनुष्य था और बड़ा परोपकार था।

उन दिनों लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति के पद पर था। जाड़े के दिन थे। सवेरे दस बज रहे थे। लिंकन अपनी कार पर बैठकर ऑफिस जा रहा था वह ऑफिस के कपड़ेपहने हुए था।

सहसा लिंकन की दृष्टि पटरी की नाली पर पड़ी। नाली में पानी बह रहा था। कुछ कीचड़ भी जमा थी। कीचड़ में सुकरी का एक छोटा सा बच्चा फंसा हुआ था। वह रह-रह कर कीचड़ से निकलने का प्रयत्न कर रहा था, पर निकल नहीं कर पा रहा था।

लिंकन ने अपनी गाड़ी रोक दी। वह गाड़ी से उतर कर सुकरी के बच्चे के पास गया। उसने बिना यह बात सोचे हुए कि, सूकरी के बच्चे को उठाने से उसके फाइनेंस का महत्त्व? कपड़ेखराब हो जाएंगे, उसने सूकरी के बच्चे को कीचड़ से निकाल कर धुप में रख दिया। लिंकन के कपड़े सचमुच खराब हो गये। वह उसी कपड़ेमें ऑफिस गया।

लिंकन की इस परोपकारता की कहानी को जिसने भी सुना, उसके हृदय में लिंकन उसी तरह बस गया, जिस तरह परमात्मा बसता है।

जो मनुष्य परोपकार करता है, उसी को संसार में महान पुरुष कहलाने का अधिकार होता है। हिंदी के कवि रहीम खान खाना ने अपने एक दोहे में लिखा है:-

जे गरीब पर हित करे, ते रहीम बड़ लोग।

कहां सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई योग।।

परोपकार के तीसरे उदहारण

जो लोग गरीबों और दूसरों की भलाई करते हैं, वे ही महान पुरुष हैं। बेचारा सुदामा क्या कृष्ण की मित्रता के योग्य था ? नहीं था। श्रीकृष्ण अत्यंत परोपकारी थे। उनके परोपकार गुण के कारण ही सुदामा को उनका फाइनेंस का महत्त्व? मित्र बनने का गौरव प्राप्त हुआ था।

परोपकार के चौथे उदहारण

मैं यहाँ आपके सामने परोपकार की एक ऐसी कहानी रख रहा हूं, जो प्रसिद्ध तो है ही, बड़ी श्रेष्ठ भी है। संसार की किसी भी भाषा में परोपकार की ऐसी कहानी खोजने पर भी नहीं मिलेगी।

एक बार एक बहुत बड़े राक्षस ने इंद्रलोक पर चढ़ाई की। उस राक्षस का नाम वृत्तासुर था। वह बड़ा प्रतापी, तेजवान और बलवान था।

इंद्रलोक के राजा इंद्र ने वृत्तासुर का मुकाबला तो किया, पर वह लड़ाई में हार गया। वृत्तासुर इंद्रलोक पर अधिकार हो गया।

वृत्तासुर इंद्रलोक पर अधिकार करके, इंद्र और देवताओं पर अत्याचार करने लगा। देवता उसके डर के कारण मारे-मारे घूमने लगे।

जब देवताओं का रहना कठिन हो गया तो वे एक साथ मिलकर सहायता के लिए भगवान शिव के पास गये। उन्होंने आँखों में आंसू भर कर अपने दुःख की कहानी शंकर जी को सुनाई और उनसे प्रार्थना की कि वे उनकी सहायता करें।

भगवान शिव द्रवित हो उठे। उन्होंने देवताओं से कहा, देवताओं, साहस से काम लो । वृत्तासुर से युद्ध करके उसे मारो। उसकी मृत्यु दधीचि की हड्डियों से बने हुए वज्र को छोड़कर, और किसी चीज से नहीं हो सकती। अतः तुम सब दधीचि मुनि के पास जाओ। उनसे उनकी हड्डियां मांगो। वे बड़े दयालु और परोपकारी हैं। वे तुम्हारी अवश्य सहायता करेंगे।

देवता दधीचि मुनि की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने उन्हें भी अपने दुःख की कहानी सुनाई और उनसे फाइनेंस का महत्त्व? प्रार्थना की कि, वे वृत्तासुर के विनाश के लिए अपनी हड्डियां देने की कृपा करें।

मुनि बड़े दयालु और परोपकारी थे। वे देवताओं के दुःख की कहानी को सुनकर पसीज उठे, उन्हें अपनी हड्डियां देने के लिए तैयार हो गए। मुनि के शिष्यों ने उन्हें बहुत रोका, बहुत मना किया, पर उन्होंने किसी की भी बात पर ध्यान नहीं दिया। मुनि ने अपना शरीर छोड़ दिया।

देवताओं ने मुनि के शरीर की हड्डियों से वज्र नामक हथियार बनवाया हथियार एक देवता ने बनाया था, जिसका नाम विश्वकर्मा था।

जब वज्र बनकर तैयार हो गया तब देवताओं के राजा इंद्र ने वृत्तासुर को फिर युद्ध के लिए ललकारा। वह अपनी सेना लेकर युद्ध के मैदान में जा पहुंचा, पर इस बार उसकी विजय नहीं हुई। इंद्र ने दधीचि मुनि की हड्डियों से बने हुए वज्र से उसे मार डाला।

इंद्रलोक पर पुनः इन्द्र का अधिकार हो गया। देवता फिर इंद्रलोक में सुख और शान्ति के साथ रहने लगे।

Paropkar Ka Mahatva परोपकार का महत्व

बता सकते हो, देवताओं को सुख और शान्ति कैसे मिली ? दधीचि मुनि के परोपकार के कारण।

परोपकारी मनुष्य दधीचि मुनि के समान ही कष्ट सहन करके दूसरों की भलाई किया करते हैं। वे तरह-तरह के कष्ट सहते हैं, अपने को मिटा देते हैं, पर दूसरों को सुख पहुंचाते हैं। उनके यश का गान मनुष्य ही नहीं, देवता भी करते हैं।

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